यूनेस्को की सूची में सूचीबद्ध भारत की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत कौन कौनसी है लिस्ट प्राचीन स्थल जगह
कौन कौनसी है लिस्ट प्राचीन स्थल जगह नाम बताइए ?
यूनेस्को की सूची में सूचीबद्ध भारत की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत
क्र.सं. मद वर्ष
1- कुटियट्टम संस्कृति 2008
2- वैदिक मंत्रोच्चारण की परम्परा 2008
3- रामलीला-रामायण का परम्परागत प्रदर्शन 2008
4- नोवरूज, नौरूज, नूरूज, नवरूज, नौरोज, नेवरूज 2009
5- रम्मन गढ़वाल हिमालय, भारत के धार्मिक पर्व एवं अनुष्ठानिक रंगमंच 2009
6- छऊ नृत्य 2010
7- राजस्थान के कालबेलिया लोक गीत एवं नृत्य 2010
8- मुडियट्ट, केरल के अनुष्ठानिक रंगमंच और नृत्य नाटक 2010
9- लद्दाख का बौद्ध मंत्रोच्चारणः ट्रांस हिमालय लद्दाख क्षेत्र जम्मू 2012
और कश्मीर, भारत में धार्मिक बौद्ध पुस्तकों का सरस्वर पाठ
10- मणिपुर का संकीर्तन नृत्य 2013
भागवतपुराण की रचना तमिल भूमि में हुई। कांसे की ढलाई का कार्य भी यहीं प्रारंभ हुआ। दक्षिण भारत के इन राज्यों ने कला और वास्तुकला के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय योगदान दिया। पल्लव शैली में बना मामल्लपुरम का मंदिर पल्लव राजाओं की देन है। द्रविड़ शैली में राजराजा चोल ने तंजौर मंदिर का निर्माण करवाया। राष्ट्रकूटों की छत्रछाया में ऐलोरा का कैलाश मंदिर बना। होयसलों ने होयसलेश्वर मंदिर का निर्माण कराया। चित्रकला भी इस काल में काफी विकसित हुई।
लगभग इसी समय अरब के मुसलमान सिंध आए और इस क्षेत्र पर अपना आधिपत्य जमाया। इन्हें अपना धर्म मानने, उसे फैलाने की भी स्वतंत्रता हासिल हुई। किंतु दिल्ली सल्तनत की स्थापना ने वह मंच प्रदान किया, जहां हिंदू और मुस्लिम संस्कृतियों का सही मेल हुआ। सांस्कृतिक समझ का विकास हुआ। सल्तनत की स्थापना एक नए युग का भी संकेत थी। हर्ष की मृत्यु के बाद 500 वर्षों में पहली बार भारत में पर्याप्त राजनीतिक एकता आई।
राजनीतिक एकता के इस नए दौर में वास्तुकला को नए आयाम मिले। चित्रकला की नई शैली विकसित हुई। संगीत में नए प्राण फंूके गए। जौनपुर के सुल्तान हुसैन शार्की और बीजापुर के इब्राहिम आदिल शाह उस दौर में संगीत की पहचान थे। सूफी चिंतन और भक्ति धारा के मेल से कुछ धार्मिक माहौल बना। एस. आबिद हुसैन कहते हैं, ‘‘यद्यपि वे धर्म को अनुष्ठानों और कर्मकाण्डों के बंधन से मुक्त तो न करा सके, किंतु धार्मिक निष्क्रियता को तोड़ा और उसे एक नए आंदोलन का रूपए प्रवाह, ताज़गी और जीवन दिया। ऊपरी तौर पर वे हिंदुत्व और इस्लाम की धाराओं को नहीं मिला सके, किंतु उन्होंने दर्शाया कि वे झरने, जिससे उन्हें जीवन मिलता है, कहीं न कहीं नीचे मिलते हैं। उन्होंने भारत में धार्मिक सद्भावना का वातावरण तैयार किया; जो मध्ययुग में देखने को नहीं मिला।’’ इसके अतिरिक्त शास्त्रीय संस्कृत के स्थान पर बोलचाल की भाषा कविताओं में आई। उत्तर भारत में उर्दू सामान्य भाषा बन गई।
सामान्य तौर पर दक्षिण भारत के राज्यों में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच करीबी और सौहार्दपूर्ण सम्बंध देखने को मिला। बहमनी साम्राज्य के विघटन के बाद अस्तित्व में आए राज्यों ने भी उदार परंपरा कायम रखी। वस्तुतः दक्षिण में ही उर्दू साहित्यिक भाषा के रूप में विकसित हो पाई। हिंदू-मुस्लिम सौहार्द के सम्बंध में कश्मीर के राजा जैन.उल. अबीदीन का संदर्भ अपरिहार्य हो जाता है। हिंदू संस्कृति की व्यापक समझ हेतु संस्कृत की पुस्तकों का फारसी में अनुवाद कराने के अतिरिक्त उसने कला और हस्तशिल्प को भरपूर संरक्षण प्रदान किया। इसे हम सम्राट अकबर का अग्रगामी मान सकते हैं।
