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यूनियो क्या है , वर्ग , वर्गीकरण , संघ , गण , वंश , जाति , Unio in hindi लेमेलीडेन्स किसे कहते हैं , वैज्ञानिक नाम

पढ़े यूनियो क्या है , वर्ग , वर्गीकरण , संघ , गण , वंश , जाति , Unio in hindi लेमेलीडेन्स किसे कहते हैं , वैज्ञानिक नाम ?

यूनियो (Unio) या लेमेलिडेन्स (Lamellidens)

सीपी, घोंघे, ऑक्टोपस सीपिया आदि जन्तु, जन्तु-जगत के संघ मॉलस्का में वर्गीकृत किए हैं। यह संघ जन्तु जगत का दूसरा सबसे बड़ा संघ है (सबसे बड़ा संघ आर्थोपोड़ा है)। इसकी लगा 80,000 जीवित जातियाँ व लगभग 35,000 जीवाश्मी जातियाँ ज्ञात है। इन जन्तुओं पर कवच पा. जाता है अतः इनके अच्छे अवशेष ज्ञात है। कैम्ब्रियन (Cambrian) युग से ही इनके जीवाश्म मिलना प्रारम्भ हो जाते हैं। स्पष्ट है इनका प्रादुर्भाव इस युग से पहले ही हो चुका था।

संघ मॉलस्का (Mollusca, L. Mollis = soft) बहुकोशिकी यूमेटाजोअन जन्तु हैं जिनका शरीर कोमल होता है। इसमें अग्र शीर्ष, अधरीय पाद व पृष्ठीय विसरल पुंज (visceral mass) मिलता है। शरीर कोमल प्रावार (mantle) से ढका रहता है तथा इसके बाहर सामान्यतः कवच पाया जाता है जिसे प्रावार नावित करता है। संघ मॉलस्का के जन्तु देहगुहिकीय (coelomate) होते हैं तथा इन्हें देह गुहा की उत्पत्ति के कारण दीर्णगुहिकीय या शाइजोसीलोमेट कहा जाता है क्योंकि इनमें देह गुहा की उत्पत्ति मीजोडर्म के विपाटन (spitting) से होती है। यह आद्यमुखीय (protostome) जन्तुओं का संघ है। इस संघ के जन्तु मूलतः द्विपार्श्वसममित होते हैं परन्तु कुछ जन्तुओं में ऐंठन या विमोटन के कारण यह सममिति नष्ट हो गई है। इन पर पाए जाने वाला कवच एक भाग (घोंघों में), दो भागों (सीपियों में) या आठ भागों (काइटन) का हो सकता है। कुछ वर्गों के कुछ जन्तुओं में यह आन्तरिक (सीपिया व लोलिगो) व कुछ जन्तुओं (जैसे ऑक्टोपस) में यह अनुपस्थित हो सकता है।

इस संघ के जन्तुओं में तीन ऐसी विशेषताएँ मिलती हैं जो अन्य किसी संघ में नहीं पाई जाती है। यह हैं-प्रावार (mantle), रेडुला (radula) व टीनीडिया (ctenidia) की उपस्थिति। इनमें खुला परिसंचरण तन्त्र मिलता है (सिफेलोपोडा इसका अपवाद है)। इनमें विदलन निर्धारी तथा सर्पिल होता है।

संघ मॉलस्का के जन्तुओं का प्रारम्भिक व सामान्यीकृत परिचयात्मक अध्ययन करने के उपरान्त इस संघ के विषय में अधिक गहराई से जानने के लिए हम इसके एक वर्ग लैमेलिब्रैकिया के एक सदस्य का विस्तार से अध्ययन करेंगे।

वर्गीकरण (Classification)

संघ (Phylum) – मॉलस्का (Mollusca)

इस संघ के प्राणी त्रिकोरकी (triploblastic) दीर्णगुहीय व द्विपार्श्व सममित होते हैं। शरीर कोमल तथा कवच से ढका रहता है। देहगुहा अत्यन्त समानीत होती है। श्वसन गिलों द्वारा या फुफ्फुसों द्वारा या दोनों द्वारा होता है।

