मृदा में सोडियम खनिज तत्व के स्रोत क्या है , पौधों में सोडियम की कमी के लक्षण उपचार , पादप में सोडियम पोषक तत्व के कार्य
जाने मृदा में सोडियम खनिज तत्व के स्रोत क्या है , पौधों में सोडियम की कमी के लक्षण उपचार , पादप में सोडियम पोषक तत्व के कार्य ?
- सोडियम (Sodium, Na)
स्रोत (Source).
यह मृदा विलयन में सोडियम आयन (Nat) के रूप में उपलब्ध होता है।
कार्य (Functions)
सोडियम की आवश्यकता C पादपों तथा क्रैसुलेसिअन एसिड मैटाबॉलिज्म (CAM) युक्त पादपों में फास्फोइनोल पायरूवेट (Phosphoenol pyruvate, PEP) के पुनर्जनन (regeneration) के लिए होती है। कुछ C, पादपों में यह पोटेशियम को विस्थापित कर देता है।,
न्यूनता के लक्षण (Deficiency symptoms)
सोडियम की कमी के कारण हरिमाहीनता, ऊतक क्षय तथा पुष्पन की कमी होती है।
न्यूनता रोगों व लक्षणों का उपचार ( Treatment for deficiency diseases and symptoms)
प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र (ecosystem) में पादपों द्वारा अवशोषित लवण इत्यादि उनकी मृत्यु के बाद विघटन के फलस्वरूप पुनः मृदा में मिल जाते है। कृषि – पारिस्थितिकी तंत्र में ऐसा संभव नहीं हो पाता क्योंकि पादपों द्वारा अवशोषित पोषक पदार्थों का मुख्य भाग कृषि उत्पाद के रूप में प्रयोग कर लिया जाता है एवं कम से कम कुछ सालों / समय के लिए उनके पुर्नचक्रण (recyling) का मार्ग अवरूद्ध हो जाता है। अतः विशेष रूप से कृषीय भूमि में पोषक पदार्थों की कमी हो जाती है जो पादपों में न्यूनता लक्षणों के रूप में परिलक्षित होती है।
पोषक पदार्थों की न्यूनता को दूर करने के लिए सामान्यतया मृदा में उर्वरक डाल कर खनिज तत्वों की आपूर्ति की जाती है। इसके लिए रासायनिक एवं कार्बनिक उर्वरकों का प्रयोग किया जाता है। रासायनिक उर्वरकों में क्रांतिक तत्व (critical elements) नाइट्रोजन, फास्फोरस एवं पोटाशियम के अकार्बनिक लवण शामिल किये जाते हैं जैसे सुपर फास्फेट, अमोनियम नाइट्रेट इत्यादि क्योंकि ये तत्व सर्वाधिक मात्रा में आवश्यक हैं व कृषि मृदा में इन्ही की सर्वाधिक कमी पाई जाती है। मृदा में न्यूनता को ठीक करने के लिए सूक्ष्म पोषक तत्व भी मृदा में मिलाए जाते हैं। इसके अतिरिक्त मृदा के pH को पोषक तत्वों के अधिकतम अवशोषण के अनुकूल बनाने के लिए भी रसायन मिलाए जाते हैं। अम्लीय मृदा में चूना तथा क्षारीय मृदा में सल्फर मिलाया जाता है। रासायनिक उर्वरकों के भी हानिप्रभाव होते हैं अतः बहुधा कार्बनिक अथवा जैविक उर्वरकों का उपयोग किया जाता है जिससे सूक्ष्म जीवों की सक्रियता के कारण पोषक तत्व धीरे-धीरे मृदा में मोचित होते हैं तथा पादप मूल द्वारा अवशोषित किये जाते हैं। अधिकांशतः- रासायनिक एवं जैविक उर्वरकों का समन्वित उपयोग किया जाता है। पर्णीय पोषण (Foliar nutrition)
