भारत भूटान मैत्री संधि 1949 क्या है , संशोधन के मुद्दे भारत भूटान मुक्त व्यापार समझौता-2006 treaty of friendship between india and bhutan in hindi
treaty of friendship between india and bhutan in hindi भारत भूटान मैत्री संधि -1949 क्या है , संशोधन के मुद्दे भारत-भूटान मुक्त व्यापार समझौता-2006 ?
भारत भूटान मैत्री संधि-1949 में संशोधन के मुद्दे
(Issues of Amendment in Indo-Bhutanese Friendship Treaty-1949)
भूटान को प्राप्त होने वाली कुल विदेशी सहायता का 80 प्रतिशत भारत से प्राप्त होता है। साथ ही भारत भूटान की सेना को सैन्य प्रशिक्षण भी देता है। भारत 1949 की भारत-भूटान मैत्री संधि में स्थायी बदलाव करने पर राजी हो गया है। इन बदलावों से भूटान सरकार को विदेश नीति के मामले में सैन्य और अधिक स्वतंत्रता प्राप्त हो सकेगी। संधि की धारा-2 के अनुसार भारत ने स्वीकार किया है कि वह भूटान के आंतरिक प्रशासन में किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं करेगा। धारा-2 में यह प्रावधान था कि भूटान विदेश संबंधी मामलों में भारत द्वारा दी गई राय के अनुसार चलेगा। संधि की धारा-2 में ‘विदेश संबंधों में भारत सरकार की राय के अनुसार मार्गदर्शित’ (Guided by the advice of the Government of India in regard to its external relations) के स्थान पर ‘सहयोग की भाषा’ (स्ंदहनंहम व िब्ववचमतंजपवद) जगह लेगा। इस बदलाव से भूटान को विदेशी मामलों में और अधिक स्वतंत्रता मिल जाएगी। भूटान को यह ध्यान रखना होगा कि विदेशी संबंध निर्धारित करते समय भारत के हितों को चोट न पहुँचे।
भूटान सरकार धारा-2 में संशोधन के साथ-साथ धारा-6. में भी बदलाव करना चाहेगी। धारा-6 भूटान को यह अनुमति देती है कि वह “अस्त्र शस्त्र, गोला-बारूद, मशीन, सैन्य सामग्री या भडारण (Stores) आदि का अपनी शक्ति बढ़ाने या कल्याण कार्य के लिए आयात कर सकता है लेकिन ऐसा वह भारत की अनुमति और सहयोग से ही कर सकता है। भूटान अब बिना भारत की अनुमति लिए गैर-प्राणधातक (Non-Lethal) हथियारों की खरीद कर सकेगा। भारत यह संदेश देना चाहता है कि वह भूटान के हथियारों पर नियंत्रण नहीं रखना चाहता है। संधि की धारा-4 को रद्द कर दिया जाएगा क्योंकि जिस देवानगिरि (Dewangiri) क्षेत्र को लौटाने की बात इसमें की गई है. उस पर पहले ही कार्यवाही हो चुकी है। इस संधि पर हस्ताक्षर पारस्परिक लाभों के लिए हुए थे तब भारत को यह देखना था कि भूटान चीन के प्रभाव में नहीं चला जाएं, जबकि भूटान भारत से अपनी रक्षा करवाना चाहता था। मैत्री और सहयोग संधि (1949) ने दोनों देशों के हितों की रक्षा की है।
भारत-भूटान मुक्त व्यापार समझौता-2006
(India-Bhutan Free Trade Agreement-2006)