लोदी सुल्तानों के चरमराते साम्राज्य को बाबर ने 1526 में जीतकर जिस मुगल साम्राज्य की नींव डाली, उसी के सम्राट अकबर महान ने भारत को पुनः राष्ट्रीय एकजुटता के सूत्र में बांधा और एक नई संस्कृति का सूत्रपात किया, जिसे हम हिंदुस्तानी संस्कृति के नाम से जागते हैं। नए भारत राष्ट्र की सबसे महत्वपूर्ण विशिष्टता, जो अकबर के द्वारा उत्पन्न की गई, यह थी कि वह समुदाय की धार्मिकता पर नहीं, बल्कि उसी राज्य की नागरिकता पर आधारित थी। दिल्ली सल्तनत की स्थापना के तुरंत बाद, सामुदायिक जीवन के आधार के रूप में राज्य को धर्म का स्थान ले लेना चाहिए था, किंतु परंपराओं की शक्ति इतनी प्रबल थी कि यह आवश्यक परिवर्तन मुगल वंश के उत्थान तक रुका रहा।
धर्म निरपेक्ष और गैर-सांप्रदायिक राज्य की अवधारणा अकबर के दिमाग में बिल्कुल स्पष्ट थी। ऐसा लगता है कि अकबर पूरी तरह सचेत था कि राज्य की एकता हेतु उसने जो नींव रखी है वह इस बात पर निर्भर करती है कि आम जनता का राजा के व्यक्तित्व के प्रति कितना लगाव है। इसीलिए अकबर ने जनता से सीधे सम्पर्क पर बल दिया, जो किसी मुसलमान राजा ने सोचा भी न होगा। अकबर ने प्रशासनिक दृष्टि से भी कई सुधार किए, ताकि भेदभाव न रहे। इसी तरह सती प्रथा को बंद कराकर आधुनिक काल के राजाराम मोहन राय का अग्रगामी बनने का श्रेय भी प्राप्त किया।
साहित्य के क्षेत्र में अनुवाद कार्य बड़े जोरों से चला। अथर्ववेद, रामायण, महाभारत, उपनिषद भागवत्गीता इत्यादि का फारसी में अनुवाद कराया गया। इतिहास लेखन की नींव डली। वृंदावनदास, सुजाग राय, चंद्रभान ब्रह्म, भीमसेन और ईश्वर दास की कृतियां किसी भी समकालीन मुसलमान इतिहासकारों की कृतियों से किसी भी मायने में कम नहीं थी। अब्दुल रहीम खानखानाए गंगा, नरहरि, बीरबल, केशवदास, बिहारी, देव, रसखान उस काल के कुछ ऐसे नाम हैं, जो कविता को बड़ी ऊंचाइयों तक ले गए।
वास्तुकला भी उतनी ही विकसित हुई, जितनी अन्य विधाएं। हुमायूं का मकबरा, लाल किला, ताजमहल, बुलंद दरवाजा, जामा मस्जिद इत्यादि कुछ ऐसी इमारतें हैं, जो मुगलकालीन संस्कृति की परिचायक हैं। आबिद हुसैन लिखते हैं, ‘‘पर्शियन के साथ भारतीय मस्तिष्क के सहयोग तथा भारतीय पदार्थों के साथ साहसिक प्रयोगों ने एक नयी शैली को जन्म दिया, जिसमें विभिन्न तत्व पूर्ण समन्वय के साथ ऐसे मिले हुए हैं कि अब भारतीय और विदेशियों के रूप में उनका विश्लेषण यदि संभव भी हो तो वह कोई अर्थ नहीं रखता।’’
इस काल में चित्रकला ने भी प्राचीन भारतीय शैली के साथ तुर्की-ईरानी शैली को मिलाकर एक नई शैली विकसित की, जिसमें दोनों का आकर्षण था। हिन्दू शैली के यथार्थवादी और प्रभावोत्पादक सादगी के प्रशंसक अकबर ने एक नई शैली बनानी चाहीए जिसमें इसकी सादगी और पर्शियन शैली की सूक्ष्मता का समावेश हो। इसीलिए उसने अपने राजदरबार में चित्रकला अकादमी के एक ऐसे अंग की स्थापना की, जहां दोनों प्रकार के कलाकार एक साथ कार्य करते थे।
मुगल सम्राट जहांगीर के काल से ही यूरोपियनों का आगमन प्रारंभ हो गया था। व्यापार के नाम पर इनके केंद्र अलग-अलग बंदरगाहों पर स्थापित हुए। कुछ नई चीजें भी ये लाए, जैसे भारत में आलू पुर्तगाली लाए। तम्बाकू, अनानास, मिर्च भी इन्हीं की देन है।