कुछ खनिज पोषक पदार्थ वृद्धि हार्मोन एवं उर्वरक तथा अन्य रसायन इत्यादि की आपूर्ति पादप पत्तियों पर छिड़काव द्वारा सीधे ही की जा सकती है। इन पदार्थों का जल में विलयन बना कर उन्हें सीधे ही पत्तियों पर छिड़काव किया जाता है। इस प्रकार पत्तियों पर छिड़काव करके सीधे पादप को पोषण प्रदान करने की विधि पर्णीय पोषण (Foliar nutrition ) कहलाता है। इसके अनेक लाभ हैं-
- पर्णिल अथवा पर्णीय पोषण द्वारा खनिज तत्व अथवा हार्मोन इत्यादि पोषक पदार्थ वांछित ऊतकों जैसे पर्णमध्योतक इत्यादि तक शीघ्र ही पहुँच जाते हैं। इस विधि में पोषक पदर्थों की आपूर्ति करने के समय तथा उपयुक्त अंग क पहुँचने में अंतराल कम होता है।
- यह मिट्टी के द्वारा पोषण प्रदान करने की अपेक्षा अधिक सस्ता है विशेष रूप से महंगे पोषक तत्व इत्यादि इस विधि से दिये जा सकते हैं।
- पुष्पन एवं फल परिवर्धन के दौरान नाइट्रोजन एवं फास्फोरस उर्वरकों की इस विधि से छिड़काव करने पर फलों का उत्पादन एवं अनाजों में प्रोटीन की मात्रा बढ़ जाती है।
- सामान्य मृदा से अवशोषण प्रक्रिया में कुछ लवणों का अवशोषण अन्य की अपेक्षा केम होता है अथवा किसी क आयन की अधिकता दूसरे ऑयन / लवण के अवशोषण में बाधा डालती है। पर्णीय पोषण द्वारा इस समस्या से निजात मिल सकती है। यह विशेष रूप से आयरन, कॉपर एवं मैंगनीज तत्वों के लिए विषेष रूप से लाभदायी है।
पर्णीय पोषण के लिए समान्यतः संबंधित लवण पत्ती पर एक परत के रूप में होने चाहिये इसके लिए लवणों के विलयन में एक पृष्ठ संक्रियक (surfactant) जैसे Tween 20 भी डाला जाता है। सामान्यतः पत्तियों से अवशोषण रंध्रों (stomata), रोम (trichome), क्षत (wounds) तथा कभी-कभी क्यूटिकल के मध्य से होता है। पत्तियों को क्षति से बचाने के लिए छिड़काव अपेक्षाकृत निम्न तापमान व नम वातावरण में करना चाहिये ताकि विलयन के वाष्पन (evaporation) से हानि न हो। पर्णीय पोषण विशेष रूप से वृक्षों एवं बेलों (जैसे अंगूर इत्यादि) के लिए अधिक लाभदायक है।
खनिज तत्वों के अविषालु प्रभाव एवं लक्षण (Toxic effects and symptoms of mineral elements)
मृदा में अनेक खनिज तत्व पाये जाते हैं जो पादपों के लिए अत्यंत सूक्ष्म मात्रा में जरूरी होते हैं। इनके अतिरिक्त ऐसे खनिज तत्व भी होते हैं जो पौधे की वृद्धि के लिए आवश्यक नहीं होते। इनकी मात्रा मृदा में बढ़ जाने पर ये पौधों को हानि पहुँचाते हैं। सामान्यतः पौधों द्वारा अधिक मात्रा में वांछनीय खनिज तत्व (जैसे N एवं K+) मृदा में अधिक सांद्रता होने पर भी हानिकारक नहीं होते हैं। सूक्ष्म पोषक तत्वों में भी कुछ तत्वों की सुरक्षित सीमा (safe range) अधिक होती है जैसे Mn एवं Mg इसके विपरीत कुछ तत्वों की जरा सी मात्रा बढ़ जाने पर वे हानिकारक होते हैं। विभिन्न पादपों की इन तत्वों के प्रति सुग्राहिता (susceptibility) भी भिन्न-भिन्न होती है।
सामान्यतः इन तत्वों के हानिकारक प्रभाव सीधे कोशिकाओं पर प्रभाव के कारण होते हैं। कभी-कभी किसी विशेष तत्व की अधिकता के कारण किसी दूसरे तत्व के अवशोषण एवं स्वांगीकरण में बाधा आती है एवं उस तत्व की न्यूनता के लक्षण दिखाई देते है। मिट्टी में सोडियम Na की अधिकता होने पर पादप में कैल्शियम (Ca) की कमी हो जाती है। कुछ तत्व प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष दोनों प्रकार से पादप को प्रभावित करते हैं जैसे कॉपर (Cu), एवं जिंक (Zn) ।