28 जुलाई, 2006 को नई दिल्ली में भारत-भूटान के बीच मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे। यह समझौता 10 वर्षों के लिए प्रभावी है। इस समझौते के अंतर्गत भारत, भूटान को तीसरे देशों के साथ उसके व्यापार संचालन तथा भारतीय भू-क्षेत्र के माध्यम से भूटान के एक हिस्से से दूसरे हिस्से में वस्तुओं के आवागमन को सुगम बनाने के लिए पारगमन सुविधाएँ (Transit Facilities) भी प्रदान करता है। भूटान की आवश्यकताएँ मुख्यतः भारत से आयात के जरिए पूरी की जाती हैं। वाणिज्यिक लेन-देन (Commercial Transactions) भारतीय रुपये तथा भूटानी न्गुल्ट्रम (India Rupees and Bhutanese Ngultrum) में किए जाते हैं। भारत, भूटान का सबसे बड़ा व्यापारिक सहयोगी है। दोनों पक्षों ने यह महसूस किया है कि द्विपक्षीय व्यापार बढ़ाने की अभी बहुत संभावनायें हैं। भारत, भूटान को मुख्यतः मशीनरी, यांत्रिक उपकरण, खनिज पदार्थ, परिवहन सामग्री और रासायनिक उत्पाद निर्यात करता है जबकि आयात की जाने वाली प्रमुख वस्तुओं में बिजली, जिप्सम, सिलिकॉन और पोर्टलैंड सीमेंट इत्यादि सम्मिलित हैं।
भारत-भूटान सम्बन्धों में सकारात्मक बिन्दु (Positive Points in India-Bhutan Relations)
भारत एवं भूटान के बीच पारंपरिक रूप से सौहार्दपूर्ण एवं मित्रवत संबंध रहे हैं। दोनों पड़ोसी देश हैं तथा इनमें गहरे सांस्कृतिक संबंध हैं। बौद्ध धर्म का जन्म भारत में हुआ परन्तु भूटान की ज्यादातर जनसंख्या बौद्ध धर्म को मानती है। दोनों देशों ने 1949 में मित्रता एवं सहयोग संधि (Treaty of Friendship and Cooperation) पर हस्ताक्षर किए थे। इस संधि में दीर्घकालीन शांति एवं मित्रता (Perpetual Peace and Friendship), मुक्त व्यापार एवं वाणिज्य और एक-दूसरे देश के नागरिकों के लिए समान न्याय (Equal Justice to each Others Citçens) का प्रावधान किया गया था। इस संधि में हाल ही में कुछ परिवर्तन किए गए हैं। इसके तहत भूटान की विदेश एवं रक्षा नीति के संदर्भ में भारत पर निर्भरता कम हुई है।
भूटान की आधारभूत संरचना के विकास में भारत सक्रिय रूप से सहभागी रहा है। सीमा सड़क संगठन द्वारा 1961 में दंतक (Dantak) परियोजना शुरू की गई थी। यह सड़क, बाँध, टेलीकम्युनिकेशन, हेलीपैड (Helipads), ब्रॉडकास्टिंग स्टेशन (Broadcasting Station). कॉलेज, स्कूल, विद्युत स्टेशन, पेट्रोलियम भण्डारण केन्द्र और जल विद्युत आदि निर्माण परियोजनाओं से संबंधित है।
भूटान के विकास के लिए भारत भारी मात्रा में वित्तीय सहायता उपलब्ध कराता है। भारत ने भूटान की दसवीं पंचवर्षीय योजना (2008-13) में 3400 करोड़ रुपए की मदद देने का लक्ष्य रखा है।
भारत की भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण (Geological-Survey of India – GSI) संस्था ने भूटान के खनिज भंडारों की खोज में सहायता की है। जीएसआई (GSI) ने भूटान में सीमेंट उद्योग के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। 2003 से जीएसआई की भूटान स्थित इकाई ने काम करना बंद कर दिया है।
भारत-भूटान जल संसाधन के क्षेत्र में एक -दूसरे का सहयोग करते है। भारत का केन्द्रीय जल आयोग (Central Water Commission) भूटान में अनेक परियोजनाएँ चला रहा है।
भूटान सरकार द्वारा भारत विरोधी संगठनों जैसे उल्फा आदि के विरुद्ध की गई कार्रवाई से भारत प्रसन्न है। भूटान के इस कदम से दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंध और भी मजबूत हुए हैं।