यहां यह उल्लेख करना अनावश्यक न होगा कि मुगलों के समय ही सिख एक लड़ाकू कौम के रूप में स्थापित हो चुके थे। लेकिन अंग्रेजों ने अपनी सत्ता ऐसे समय में जमाई जब मुगल साम्राज्य का पतन हो रहा था, सिख कमजोर थे तथा मराठों का भी अस्तित्व नहीं था। सांस्कृतिक हृास भी स्पष्टतः दृष्टिगोचर हो रहा था।
जहां तक अंग्रेजों के सांस्कृतिक प्रभाव का प्रश्न है, भारतीय मानस पर उसकी विशेष छाप न पड़ी। रेलवे और टेलीग्राफ आदि के रूप में यांत्रिक विकास ही पश्चिमी सभ्यता का एकमात्र पहलू था, जिसने लोगों में सामान्य तौर पर आश्चर्य एवं प्रशंसा के भाव पैदा किए। अंग्रेजी संस्कृति केवल कलकत्ता तथा कुछ अन्य शहरों में एक छोटे से समूह को छोड़कर शेष भारतीयों पर कोई प्रभाव दिखाने में असफल रही। आबिद हुसैन ने इंगित किया है, ‘‘पश्चिमी सभ्यता का अंतर्निहित गुण उसकी आधुनिक वैज्ञानिक मनोवृति और व्यावहारिक
कार्यकुशलता में निहित था। किंतु दुर्भाग्यवश भारतीय समाज की रक्तहीन काया में जिस प्रकार आधुनिकता का ताजा रक्त चढ़ाया गया, उससे महत्वपूर्ण घटक तो न मिल पाए, बल्कि अच्छा होने की बजाय बुरा अधिक हुआ।’’
मुगलों की भांति अंग्रेजों ने कभी भी भारत को अपना घर नहीं माना। उन पर उनकी जातीय सर्वोच्चता का ऐसा भूत हावी रहा कि वे कभी भारतीयों के करीब न आ पाए। खान-पान, पहनावा, भाषा इत्यादि को लेकर उन्हें अजीब सनक घेरे रहती। इसी सनक को कुछ भारतीयों ने भी अपनाया और अंग्रेज होने का भ्रम पाले रहे। अंग्रेजों ने स्वयं को भारतीय संस्कृति से अलग रखने का जो गिर्णय लिया था, उसने ऐसा वातावरण बनाया कि व्यापक रूप से भारतीय संस्कृति प्रभावित न हो पाई।
हां, ब्रिटिश राज ने भारत को नुकसान अवश्य पहुंचाया। आर्थिक शोषण किया। परम्परागत हस्तशिल्प एवं कला को नष्ट किया। भूमि को खरीद-फरोख्त की वस्तु बना दिया। असंख्य भारतीयों को मौत के घाट उतारा। और, इन्हीं सब की प्रतिक्रिया स्वरूप उनके विरुद्ध ऐसा तूफान उठा कि ब्रिटिश राज की चूलें हिल गईं। हालांकि जाते-जाते उन्होंने देश को बांट अवश्य दिया, लेकिन भारतीयों को जगा भी दिया कि यदि देश की एकता व अखंडता के प्रश्न पर मौन रहे तो परिणाम भयानक होंगे।
स्वतंत्राता प्राप्ति के बाद ऐसे प्रयास किए गए कि देश एकजुट रहे। सुधारों की गति तेज की गई। दलितों, पिछड़ों, महिलाओं की बेहतरी हेतु कानून बने। देश की अखंडता के लिए जाति, धर्म, भाषा की विभाजक शक्तियों को नियंत्रित करने की आवश्यकता महसूस हुई। विविधता में एकता का महामंत्र पुनः उद्घोषित हुआ। संस्कृति को अक्षुण रखते हुए नये विचारों का भी स्वागत हुआ। आज का भारत एक ऐसे दौर से गुजर रहा है, जिसे हम संक्रमणकाल कह सकते हैं। आधुनिकता और परंपरा के सही संतुलन की आवश्यकता है। कथनी-करनी का अंतर मिटाना है और ‘सत्यम् शिवम् सुंदरम’ को फिर से अपनाना है। यद्यपि, आज ऐसे कई खतरे मौजूद हैं, जो देश की एकता के लिए ठीक नहीं है, फिर भी हम अपनी राजनीतिक इच्छाशक्ति और सदेच्छा से देश को पुनः उन्हीं बुलंदियों की ओर ले जा सकते हैं, जिन्हें देखकर पूरा विश्व ईष्र्या करता था। हमें अपनी सांस्कृतिक धरोहर को संभालना है तथा जय जवान, जय किसान और जय विज्ञान के नारे को अक्षरशः सही साबित कर दिखाना है।