उत्सर्जन युग्मित मेटानेफ्रिडिया या वृक्कों द्वारा होता है।

वर्ग (Class) : लेमेलिब्रैकिया (Lamellibranchia)

इस वर्ग को पेलिसीपोडा (Pelecypoda) या बाइवोल्विया (Bivalvia) भी कहते हैं।

इस वग के प्राणियों का कवच द्विकपाटी होता है। सिर. स्पर्शक, नेत्र व रेड्ला का अभाव होता है। पाद फरसे के आकार का होता है तथा प्रावार पालियों के बीच फैला रहता है।

गण (Order) – युलैमिलीब्रैकिया  (Eulamellibranchia)

गिल यूलेमिलीबैंक प्रकार के होते हैं। गिल भोजन संग्रह का भी कार्य करते हैं।

वंश (genus) : लेमेलिडेन्स (Lamellidens)

जाति (species) : मार्जिनेलिस (marginallis)

स्वभाव एवं आवास (Habits and Habitat):

भारत की सामान्य सीपी लेमेलिडेन्स मार्जिनेलिस (Lamellidens marginallis) है। यह स्वच्छ अलवणीय जल स्रोतों जैसे नदी, तालाब, पोखर, झीलों आदि में पायी जाती है। इसे सामान्य तथा यूनियो (Unio) के नाम से भी पुकारते हैं। यह जलीय स्रोतों की तली में मिट्टी में धंसी रहती है। इस स्थिति में इसका पिछला सिरा खुला रहता है ताकि जलधारा निरन्तर बनी रह सके। जलधारा इसे श्वसन व पोषण में सहायता प्रदान करती है। इसका पेशीय पाद हल की आकृति का होता है। इसकी सहायता से यह सतह पर रेंगता है। यह एक रात्रिचार प्राणी होता है। रात्रि के समय यह उथले पानी में आ जाता है, तथा दिन के समय गहरे पानी चला जाता है। यह एक निस्यन्द भोजी (filterfeeder) प्राणी होता है। जल धारा में आने वाली सूक्ष्म भोजन के कणों को, गिल्स द्वारा छान कर पृथक कर, ग्रहण करता है।

बाह्य संरचना (External Features)

कवच (Shell)

यूनियो वर्ग पेलेसीपोडा या बाइवाल्वीया या यूलेमेलिब्रेकिएटा का सदस्य है। इसका कठोर कवच दो कपाटों का बना होता है। ये दोनों कपाट बराबर आकार के होते हैं तथा ये एक पृष्ठीय लचीली पट्टी हिंज-स्नायु (hinge ligament) द्वारा आपस में जुड़े रहते हैं। हिंज-स्नायु कवच कपाटों को खोलने में सहायक होता है। यह अकैल्सीकृत (uncalcified) कॉन्चियोलिन (conchiolion) का बना होता है। प्रत्येक हिंज-स्नाय के पास दांत व कृपिकाएँ (denticles and alveoli) पायी जाती हैं जो एक दूसरे से फिट होकर दोनों कपाटों को आगे पीछे खिसकने से रोकती है। प्रत्येक कवच के पृष्ठ भाग में हिंज-स्नाय के अग्र दिशा में एक उभार पाया जाता है जिसे प्रकूट या अम्बो (umbo) कहते हैं। यह कवच का सबसे पुराना भाग होता है तथा शिशु यूनियों में इसका निर्माण होता है। अम्बो (umbo) के चारों तरफ संकेन्द्रित रूप से वृद्धि रेखाएँ (growth lines) उपस्थित होती हैं। दो वृद्धि रेखाओं के बीच की दूरी वृद्धि अवस्थाओं के अन्तराल को प्रदर्शित करती हैं। कवच कपाट आगे से गोलाई लिये हुए होते हैं परन्तु पीछे की तरफ से कुछ नुकीले होते हैं।

प्रत्येक कवच कपाट की भीतरी सतह पर प्रावार पालियाँ पायी जाती हैं। इन्हें कवच से पता कर कवच कपाट की भीतरी सतह का अध्ययन कर सकते हैं। प्रत्येक कपाट के सीमान्त पर प्रावार रेखा पायी जाती है जहाँ प्रावार कपाट के चिपकी रहती है (चित्र-2)। दोनों कपाटों को बंद करने व खोलने के लिए पांच पेशीय समुच्चय पाये जाते हैं। कपाट में इन पेशियों के संलग्नन (attachement) के लिए विशेष चिन्ह (scar) पाये जाते हैं। इनमें से तीन अग्र सिरे की तरफ एवं दो पश्च सिरे की तरफ पाये जाते हैं (चित्र 2) अगले सिरे की तरफ अग्र अपाकुंचक (anterior porotractor), अग्र आकुंचक (anterior retractor) तथा अग्र अभिवर्तनी (anterior adductor) पेशियों के संलग्नन चिन्ह पाये जाते हैं। जबकि पिछले सिरे की तरफ पश्च आकुंचक (posterior retractor) पेशियों तथा पश्च अभिवर्तनी (posterior adductor) पेशियों के संलग्नन चिन्ह दिखाई देते हैं। अग्र व पश्च अभिवर्तनी (anterior and posterior adductor) पेशियों के चिन्ह बड़े व अण्डाकार होते हैं जबकि अग्र अपाकुंचक, अग्र आकुंचक तथा पश्च आकुंचक पेशियों के चिन्ह छोटे व गोलाकार होते हैं। अग्र व पश्च अभिवर्तनी पेशियाँ संकुचित होकर दोनों कपाटों को कस कर बंद कर लेती है एवं शिथिल होकर दोनों कपाटों को खोलने में सहायक होती है। अग्र व पश्च आकुंचक पेशियाँ पाद को कपाट के भीतर खींचने का कार्य करती है जबकि अग्र अपाञ्चक पेशी पाद को बाहर निकालने का कार्य करती है।

कवच की सूक्ष्मदीय संरचना (Microscopic structure of shell) : पाइला के समान यूनियों का कवच भी तीन स्तरों का बना होता है।

  • परिकवच (Periostracum)
  • प्रिज्मीय परत (prismatic layer)

(iii) मुक्ताभ परत (Nacreous laver)

(i) परिकवच (Periostracum): यइ सबसे बाहरी परत होती है। यह भूरे रंग की शृंगीय Chormy) सुरक्षात्मक परत होती है। यह एक कार्बनिक पदार्थ कॉन्चियोलिन (conchiolin) की बनी पतली श्रृंगीय परत होती है।

(ii) प्रिज्मीय परत (Prismaticlarer): यह मध्यवर्ती परत होती है। यह परत काफी मोटी व क्रिस्टलीय कैल्शियम कार्बोनेट के स्तम्भाकार संरचनाओं की बनी होती है। कैल्शियम कार्बोनेट के ये स्तम्भ कवच की सतह के साथ लम्बवत रूप में पाये जाते हैं तथा ये स्तम्भ कॉन्चियोलिन की परत द्वारा एक दूसरे से पृथक रहते हैं।

(ii) मुक्ताभ परत (Nacreous layer): यह कवच की सबसे आन्तरिक परत होती है। यह कैल्शियम कार्बोनेट व कॉन्चियोलिन की एकान्तरित परतों की बनी होती है। मुक्ताभ परत अम्बो पर सबसे अधिक मोटी होती है तथा कवच सीमान्त पर सबसे पतली होती है। यह परत कुछ विशेष । जाति की सीपी में मोती बनाने का काम करती है।

आन्तरिक संरचना (Internal Features)

यूनियो के शरीर की आन्तरिक संरचना निम्न प्रमुख संरचनाओं से मिलकर बनी होती है –

  1. प्रावार एवं प्रावार गुहा (Mantle and Mantle cavity)
  2. आन्तरांग पुँज (Visceral mass)
  3. क्लोम (Gills) 4. पाद (Foot)
  4. प्रावार एवं प्रावार गुहा (Mantle and mantle cavity) : कवच हटाने के बाद यनिरी का कोमल शरीर एक पतली झिल्लीनुमा त्वचीय आवरण से ढका रहता है जिसे प्रावार (mantial कहते हैं। प्रावार दो पालियों की बनी होती है जिन्हें प्रावार पालियाँ (mantle lobes) कहते हैं। पृष्ठ की तरफ देह से जुड़ी रहती हैं तथा दोनों पालियाँ आन्तरांग पुंज के दोनों तरफ स्थित होती है। प्रावार कवच का स्रावण करती है। प्रत्येक प्रावार पालि का स्वतन्त्र अधर किनारा कवच की प्रावार रेखा (pallial line) से जुड़ी रहती है। पिछले सिरे पर दोनों प्रावार पालियों के किनारे चार स्थानों पर परस्पर स्पर्श कर थोड़ा आगे बढ़ जाते हैं तथा दो नलिकाओं समान संरचनाओं का निर्माण करती हैं। इनमें से ऊपरी संकरी नलिका बहिर्वाही साइफन (ex-current siphon or exhalent siphon) तथा नीचे की तरफ अधिक चौड़ी व बड़ी नलिका अन्तर्वाही साइफन (incurrent siphon or inhalent siphon) कहलाती है। अन्तर्वाही साइफन से पानी प्रावार गुहा में आता है तथा बहिर्वाही साइफन से बाहर निकलता है।

औतिकी की दृष्टि से प्रावार तीन स्तरों का बना होता है

(i) बाहरी स्तम्भाकार उपकला (columnarepithelium), इसके साथ मुक्ताभ नावण कोशिकाएँ भी जुड़ी रहती है।

(ii) मध्य स्तर रेशेदार संयोजी ऊतक का बना होता है।

(iii) भीतरी स्तर पक्ष्मामी उपकला का बना होता है तथा इसमें श्लेष्म स्रावी कोशिकाएँ भी पायी जाती हैं।

प्रावार की दोनों पालियों के बीच एक गुहा पायी जाती है, जिसे प्रावार गुहा (mantle cavity) कहते हैं। प्रावार गुहा दो प्रकोष्ठों में विभेदित रहती है-निचला बड़ा प्रकोष्ठ, जिसे अधः क्लाम प्रकोष्ठ (infra branchial chamber) कहते हैं। ऊपरी छोटा प्रकोष्ठ अधि-क्लोम कोष्ठ (supra branchial chamber) कहलाता है।

  1. आन्तरांग पुंज (Visceral mass) : दोनों प्रावार पालियों के बीच, पृष्ठ भाग में कोमल आन्तरांग पुंज पाया जाता है। यह पार्वतः सम्पीडित संरचना होती है। इसमें विभिन्न आन्तरांग जैसे-पाचन तन्त्र, परिसंचरण तन्त्र, उत्सर्जी तन्त्र तथा जनन अंग पाये जाते हैं।

यूनियो में स्पष्ट सिर का अभाव होता है, इसमें नेत्रों तथा स्पर्शकों का भी अभाव होता है। अग्र अभिवर्तनी पेशी तथा पाद के बीच एक चौड़ी अनुप्रस्थ दरार के रूप में मुख पाया जाता है। मुख के दोनों तरफ एक-एक जोड़ी, अण्डाकार, चपटे, माँसल, लेबियल स्पर्शक (labial palps) पाये जाते है

  1. क्लोम (Gills) : यूनियो में एक जोड़ी क्लोम पाये जाते हैं जो प्रावार गुहा में दोनों तरफ लटके रहते हैं। क्लोम पाद के या आन्तरांग पुंज के दोनों तरफ उपस्थित होते हैं। क्लोम की संरचना जालनी (sicve) की तरह की होती है। ये सूक्ष्म छिद्रों द्वारा छिद्रित रहते हैं। छिद्र पक्ष्माभ द्वारा आस्तरित रहते हैं। (क्लोमों की विस्तृत संरचना आगे श्वसन तन्त्र में की गई है)
  2. पाद (Foot) : आन्तरांग पुंज की अधर सतह पर एक पेशीय, संकुचनशील हलनुमा (plough like) या पच्चर के आकार (wedge shaped) की सरंचना पायी जाती है जिसे पाद कहते हैं। इसका निचला भाग पार्श्वतः संहत होकर नौतल (keel) का निर्माण करता है। पाद के मोटे आधारी भाग में आहारनाल का कुछ भाग, पाचक ग्रन्थि तथा जनन ग्रन्थि पायी जाती है। एक पादिक अपाकुंचक पेशी (protractor muscles) तथा रक्त दाब की सहायता से पाद को बाहर प्रसारित किया जाता है तथा एक जोड़ी आकुंचक पेशियाँ (retractor muscles) पाद को भीतर खींचने में सहायक होती है।