भारत महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय मामलों में भूटान का समर्थन करता रहा है। भारत ने वर्ष 1971 में भूटान की संयुक्त राष्ट्र संघ की सदस्यता के लिए सक्रिय प्रयास किया था।
भारत प्रतिरक्षा क्षेत्र में भी भूटान का सहयोगी है। भारत रॉयल भूटानी सेना को सुसज्जित करने के साथ-साथ प्रशिक्षण भी देता है।
भारत-भूटान को जोड़ने वाली पहली रेल लाइन के निर्माण हेतु भारतीय प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने अपनी भूटान यात्रा (2010) के दौरान घोषणा की हैं। इस रेल लाइनका नाम गोल्डन जुबली रेल लाईन (Golden Jubilee Rail Line) होगा।
मुख्य चुनौतियाँ (Major Challenges)
चीन हमेशा से भूटान के लिए खतरा रहा है। चीन ने भूटान के क्षेत्रों पर अपना दावा प्रस्तुत किया था। भूटान को अभी भी चीन से खतरा बना हुआ है। भारत एवं भूटान दोनों को अपने आपसी संबंध निर्धारित करते समय इस तथ्य को ध्यान में रखना होगा।
भूटान हमेशा आर्थिक रूप से भारत पर निर्भर रहा है। उदारीकण और वैश्वीकरण के दौर में भारतीय अर्थव्यवस्था में होने वाले परिवर्तनों के प्ररिप्रेक्ष्य में भारत-भूटान संबंधों को भी परिवर्तित करना होगा।
भारत-भूटान सम्बन्धों का भविष्य (Future of India-Bhutan Relations)
भूटान के नरेश देश में लोकतांत्रिक प्रणाली शुरू किए जाने के संदर्भ में भूटान, भारत के लोकतांत्रिक अनुभवों का लाभ उठा सकता है। भूटान में होने वाले आगामी चुनावों में भारत सहायता कर सकता है।
दोनों देशों के बीच जल विद्युत उत्पादन तथा जल संसाधन प्रबंधन के क्षेत्र में भी सहयोग की व्यापक संभावनाएँ हैं, जैसे बाढ़ पूर्वानुमान, नदी जल के संदर्भ में सूचनाओं का आदान-प्रदान तथा जल संसाधन प्रबंधन आदि।
भूटान में पर्यटन एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें आपसी सहयोग की व्यापक संभावनाएं निहित हैं।
यह आशा की जा रही है कि आने वाले दिनों में भूटान भी वैश्वीकरण की लहर से बच नहीं पाएगा। यदि आने वाले दिनों में भूटान अपनी बंद अर्थव्यवस्था को खेलता है तो भारत के लिए भूटान में निवेश के व्यापक अवसर उपलब्ध होंगे। इस प्रकार का निवेश आपसी व्यापार की दृष्टि से उत्तम होगा और इससे भूटान को भी लाभ मिलेगा।
वर्तमान वैश्वीकरण के युग में भारत, भूटान को प्रौद्योगिकी क्षेत्र में भी सहायता उपलब्ध करा सकता है।
भारत-भूटान संबंधों में चीन की भूमिका (Role of China in India-Bhutan Relations)
भारत-चीन-भूटानः चीन एवं भूटान के बीच विवाद का मुख्य कारण वर्षों पुराना अनसुलझा सीमा विवाद है। वास्तव में तिब्बत के साथ भूटान के पारंपरिक संबंध रहे थे किन्तु भूटान ने वर्ष 1960 में बड़ी संख्या में तिब्बती शरणाथियों के आने के बाद चीन के साथ अपनी उत्तरी सीमाओं को बंद कर दिया था। वर्ष 1998 में भूटान एवं चीन के बीच भूटान-चीन सीमा पर शंति बनाए रखने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किये गये थे परन्तु आज तक इसका कोई महत्वपूर्ण परिणाम नहीं निकल सका। इसके