प्रस्तर युग किसे कहते हैं | पुरापाषाण युग के दौरान उपयोग किए जाने वाले औजारों की प्रमुख विशेषताएं और उपयोग लिखिए
पुरापाषाण युग के दौरान उपयोग किए जाने वाले औजारों की प्रमुख विशेषताएं और उपयोग लिखिए प्रस्तर युग किसे कहते हैं | पुरापाषाण काल की प्रमुख विशेषताएं pdf ? stone age in hindi ?
मानव का उद्भव और विकासः प्राचीन
प्रस्तर युग
मानव प्रजाति के अफ्रीकी पूर्वज
पृथ्वी चार अरब साठ करोड़ वर्षों से अधिक पुरानी है। इसकी परत के विकास से चार अवस्थाएँ प्रकट होती हैं। चैथी अवस्था चातुर्थिकी (क्वाटर्नरी) कहलाती है, जिसके दो भाग हैं, अतिनूतन (प्लाइस्टोसीन) और अद्यतन (होलोसीन)। पहला 20 लाख ई० पू० से 12,000 ई० पू० के बीच था और दूसरा लगभग 12,000 ई० पू० से शुरू होकर आज तक जारी है।
पृथ्वी पर जीवोत्पत्ति लगभग तीन अरब पचास करोड़ वर्ष पूर्व हुई। करोड़ों वर्षों तक जीवन पौधों और पशुओं तक सीमित रहा। मानव धरती पर पूर्व-प्लाइस्टोसीन काल और प्लाइस्टोसीन काल के आरंभ में उत्पन्न हुआ। लगभग साठ लाख वर्ष पूर्व मानवसम (होमिनिड) का दक्षिणी और पूर्वी अफ्रीका में आविर्भाव हुआ। आदिमानव, जो बंदरों से बहुत भिन्न नहीं थे, लगभग तीन करोड़ वर्ष पूर्व पृथ्वी पर प्रकट हुए।
मानव के उद्भव में ऑस्ट्रालॉपिथेकस का आविर्भाव सबसे महत्त्वपूर्ण घटना है। ऑस्ट्रालॉपिथेकस लैटिन शब्द है जिसका अर्थ है दक्षिणी वानर। यह नर वानर था और इस प्रजाति में वानर और मनुष्य दोनों के लक्षण विद्यमान थे। ऑस्ट्रालॉपिथेकस का उद्भव लगभग 55 लाख वर्ष पूर्व से लेकर 15 लाख वर्ष पूर्व हुआ। यह दो पैरों वाला और उभरे पेट वाला था। इसका मस्तिष्क बहुत छोटे आकार (लगभग 400 बनइपब बमदजपउमजतम) का था। ऑस्ट्रालॉपिथेकस में कुछ ऐसे लक्षण विद्यमान थे जो ‘होमो‘ अथवा मानव में पाए जाते हैं। ऑस्ट्रालॉपिथेकस सबसे अंतिम पूर्वमानव (होमिनिड) था। अतः इसे प्रोटो-मानव अथवा आद्यमानव भी कहते हैं।
20 लाख से 15 लाख वर्ष पूर्व पूर्वी और दक्षिणी अफ्रीका में प्रथम मानव कहे जाने वाले मानव होमो हैविलिस का प्रादुर्भाव हुआ। होमो हैविलिस का अर्थ है हाथवाला मानव अथवा कारीगर मानव। इस प्रथम वास्तविक मानव ने पत्थरों को टुकड़ों में तोड़कर और उन्हें तराशकर उनका औज़ार के रूप में इस्तेमाल किया। इसलिए जहाँ भी होमो हैविलिस की हड्डियाँ पाई गई हैं, वहाँ पत्थर के टुकड़े भी मिले हैं। होमो हैविलिस का मस्तिष्क हल्का (500-700 cc) था।
18-16 लाख वर्ष पूर्व पृथ्वी पर सीधे मानव अथवा होमो इरेक्टस का आविर्भाव हुआ। पत्थर का हस्तकुठार (हैंड-एक्स) के निर्माण तथा अग्नि के आविष्कार का श्रेय इसी को दिया जाता है। होमो हैविलिस के विपरीत होमो इरेक्टस लंबी दूरी की यात्राएँ करते थे। इनके अवशेष अफ्रीका के अलावा चीन, दक्षिण एशिया और दक्षिण-पूर्व एशिया में मिले हैं।
मानव के उद्भव में अगला महत्त्वपूर्ण कदम था पृथ्वी पर होमो सेपीयन्स (बुद्धिमान मानव) का आविर्भाव। आधुनिक मानव का उद्भव होमो सेपीयन्स से ही हुआ है। जर्मनी में मिले नियंडर्थल मानव से इसकी काफी समानताएँ हैं। होमो सेपीयन्स का काल 2,30,000 से 30,000 वर्ष पूर्व निर्धारित किया जा सकता है। इसका शरीर छोटा और ललाट संकीर्ण था, लेकिन इसके मस्तिष्क का आकार बड़ा (1200-1800 cc) था।
