सत्यार्थ प्रकाश किसकी रचना है , सत्यार्थ प्रकाश की कृति कब और किसने की किस भाषा में लिखी गई है
पढ़िए सत्यार्थ प्रकाश किसकी रचना है , सत्यार्थ प्रकाश की कृति कब और किसने की किस भाषा में लिखी गई है ?
प्रश्न: सत्यार्थ प्रकाश
उत्तर: दयानंद सरस्वती द्वारा रचित प्रसिद्ध ग्रंथ सत्यार्थ प्रकाश (1874) जिसमें उन्होंने अपने हिन्दुत्ववादी एवं अन्य विचारों को लिपिबद्ध किया। यह आर्य समाज का मूल ग्रंथ है।
प्रश्न: पोटटी श्रीरामुलु
उत्तर: पोट्टी श्रीरामुलु (1901-1952) गाँधीवादी कार्यकर्ता; नमक सत्याग्रह में भाग लेने के लिए सरकारी नौकरी छोड़ी; वैयक्तिक सत्याग्रह में भी भागीदारी; 1946 में इस मांग को लेकर उपवास पर बैठे कि मद्रास प्रांत के मंदिर दलितों के लिए खोल दिए जाएंय आंध्र प्रदेश नाम से अलग राज्य बनाने की माँग को लेकर 19 अक्टूबर, 1952 से आमरण अनशन; 15 दिसम्बर 1952 को अनंशन के दौरान मृत्यु।
प्रश्न: सरदार वल्लभभाई पटेल
उत्तर: सरदार वल्लभभाई पटेल (1875-1950) आजादी के आंदोलन के नेताय कांग्रेस के नेताय महात्मा गांधी के अनुयायीय स्वतंत्र भारत के उप-प्रधानमंत्री और प्रथम गृहमंत्रीय देसी रियासतों को भारत संघ में मिलाने में महत्वपूर्ण भूमिकाय मौलिक अधिकार, अलपसंख्यक प्रांतीय संविधान आदि से संबंधित संविधान सभा की महत्वपूर्ण समितियों के सदस्य।
प्रश्न: राजकुमारी अमृतकौर
उत्तर: राजकुमारी अमृतकौर (1889-1964) गांधीवादी स्वतंत्रता सेनानीय कपूरथला के राजपरिवार में जन्मय विरासत में माता से ईसाई धर्म मिलाय संविधान सभा की सदस्यय स्वतंत्र भारत के पहले मंत्रिमंडल में स्वास्थ्य मंत्रीय 1957 तक स्वास्थ्य मंत्री के पद पर रहीं।
प्रश्न: दीन दयाल उपाध्याय
उत्तर: दीन दयाल उपाध्याय (1916-1968) 1942 से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्णकालिक कार्यकर्ताय भारतीय जनसंघ के संस्थापक सदस्य; भारतीय जनसंघ में पहले महासचिव फिर अध्यक्ष; समग्र मानवतावाद सिद्धांत के प्रणेता।
प्रश्न: लालबहादुर शास्त्री
उत्तर: लालबहादुर शास्त्री (1904-1966) भारत के दूसरे प्रधानमंत्रीय 1930 से स्वतंत्रता आंदोलन में भागीदारी कीय उत्तर प्रदेश मंत्रिमंडल में मंत्री रहेय कांग्रेस पार्टी के महासचिव का पदभार संभालाय 1951-56 तक केंद्रीय मंत्रिमंडल में मंत्री पद पर रहे। इसी दौरान रेल-दुर्घटना की नैतिक जिम्मेवारी लेते हुए उन्होंने रेलमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था। बाद में, 1957-64 के बीच भी मंत्री पद पर रहे। आपने ‘जय जवान जय किसान‘ का मशहूर नारा दिया था।
प्रश्न: के. कामराज
उत्तर: के. कामराज (1903-1975) स्वतंत्रता सेनानी और कांग्रेस के नेता; मद्रास (तमिलनाडु) के मुख्यमंत्री रहे; मद्रास प्रांत में शिक्षा का प्रसार करने और स्कूली बच्चों को ‘दोपहर का भोज‘ देने की योजना लागू करने के लिए प्रसिद्धय 1963 में उन्होंने प्रस्ताव रखा कि सभी वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं को इस्तीफा दे देना चाहिए, ताकि अपेक्षाकृत युवा पार्टी कार्यकर्ता कमान संभाल सके। यह प्रस्ताव ‘कामराज योजना‘ के नाम से मशहूर हुआ। के. कामराज कांग्रेस अध्यक्ष भी रहे।
प्रश्न: चारु मजूमदार
उत्तर: चारु मजूमदार (1918-1972) कम्युनिस्ट क्रांतिकारी और नक्सलवादी बगावत के नेताय आजादी से पहले तेभागा आंदोलन में भागीदारीः सीपीआई छोड़ी और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) की स्थापना) किसान विद्रोह के माओवादी पंथ में विश्वास; क्रांतिकारी हिंसा के समर्थकय पुलिस हिरासत में मौत।
कला जगत के शिलास्तंभ
इस युग के युगांतरकारी कलाकार अवनींद्रनाथ ठाकुर की छत्रछाया में असितकुमार हल्दर को भी अपने सहयोगी नन्दलाल बोस और सुरेन गांगुली जैसे अनेक वरिष्ठ कलाकारों के साथ चित्रकला सीखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। 1890 में जोड़ासांकू स्थित टैगोर-भवन के कलामय वातावरण में इनका जन्म हुआ। अल्पावस्था में ही ग्रामीणों के पट-चित्रण से इनका बाल-औत्सुक्य जगा और बाद में अपने दादा राखाल दास से, जो उस समय लंदन यूनिवर्सिटी में संस्कृत के अध्यापक थे, अपनी कलाभिरुचियों को विकसित करने में विशेष प्रेरणा एवं प्रोत्साहन मिला।
असित हल्दर की असाधारण प्रतिभा हर प्रकार की परिस्थितियों में व्यंजित होती गई। विश्वकवि ने अपने एक पत्र में इन्हें लिखा थाः ‘तुम केवल चित्रकार ही नहीं हो, कवि भी हो। यही कारण है कि तुम्हारी तूली से रसधारा झरती है।’
असित हल्दर के चित्रों में पाश्र्व से ऊपर की ओर उठने वाली धूमिल-सी रेखाएं और कोमल मृदु रंग कविता की तरह फैल जाते हैं। ‘उसकी बपौती’ चित्र में छिपते हुए सूर्य के सघन होते अंधकार में एकाकी साधु की प्रतिच्छवि अंकित है। ‘नये-पुराने’ और ‘वसंत-बहार’ में उत्फुल्ल बाल्यावस्था के साथ जर्जर वृद्धावस्था का बड़ा ही कचोटता हुआ तुलनात्मक दिग्दर्शन है। ‘ताल और प्रकाश’ ‘नववधू’, ‘संगीत’, ‘असीम जीवन’ आदि चित्रों में आत्मा की गहराई उड़ेल दी गई और मुसीबत के दिनों में, एक हताश मां, जो निर्धनता के कारण कलंकित जीवन बिताने को बाध्य हुई है, अपने असहाय बालक को अंक में चिपकाए बैठी है। उनके पौराणिक चित्र ‘हर-पार्वती’, ‘शिव’, ‘लक्ष्मी’, ‘कच-देवयानी’ आदि में जीवन की आधार-भूमि बहुत क्षीण है। फिर भी उनकी रेखाएं और रंग-विधान में सादगी, सरलता और चारु भव्यता है।
अपनी विशिष्ट शैली से हटकर असित हल्दर ने भावात्मक विषयों को भी भौतिकवादी पद्धति से निरूपित किया। ‘प्रारब्ध’ शीर्षक चित्र में कितने ही अमूर्त भाव मूर्त हो उठे हैं।
युग-प्रवर्तक अवनींद्रनाथ ठाकुर जब कला-जागरण का मंत्र लेकर आगे बढ़े तो के. वेंकटप्पा भी उनके अग्रगण्य शिष्यों में से एक थे। उन्होंने कलागुरु और अन्य साथियों के साथ कला की सीमाओं को व्यापक बनाने में अद्भुत योग दिया था। इन्होंने लघु चित्रण की तकनीक को अपनाया जो अधिकांशतः राजपूत शैली और किंचित् मुगल पद्धति की छाप लिये है। इनकी भाव-व्यंजना सूक्ष्म और सांकेतिक होते हुए भी स्पष्ट और बोधगम्य है। इनके रेखांकन में हाथ की सफाई और सौम्य सौष्ठव है। लघु चित्रण ने उनकी व्यंजना को अधिक प्रखर बना दिया है।
‘ऊटी’ के विभिन्न प्रकृति चित्रणों में इनकी बहुमुखी अभिव्यक्ति के दर्शन हुए। प्रकृति से इनकी कला का रागात्मक सम्बंध है। अनन्य निरीक्षण ने प्राकृतिक उपादानों के प्रति इनकी संवेदना को इतना अधिक उभारा है कि वे उसकी अंतरंग सुषमा में विभोर हो उठे हैं।