पेशी विन्यास (Musculature) : यूनियो की माँसपेशियाँ अरेखित प्रकार की होती हैं। पेशियाँ पट्टियों या पर्तों में विन्यासित रहती है। कवच के कपाटों को बन्द करने व खोलने के लिए दो बड़ी दृढ़, बेलनाकार एवं अनुप्रस्थ पेशियाँ पायी जाती है, जिन्हें अग्र व पश्च अभिवर्तनी पेशियाँ (anterior and posterior adductor muscles) कहते हैं। ये दोनों पेशियाँ, दोनों सिरों के निकट, पृष्ठ की तरफ स्थित होती हैं तथा शरीर के आर-पार गुजरती हुई एक कपाट से दूसरे कपाट तक फैली रहती है। इनके संकुचन से कवच कस कर बन्द हो जाता है तथा इनके प्रसार से लचीला हिन्ज स्नायु कपाटों को खोल देता है। इन पेशियों के समीप दोनों सिरों की तरफ एक-एक छोटी पेशी पायी जाती है, जिन्हें अग्र व पश्च अंकुचक पेशियाँ (anterior and posterior retractor muscle) कहते हैं। ये पाद से कवच तक फैली रहती है तथा इनके संकुचन से पाद भीतर खींचा जा सकता है। अग्र अभिवर्तनी पेशी के समीप एक और छोटी पेशी पायी जाती है, जिसे अपाकुंचक पेशी (protractor muscle) कहते हैं। यह पाद को कवच से बाहर निकालने में सहायक होती है। प्रावार में कोमल प्रावार पेशियाँ पायी जाती है जो प्रावार रेखा के साथ कवच से जुड़ी रहती है।

देहगुहा (Body cavity)

यूनियो की देहगुहा हीमोसील में (haemocoel) में रूपान्तरित होती है। इसकी देहगुहा में हीमोलिम्फ (haemolymph) भरा रहता है। वास्तविक देहगुहा (coelom) केवल, हृदयावरण (pericardium), जनन ग्रन्थि की गुहा (gonocoel) एवं उत्सर्जी अंग की गुहा (urocoel) के रूप में निरूपित रहती है।

गमन (Locomotion)

यूनियो अपने पेशीय पाद की सहायता से गमन करता है। यूनियो एक बहुत ही सुस्त व धीमी गति से गमन करने वाला प्राणी है। इसका पाद हल (plough) के आकार का होता है जो मिट्टी या रेत को खोदने के अनुकूल होता है। पाद मिट्टी या रेत में गमन करने के अनुकूल होता है। गमन के समय खुले हुए कपाटों के बीच से पाद बाहर निकाला जाता है। पाद को बाहर निकालने के लिए दो पेशियाँ पायी जाती है जिनके संकुचन से पाद कवच से बाहर निकलता है। ये पेशियाँ अग्र व पश्च सिरे पर अग्र वे पश्च अभिवर्तनी पेशियों के समीप स्थित होती हैं, उन्हें अग्र आकंचक पश्च आकुंचक पेशियाँ (anterior protractor and posterior protractor muscles) कहते हैं। पेशियों के साथ-साथ रुधिर दाब भी पाद की गति में सहायक होता है। गति करते समय आम पेशियों के सिकुड़ने के कारण पाद मिट्टी में घुस जाता है तथा रूधिर दाब के कारण रूधिर पनि रक्त कोटरों में भर जाता है, जिससे पाद का अगला सिरा फूलकर मिट्टी में लंगर की तरह कर जाता है। अब पेशीय संकुचन से यह शरीर को आगे खींचता है। इस क्रिया के बाद पाद की रूधित कोटरों से रक्त पुनः चला जाता है व पाद संकरा हो जाता है। इस क्रिया को बार-बार दोहरा की यूनियों सतह पर गमन करता है।