भारत का इतिहास हजारों वर्षों से सैकड़ों संस्कृतियों के सम्मिलन का इतिहास रहा है। भूमंडलीकरण के इस दौर में भारत आर्थिक महाशक्ति बनने की राह पर अग्रसर है और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध इस महान देश में आज विश्व स्तर पर रुचि ली जा रही है। भारत रंगों काए मेलों का, पर्वों का, आस्था के उत्सवों का भी देश है। पूरे वर्ष यहां कोई न कोई सांस्कृतिक गमक रहती ही है। गणेश चतुर्थी के दौरान महाराष्ट्र, दुग्र पूजा के दौरान बंगाल, रथयात्रा के दौरान ओडिशा, बैसाखी के दौरान पंजाब, मकर संक्रांति के दौरान नवान्न पर्व पोंगल, पशु मेले का सोनपुर, हस्तशिल्प का सूरजकुंड, कुंभ के दौरान हरिद्वार-उज्जैन, ओणम के दौरान केरल इत्यादि। दुनिया की विभिन्न नागरिकताएं भारत की इन अद्भुत सांस्कृतिक रंगतों की ओर भी आकृष्ट हैं। विदेशी युगल भारतीय रीति-रिवाजों के अनुरूप दाम्पत्य बंधन में, बंधने के लिए भारत चले आते हैं; नवरात्रि के दौरान विदेशी पर्यटकों का रेला गुजरात आ पहुंचता है और डांडिया-गरबा में झूम-झूम कर थिरकता है। देशी-विदेशी पर्यटक होली के दौरान ब्रज और मणिपुर में, दशहरे के दौरान मैसूर में और निश्चित तिथियों को विभिन्न तीर्थस्थानों पर सैकड़ों-सहस्त्रों की संख्या में पहुंच ही जाते हैं। ठीक ऐसी ही स्थिति सांस्कृतिक रूप से समृद्ध अन्य देशों में भी है। मैक्सिको का ‘डे आॅव डैड’ तथा रियो डी जेनिरो (ब्राजील) का कार्निवाल बड़े पैमाने पर सांस्कृतिक उत्सव हैं। इसी प्रकार सेशल्स का क्रियोल उत्सव भी विश्व में जागा-पहचाना सांस्कृतिक कार्यक्रम है।
लोग अपनी सांस्कृतिक पहचान से रूबरू होने, अपने लोक रंगों में स्वयं को फिर से रंग कर ताजा होने के लिए सांस्कृतिक कार्यक्रमों में खींचे चले आते हैं।
दुनिया भर में फैले करोड़ों प्रवासी भारतवंशी भी समय-समय पर भारत आकर अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़ने के साथ-साथ भारत की आर्थिक प्रगति में योगदान दे सकते हैं। हमारे ‘गरबा’ और ‘भांगड़ा’ में भी ‘सालसा’ और ‘साम्बा’ के समान भौगोलिक सीमाओं को लांगाकर लोकप्रिय होने की अपार संभावनाएं निहित हैं।
हिंदी माध्यम नोट्स
Class 6
Hindi social science science maths English
Class 7
Hindi social science science maths English
Class 8
Hindi social science science maths English
Class 9
Hindi social science science Maths English
Class 10
Hindi Social science science Maths English
Class 11
Hindi sociology physics physical education maths english economics geography History
chemistry business studies biology accountancy political science
Class 12
Hindi physics physical education maths english economics
chemistry business studies biology accountancy Political science History sociology
English medium Notes
Class 6
Hindi social science science maths English
Class 7
Hindi social science science maths English
Class 8
Hindi social science science maths English
Class 9
Hindi social science science Maths English
Class 10
Hindi Social science science Maths English
Class 11
Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics
chemistry business studies biology accountancy
Class 12
Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics