मृदा में मैंगनीज के स्रोत , पौधों में जिंक के कार्य क्या है , पादप में तांबा कॉपर की कमी के लक्षण , पेड़ में क्लोरीन की न्यूनता के उपचार
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- मैंगनीज (Manganese M
स्रोत (Source)
मैंगनीज मृदा में ऑक्साइड (मैंगनीज डाइ आक्साइड MnO2) के रूप में पाया जाता है परन्तु पादपों द्वारा अवशोषण Mn2+ आयन के रूप में होता है । अम्लता के साथ-साथ इसकी विलेयता बढ़ती जाती है एवं कभी-कभी इसकी सांद्र आविषालु (toxic) स्तर तक पहुँच जाती है। क्षारीय मृदा में इसकी उपलब्धता कम होती है। ”
कार्य (Functions)
- सामान्यतः शारीरी (physiologically) एवं उपापचयी (metabolically) रूप से अधिक सक्रिय पादप अंगों में इसकी सांद्रता अधिक होती है।
- यह विभिन्न उपापचयी क्रियाओं से संबंधित अनेक एन्जाइमों जैसे B- कार्बोक्सीलेज (B carboxylase), नाइट्रेट रिडक्टेज (Nitrate reductase), मैलिक डिहाइड्रोजिनेज (Maleic dehydrogenase), परॉक्सीडेज (Peroxidase), ऑक्सेलो सक्सीनिक डिकार्बोक्सीलेज (Oxalo succinic decarboxylase) सक्रियक (activator) के रूप में कार्य करता है।
- यह क्लोरोफिल के संश्लेषण के लिए आवश्यक होता है।
- यह प्रकाश संश्लेषण के दौरान प्रकाशिक अभिक्रिया (light reaction) में इलैक्ट्रान कैरियर के रूप में कार्य करता है ।
- यह Fe2+ को Fe 3+ आयन में परिवर्तित कर उसकी विलेयता को प्रभावित करता है।
न्यूनता के लक्षण (Deficiency symptoms)
मैंगनीज न्यूनता के लक्षण प्रौढ़ पत्तियों में पहले विकसित होते है।
- पत्ती में हरिमाहीनता विकसित हो जाती है।
- अधिक न्यूनता की स्थिति में प्रभावित अंग भूरे रंग का हो जाता है जो सर्पिल आकार में ऐंठ जाता है तथा झ जाता है।
- मूल तंत्र का विकास कम हो जाता है, अधिक कमी होने पर मृत हो जाते हैं।
- प्रकाश संश्लेषण, विशेषकर प्रकाशिक अभिक्रिया की दर बहुत कम रह जाती है।
- कुछ पादपों में विशिष्ट रोग हो जाते हैं, जैसे
(i) जई में ग्रे स्पैक रोग (gray spec disease)- राई (rye), गेहूँ मक्का व जई आदि मे सामान्यतः निचली तीसरी चौथी पत्तियों में धारियों में मटमैली सलेटी से धब्बे बन जाते हैं। ये आपस में जुड़ जाते हैं व भूरी धारियाँ बनाते हैं।
(ii) चुकंदर में कलंकित पीला (speckle yellow of beet) रोग में शिराओं के बीच में स्थित ऊतक हरिमाहीनता के कारण पीले पड़ जाते हैं। सामान्यतः पत्ती के किनारे पत्ती की ऊपरी सतह की ओर मुड़ जाते हैं।
(iii) गन्ने में अंगमारी (Blight of sugarcane) में हरिमाहीनता के कारण लंबी धारियों में पीले धब्बे बन जाते हैं जो बाद में लाल रंग के हो जाते हैं तथा अक्सर आपस में संलयित हो, बड़े धब्बे बना देते हैं ।
उपचार (Treatment )
सामान्यतः मृदा में मैंगनीज लवणों के मिलाने से अधिक लाभ नहीं होता। इसके लिए MnSO4 (0.5%) एवं चूने का पत्तियों पर छिड़काव प्रभावी रहता है।
- जिंक (Zinc, Zn)
स्रोत (Source)- यह मिट्टी में अल्प मात्रा में ही पाया जाता है। पादप इस का अवशोषण Zn 2+ आयन के रूप में करते हैं। क्षारीय मृदा में इसकी उपलब्धता कम हो जाती है।
कार्य (Functions)
पादप शरीरक्रियाविज्ञान एवं जैव रसायन
- यह ऑक्सिन के पूर्वगामी (precursor) ट्रिप्टोफान (tryptophan) के संश्लेषण में महत्वपूर्ण योगदान देता है तथा
अप्रत्यक्ष रूप से वृद्धि एवं शीर्षस्थ प्रभावितां (apical dominance) को बनाये रखने में सहायता करता है।
- जिंक लगभग 70 एन्जाइमों को सक्रिय करने में सहायक होता है तथा अनेकों का एक महत्वपूर्ण घटक होता है, उदाहरणतः कार्बोनिक एनहाइड्रेज (carbonic anhydrase), एल्कलाइन फास्फटेज़ (alkaline phosphatase), डिहाइड्रोजिनेज (dehydrogenase), आइसोमरेज (isomerase), एल्डोलेज (aldolase), कार्बोक्सीपेप्टाइडेज (car- boxypeptidase) इत्यादि ।
- यह फस्फोरस उपापचय को प्रभावित करता है।
- R संश्लेषण के लिए आवश्यक होता है।
- कान डाईआक्साइड के उपयोग एवं कार्बोहाइड्रेट उपापचय के लिए आवश्यक है।
- जिंक एवं क्लोरोफिल संश्लेषण में प्रत्यक्ष (सीधा संबंध देखा गया है।
न्यूनता के लक्षण (Deficiency symptoms)
जिंक की न्यूनता के लक्षणों पर पर्यावरणीय कारकों का भी प्रभाव पड़ता है। सामान्यतः ये लक्षण अधिक प्रकाश तीव्रता (high light intensity) एवं उच्च तापमान वाले क्षेत्रों में अधिक पाये जाते हैं एवं छाया में रखने पर इन के लक्षणों में कमी आती है।
1.परिपक्व पत्तियों में अन्तराशिरीय हरिमाहीनता ( chlorosis) आ जाती है एवं श्वेत ऊतकक्षयी (necrotic) क्षेत्र विकसित हो जाते हैं।
- पत्तियां चर्मिल (leathery) हो जाती हैं।
- पर्व का आकार व वृद्धि कम हो जाती है एवं पादप स्तम्भित (stunted) दिखाई देता है।
- पत्तियों का आकार छोटा हो जाता है तथा पत्तियों के किनारे विकृत, ऐंठे हुए एवं लहरदर हो जाते हैं।
- अनेक पादपों में छोटी-छोटी शाखाओं पर पत्तियाँ रोजेट क्रम में हो जाती है तथा आकार में छोटी होती हैं। इसे ‘लघुपर्ण’ (little leaf) कहते हैं।
- मक्का में श्वेत कलिका रोग (white bud disease) हो जाता है जिसमें पादप स्तम्भित (stunted) तथा फूल व फलों की संख्या काफी कम हो जाती है।
- फ्लोएम विरूपित (malformed) हो जाता है।
उपचार (Treatment)
मिट्टी 10-30 kg / हेक्टेयर के हिसाब से ZnSO4 डालने से रोकथाम की जा सकती है, इसमें बराबर मात्रा में चूना मिलाकर विलयन बना कर छिड़काव से भी लाभदायक परिणाम होते हैं। क्षारीय मृदा में इसके साथ-साथ सल्फर एवं अमोनियम सलफेट भी मिलाया जाता है।
- मोलिबिडनम (Molybdenum, Mo)
पादप को अत्यंत सूक्ष्म मात्रा में Mo की आवश्यकता होती है।
स्रोत (Source)
यह मृदा में अति अल्प मात्रा में पाया जाता है तथा मोलीबडेट (MnO24 or HMoO4 ) के रूप में पादपों द्वारा अवशोषित किया जाता है। इसके अलावा यह सूक्ष्म मृदा कणों पर अधिशोषित ( adsorbed ) विनिमयशील (exchangeable) अवस्था में तथा कार्बनिक पदार्थों एवं खनिज तत्व के रूप में भी पाया जाता है। इसका पादपों द्वारा अवशोषण मृदा में अन्य तत्वों की उपस्थिति पर भी निर्भर करता है।
कार्य (Functions)
इनके कार्यों के बारे में पूरी जानकारी नहीं है।
- यह अनेक विकरों जैसे नाइट्रोजिनेज (nitrogenase), नाइट्रेट रिडक्टेस (nitrate reductase), सक्सीनिक डिहाइड्रोजिनेज (succinic dehydrogenase) का मुख्य घटक है। यह नाइट्रेट नाइट्राइट परिवर्तन के दौरान इलेक्ट्रान वाहक के रूप में कार्य करता है। इन कारणों से यह कारक नाइट्रोजन यौगिकीकरण एवं नाइट्रेट उपापचय में आवश्यक है। इसकी उपस्थिति में लेग्यूमी जड़ों में अधिक मूल ग्रंथिकाएं बनती हैं।
- इसका एस्कोर्बिक अम्ल के उपापचय में भी महत्वपूर्ण योगदान है तथा यह अम्ल क्लोरोप्लास्ट की सक्रियता को बनाये रखने में मदद करता है।
न्यूनता के लक्षण (Deficiency symptoms)
- न्यूनता के लक्षण निचली एवं परिपक्व पत्ती में पहले दिखाई देते हैं। पत्तियों की वृद्धि ठीक से नहीं हो पाती तथा पत्तियों में हरिमाहीनता ( chlorosis) के कारण चितकबरे व हलके पीले धब्बे बन जाते है।
- पुष्पन बहुत हो जाता है तथा अधिकांश पुष्प फल बनने से पहले ही झड़ जाते हैं।
- अत्यधिक कमी होने पर पत्तियों में ऊतकक्षय होता है।
- सहजीवी लेग्यूमी पादपों में मूल ग्रंथिकाएं कम बनती हैं तथा नाइट्रोजन का यौगिकीकरण कम हो जाता है।
5.जई (oats में दानें नहीं बन पाते।
- ब्रेसिका की प्रजातियों में (जैसे गोभी) व्हिप टेल (whip tail) नामक रोग हो जाता है जिसमें पत्ती की मध्य शिरा के पास पारभासी (translucent) धब्बे बन जाते हैं। पत्ती विकृत होने तथा पत्ती के अग्र बिंदु के मृत हो जाने से यह कोड़े (whip) के समान प्रतीत होती है ।
उपचार (Treatment)
सामान्यतः इस की कमी जई, लेग्यूमी पादप, ब्रेसिका इत्यादि में पाई जाती है। मृदा में 0.5-1.0 kg / हैक्टेयर तथा पत्ती पर 0.5% सोडियम अथवा अमोनियम मोलिबडेट विलयन के छिड़काव द्वारा उन्हें उपचारित किया जा सकता है।
- तांबा (Copper, Cu)
स्रोत (Source)
तांबा खनिज रूप में कैलकोपाइराइट (CuFeS) के रूप में पाया जाता है। मृदा में यह अल्पमात्रा में पाया जाता है तथा विलेय अवस्था में क्यूप्रिक (Cutt) अथवा क्यूप्रस (Cut) आयन के रूप में अवशोषित किया जाता है। इसकी अधिक मात्रा पादपों के लिए विषकारी होती है, इसीलिए तांबे की खदानों के पास मिट्टी पौधों के लिए विषाक्त होती है। इसके अवशोषण के बारे में अधिक ज्ञात नहीं है परन्तु कार्बनिक पदार्थ, pH एवं सूक्ष्म जीव सभी का महत्वपूर्ण प्रभाव होता है।
कार्य (Functions)
कार्यों के बारे में अधिक जानकारी नहीं है।
- यह प्लास्टोसायनिन का महत्त्वपूर्ण घटक है, अतः प्रकाश संश्लेषण के दौरान इलैक्ट्रॉन स्थानांतरण में इसका महत्वपूर्ण योगदान है।