बदले भूटान को कई बार चीनी घुसपैठ का सामना करना पड़ा जो रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण चुम्बी घाटी (भारत, भूटान एवं चीन के मध्य एक महत्वपूर्ण स्थल) के करीब हुई थी। चुम्बी घाटी (Chumbi Valley) दो कारणों से महत्वपूर्ण है। पहला यह भूटान, भारत एवं चीन की सीमाओं के मध्य एक महत्वपूर्ण स्थल है। यह स्थल सिलिगुड़ी गलियारा (Siliguri Corridor) जो भारतीय मुख्य भूमि को उत्तर-पूर्व भारत और नेपाल को भूटान से जोड़ता है, से मात्र 5 किमी. दूर है और दूसरा तिब्बत एवं सिक्किम के साथ इसकी सीमाएं जुड़ी होने के कारण यह चीन के लिए भू-रणनीतिक (Geostrategic) महत्व का है। ऐसा लगता है कि भूटान में चीन की बढ़ती घुसपैठ भूटान की बजाय भारत के विरुद्ध लक्षित है। ऐसा माना जाता है कि भारत-चीन सीमा विवाद हल हो जाने से भूटान के साथ चीन की सीमा समस्या का स्वतः ही समाधान हो जाएगा।
चीनी सुरक्षा बलों ने 2007 में कई भूटानी सुरक्षा चैकियों को ध्वस्त कर दिया था। ये चैकियाँ भूटान की दोलम घाटी (क्वसंउ टंससमल) में स्थित थीं। भूटानी इस बात से नाराज थे कि उन्हें भारतीयों के साथ घनिष्ठता की कीमत चुकानी पड़ी है। इससे भूटानियों में यह धारणा पैदा हो गयी कि भारत एवं चीन के मध्य भूटान एक बफर राज्य बन गया है।
भूटान एवं चीन ने सीमा विवाद हल करने संबंधी वार्ताओं का 9वाँ दौर जनवरी 2010 को पूरा किया। दोनों पक्ष उत्तर में विवादित भूमि के संयुक्त भूमि सर्वेक्षण (Joint Field Survey) पर सहमत हुए। इसके अंतर्गत कुल 764 वर्ग कि.मी. क्षेत्र आता है। चीन ने जिन क्षेत्रों पर दावा किया है उनमें भूटान के उत्तर पश्चिम में 269 वर्ग कि.मी. और मध्य भूटान में 495 वर्ग कि.मी. क्षेत्र शामिल है। उत्तर-पश्चिम भाग के अंतर्गत समस्ते, हा एवं पारो जिलों में स्थित डोकलाम, सिंचुलुम्पा और शखोताओं नामक स्थान आते हैं। जबकि मध्य भाग के अंतर्गत वांगदुए फोड्रांग (Wangdue Phodrang) जिले में स्थित पसामलुंग एवं जकारलुंग घाटी नामक स्थान हैं। भूटान सरकार ‘एक-चीन नीति’ के प्रति दृढ़ता से प्रतिबद्ध है। भू-राजनीति को ध्यान में रखते हुए भूटान को सीमा निगरानी के लिए. अधिक आत्मनिर्भर होना चाहिए ताकि भारत के साथ सुरक्षा सहयोग को अधिक सुदृढ बनाया जा सके।
भारत-भूटान-चीन के बीच सामरिक स्थायित्व कायम करने के लिए यह जरूरी है कि इसके लिए उच्च स्तरीय राजनीतिक प्रयास किया जाए। यह सामरिक स्थायित्व (Strategic-Stability) इस बात पर निर्भर करेगा कि तीनों देश और विशेषकर भारत-चीन किस प्रकार भूटान की संप्रभुता एवं स्वायत्तता (Sovereignty and Autonomy) को निश्चित करते हुए इसके लिए प्रयास करते हैं। फिलहाल भारत ने चीन-भूटान संबंधों की औपचारिक बहाली, संबंधी रिपोर्टों पर अति प्रतिक्रिया (Over-reaction) न देकर परिपक्वता का ही परिचय दिया है। भारत एवं भूटान दोनों को ही यह ध्यान रखना होगा कि वे चीन के साथ अपने संबंधों को सद्भावनापूर्ण बनाते समय राष्ट्रीय हितों का बलिदान न करें।
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