मृदा में उपस्थित सोडियम के विभिन्न लवणों (NaCl, Na2 SO 4, NaCO3) की अधिकता से मृदा का pH मान बढ़ जाता है। इसके कारण मिट्टी क्षारीय हो जाती है। कुछ पादपों में यह क्षारीयता अधिक क्षति पहुँचाती है (जैसे गेंहू) जबकि कुछ अन्य क्षारीयता के प्रति कम संवेदी होते हैं जैसे चुकन्दर, घास इत्यादि ।
पादपों में हरिमाहीनता (chlorosis), स्तम्भीय (stunted) वृद्धि, ग्लानि ( wilting ), पर्ण (leaf burn) इत्यादि लक्षण दिखाई देते हैं। कभी-कभी तरुण पादपों की मृत्यु भी हो जाती है। अनेक शीतोष्ण प्रदेशों में शीतकाल में जमी बर्फ हटाने के लिए प्रयुक्त नमक की अत्यधिक मात्रा के कारण सड़क के किनारे उगे वृक्षों की वृद्धि कम हो जाती है।
भारी धातुएं जैसे कॉपर, कोबाल्ट, जिंक, निकल इत्यादि पादपों को सूक्ष्म मात्रा में ही उपलब्ध होते हैं तथा सूक्ष्म मात्रा में आवश्यक होते हैं। परन्तु खनन, म्यूनिसिपल कचरे का निस्तारण इत्यादि के कारण मृदा में इनकी मात्रा बढ़ गई है जो पादपों के लिए विषैली एवं नुकसानदेह होती है। इसके अतिरिक्त अनेक ऐसी भारी धातुएँ भी है जो पोषक तत्वों में शामिल नहीं हैं तथा पौधों के लिए अत्यंत हानिकारक हैं जैसे पारा (Hg), चांदी (Ag), क्रोमियम (Cr) एवं लैड (Pb)।
अधिकांश भारी धातुएँ ऊतकों में आक्सीकरण कर उन्हें क्षतिग्रस्त कर देती हैं। DNA का क्षतिग्रस्त होना, प्रोटीन के सल्फाहाइड्रिल समूह का आक्सीकरण एवं लिपिड का परॉक्सीकरण कुछ ऐसे ही प्रभाव हैं।
बोरॉन, मैंगनीज एवं कॉपर से अधिकांश पादपों में हानिकारक प्रभाव होते है। एल्यूमिनियम एवं आयरन अम्लीय मृदा में अधिक हानिकारक होते हैं। मैंगनीज की अधिकता के कारण कपास में व्याकुंचन पर्ण रोग (crinkle leaf disease) एवं सेब की “रेड डिलीशियस” नामक किस्म व अनेक पादपों में भीतरी छाल में ऊतकक्षय ( necrosis ) हो जाता है।
इस समस्या से निवारण के लिए वैज्ञानिक खनिज बहुल मृदा में प्राकृतिक रूप से उगने वाले पादपों का अध्ययन कर रहे है। उदाहरण के तौर पर सेबर्शिया एक्यूमिनेटा (Sebertia acuminata) नामक न्यूकैलेडोनिया में पाया जाने वाला पादप अपने शुष्क भार का लगभग 20% तक निकल (Ni) एकत्रित कर लेता है। इनके अध्ययन से कुछ जानकारी मिली है जिससे ज्ञात होता है कि ये पादप किस प्रकार इन भारी धातुओं व आयनों से सामंजस्य (cope) बैठाते है। मुख्यतः दो प्रक्रियाः कारगर होती हैं।
(i) भारी धातु के साथ कार्बनिक अणु जुड़ कर उन निराविषीकरण (detoxification) कर देते है। (ii) कोशिका रसधानी में ही अलग कोष्ठी करण (compartmentation) कर दिया जाता है। इसकी प्रक्रिया क्रियाविधि को समझकर इन्हें अन्य पादपों में भी प्रयोग किया जा सकता है।
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