वेंकटप्पा के सौंदर्यबोध की दूसरी विशेषता उनका हठयोग है। उनका रोबीला आडम्बरहीन व्यक्तित्व हर किसी के समक्ष खुलकर नहीं बिखरता। इनके अनेक चित्रों में अंतर की कुंठा उभर आई है। स्वर्णमृग, लंका तक पुल का निर्माण आदि चित्रों में भीतर की उल्लासपूर्ण गरिमा के दर्शन होते हैं, फिर भी जीवन की नैसग्रिक निष्कृतियों से वे एकदम वंचित नहीं हैं। ‘स्वर्णमृग’ में मारीच दूर खड़ा हुआ राम के समीप बैठी जागकी का ध्यान आकर्षित कर रहा है। उसकी छाया पोखर के जल में प्रतिबिम्बित हो रही है। राम के मुखारविंद पर भावी संकट की द्योतक मायूसी और मलिनता है। सीता भयभीत-सी कौतूहलपूर्ण दृष्टि से आदर्श हिंदू पत्नी की भांति पति से पूर्ण आश्वस्त है। मदोन्मत्त रावण बादलों के अंधकार में खोया हुआ दानवी घृणा को साकार कर रहा है।
उनके कुछ अन्य चित्र ‘बुद्ध और उनके अनुयायी’, ‘मृगतृष्णा’, ‘पक्षी’, ‘गौचारण’ आदि उनकी सूक्ष्म सौंदर्य-दृष्टि और कल्पनाप्रवण रूप-विधान की विशेषता झलकाते हैं। इनके सुप्रसिद्ध चित्र ‘संगीत मण्डली’ में राजपूत और मुगल चित्रण पद्धति का अनुसरण किया गया है।
ये भित्ति-चित्रण में भी अत्यंत दक्ष थे। मैसूर के महाराज स्वर्गीय श्रीकृष्ण राजेन्द्र जी के आग्रह से इन्होंने दरबार हाल के अम्बाविलास में बुद्ध और राम के जीवन-प्रसंगों का आकर्षक चित्रांकन किया था। ‘शिक्षक के रूप में बुद्ध’ और ‘हनुमान को अंगूठी देते हुए राम’ चित्र प्राचीन और अर्वाचीन चित्रण परंपरा के अद्भुत समन्वय के दिग्दर्शक हैं।
अवनीन्द्रनाथ ठाकुर की छत्रछाया में शैलेंद्रनाथ कला की अनेक नवीनताओं और विशेषताओं को लेकर अवतरित हुए। शैलेंद्र के कृतित्व में ‘बंगाल स्कूल’ की विशिष्ट कला-धाराएं उतार पर आ गई थीं। प्राथमिक चित्रों, यथा ‘यशोदा और बालक कृष्ण’ में राजपूत तथा मुगल कला के निष्प्राण अनुकरणशील तत्व दृष्टिगोचर होते हैं। ‘यक्षपत्नी’ उनकी अकृत्रिम अभिव्यक्ति है। ‘वनवासी यक्ष’ में मूर्त प्रत्यक्षीकरण की विलक्षणता और कोमल भाव को अत्यंत सूक्ष्मता से ग्रहण किया गया है।
शैलेंद्र ने मानव-जीवन के ‘सत्यं, शिवं, सुंदरम्’ में ही कलात्मक पूर्णता के दर्शन नहीं किये, वरन् कुरूप और असुंदर में भी निर्माणोन्मुख विद्यादायिनी शक्ति और अभिव्यंजना की रसात्मकता की इन्होंने कल्पना की। एक जगह इन्होंने कहा है ‘चित्रकार तो एक साधक है, वह सदा सत्य के अनुसंधान में ही लगा रहता है और सत्य की ओर ही उसकी समस्त शक्ति केंद्रित रहती है।’
आधुनिक कला के क्षेत्र में अध्यात्म को आधार मानकर जीवन की समग्रता के आत्मिक ऐक्य में आस्था रखने वाले कलाकारों में क्षितीन्द्रनाथ मजूमदार अग्रणी हैं। ये भी अवनींद्रनाथ ठाकुर के प्रधान शिष्यों में से बंगाल स्कूल के सहयोगी और कला के पुगर्जागरण में योग देने वालों में से एक हैं। क्षितीन्द्र मजूमदार के चित्रों की विशेषता यह है कि इनके रंग और रेखाएं किसी रूप विशेष की द्योतक न होकर इनकी आंतरिक अभिव्यक्ति में तद्रूप हो उठे हैं। वे एक अंतर्दर्शी कलाकार तो हैं ही, कवि हृदय भी रखते हैं। मजूमदार उन थोड़े से कलाकारों में से हैं जिन्हें सच्ची अंतःप्रेरणा की अनुभूति है। यही कारण है कि उन्होंने कला में एक नई दिशा चुनी है और अभिव्यक्ति का नूतन ढंग अपनाया है। कलकत्ता म्यूजियम, भारत कला भवन वाराणसी, कलकत्ता का आशुतोष म्यूजियम, नेशनल गैलरी आॅफ माॅडर्न आर्ट आदि कला-संग्रहालयों में उनके चित्र सुरक्षित हैं।
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