- यह विभिन्न एन्जाइमों के लिए सक्रियकारक (activator) के रूप में कार्य करता है। इनमें से पोलीफीनोल ऑक्सीडेज (polyphenol oxidase), टाइरोसिनेज ( tyrosinase), लैक्केज (laccase) एवं एस्कॉर्बिक अम्ल ऑक्सीडेज (ascor- bic acid oxidase) इत्यादि मुख्य हैं।
- यह प्रकाश संश्लेषण, श्वसन तथा कार्बोहाइड्रेट एवं नाइट्रोजनी संतुलन के लिए आवश्यक है।
- संभवतः क्लोरोफिल के संश्लेषण व CO2 अवशोषण में सहायक होता है ।
- आक्सीकरण अभिक्रियाओं में उत्प्रेरक का कार्य करता है।
न्यूनता के लक्षण (Deficiency symptoms)
- तरुण पत्तियों की शीर्ष पर हरिमाहीनता (chlorosis) एवं विरूपण (distortion) होने लगता है जो पत्ती के किनारों की ओर बढ़ता जाता है व पत्ते मुरझाने लगते हैं। पर्ण शीर्ष के पीले मटमैले से रंग के कारण यह स्थिति पीली नोक (yellow tip) रोग भी कहलाती है।
- विभिन्न वर्णकों की कमी हो जाती है तथा पत्तियाँ धुंधली दिखाई देती हैं।
- पादप की वृद्धि कम हो जाती है। कायिक अंगों की अपेक्षा प्रजनन अंगों की वृद्धि पर अधिक प्रभाव पड़ता है तथा दाने नहीं बनते।
- कुछ पादपों में रोजेट बनता है, एक ही स्थान पर अनेक कलिकाएं (बहुमुकुलन) बनने लगती हैं तथा गोंद के समान पदार्थ भी निकलने (gumming) लगता है।
- अनेक फलदायी वृक्षों जैसे बेर, नाशपाती, सेब इत्यादि में स्फोटक अथवा शीर्षारंभी क्षय (exanthema or dieback) रोग हो जाते हैं।
13, क्लोरीन (Chlorine, Cl)
स्रोत (Source)
यह मृदा में क्लोराइड आयन (CF) के रूप में पाया जाता है।
कार्य (Function)
इसके कार्यों के बारे में अधिक जानकारी नहीं है। यह जल के प्रकाश अपघटन तथा प्रकाशीय फास्फोरिलीकरण के लिए आवश्यक होती है जिसमें ऑक्सीजन मुक्त होती है। संभवतः इसकी आवश्यकता पत्तियों व जड़ों में कोशिका विभाजन के लिए भी होती है। इसकी उपस्थिति से तम्बाकू में जल की मात्रा बढ़ जाती है। तथा यह कार्बोहाइड्रेट उपापचय को भी प्रभावित करती है।
न्यूनता के लक्षण (Deficiency symptoms)
अधिकांशतः पादप आवश्यकता से अधिक क्लोराइड का अवशोषण करते हैं अतः न्यूनता लक्षण कम ही पाये जाते हैं। क्लोरीन की कमी के कारण पत्तों की वृद्धिं कम हो जाती है, वे मुरझा जाते हैं तथा हरिमाहीनता एवं ऊतक क्षय दर्शाते हैं। कुछ पादपों में काँस्यन (bronzing) भी पाया जाता है। मूल अल्पविकसित तथा मूल शीर्ष के निकट मोटी सी हो जाती हैं।
- कोबाल्ट (Cobalt, Co)
स्रोत (Source)
यह आयरन तथा मोलिबिडनम के साथ ही आयन रूप में (Co2 ) पाया जाता है तथा भारी धातुओं में गिना जाता है।
कार्य (Function)
इसकी आवश्यकता नाइट्रोजन यौगिकीकरण तंत्र की सक्रियता के लिए आवश्यक होती है तथा कुछ एन्जाइयों के सक्रियक के रूप में भी उपयोगी है। विटामिन B12 सहएन्जाइम का घटक है।
हिंदी माध्यम नोट्स
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