आधुनिक मानव अथवा होमो सेपीयन्स सेपीयन्स 115,000 वर्ष पूर्व ऊपरी पुरापाषाण काल में दक्षिणी अफ्रीका में प्रकट हुआ। अन्य होमिनिडों की अपेक्षा इसका ललाट बड़ा था और हड्डियाँ पतली थीं। आधुनिक मानव ने विभिन्न प्रकार के कार्यों के लिए अनेक प्रकार के पत्थर के औज़ार बनाए। लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि उसमें बोल पाने की क्षमता थी अथवा नहीं। अभी हाल तक यह माना जाता रहा है कि लगभग 35,000 ई० पू० में भाषा का जन्म हुआ, लेकिन अब भाषा के जन्म का समय 50,000 ई० पू० माना जाता है। आधुनिक मानव का मस्तिष्क अपेक्षाकृत अधिक बड़ा (लगभग 1200-2000 cc) था। मस्तिष्क बड़ा होने की वजह से आधुनिक मानव ज़्यादा बुद्धिमान था और उसमें अपने परिवेश को बदल पाने की क्षमता मौजूद थी।
भारत में मानव प्रजाति
भारतीय उपमहाद्वीप में शिवालिक पहाड़ी इलाके में पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के अंतर्गत पोतवार के पठार में मानव खोपड़ियों के अत्यंत प्राचीन जीवाश्म मिले हैं। इन मानव खोपड़ियों को रामापिथेकस और शिवापिथेकस कहा गया। इनमें होमिनिड की लाक्षणिक विशेषताएँ तो हैं, लेकिन ये वानरों का ही प्रतिनिधित्व करते हैं। रामापिथेकस स्त्री-खोपड़ी है, हालाँकि दोनों एक ही वर्ग के हैं। इसी वर्ग का प्रतिनिधित्व करने वाला एक अन्य जीवाश्म, जो यूनान में प्राप्त हुआ है, लगभग एक करोड़ वर्ष पुराना माना गया है। यह रामापिथेकस और शिवापिथेकस के तिथिनिर्धारण में सहायक हो सकता है, अन्यथा इन खोपड़ियों को 22 लाख वर्ष पुराना माना जाता है। जो कुछ भी हो, इस बात का कोई प्रमाण नहीं मिलता है कि इस जाति का प्रसारण भारतीय उपमहाद्वीप के अन्य भागों में भी हुआ हो। ऐसा प्रतीत होता है कि शिवालिक पहाड़ी इलाके में मिले होमिनिड से भारतीय उपमहाद्वीप में मानव का उद्भव न हो सका और यह प्रजाति लुप्त हो गई।
1982 ई० में मध्य प्रदेश के नर्मदा घाटी अंतर्गत हथनौरा नामक स्थल से होमिनिड की लगभग संपूर्ण खोपड़ी प्राप्त हुई है। इसे होमो इरेक्टस अथवा सीधे मानव की खोपड़ी बताया गया। लेकिन इसका शारीरिक परीक्षण करने के बाद अब इसे आद्य होमो सेपीयन्स माना जाता है।
अब तक होमो सेपीयन्स के अवशेष भारतीय उपमहाद्वीप में कहीं से भी नहीं प्राप्त हुए हैं, हालाँकि श्रीलंका में होमो सेपीयन्स सेपीयन्स के जीवाश्म मिले हैं। यह जीवाश्म लगभग 34,000 वर्ष पूर्व का बताया जाता है। श्रीलंका में यह काल ऊपरी प्लाइस्टोसीन और आरंभिक होलोसीन काल के शिकारी और खाद्य संग्राहक जीवन का है। ऐसा लगता है कि आधुनिक मानव (होमो सेपीयन्स सेपीयन्स) इसी समय दक्षिण भारत में अफ्रीका से समुद्रतट होते हुए पहुँचा। यह घटना प्रायः 35,000 वर्ष पूर्व हुई।
पुरापाषाण युग की अवस्थाएँ
भारतीय पुरापाषाण युग को, मानव द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले पत्थर के औज़ारों के स्वरूप और जलवायु में होने वाले परिवर्तनों के आधार पर, तीन अवस्थाओं में बाँटा जाता है। पहली को आरंभिक या निम्न पुरापाषाण युग, दूसरी को मध्य पुरापाषाण युग और तीसरी को ऊपरी पुरापाषाण युग कहते हैं। लेकिन जब तक महाराष्ट्र के बोरी नामक स्थान से मिले शिल्प सामग्रियों के बारे में पर्याप्त जानकारी नहीं मिल जाती, तब तक मोटे तौर पर पहली अवस्था को 600,000 ई० पू० और 150,000 ई० पू० के बीच; दूसरी अवस्था को 150,000 ई० पू० और 35,000 ई० पू० के बीच; और तीसरी को 35,000 ई० पू० और 10,000 ई० पू० के बीच रख सकते हैं, पर 40,000 ई० पु० और 15,000 ई० पू० के बीच दकन के पठार में मध्य पुरापाषाणयुग तथा ऊपरी पुरापाषाण युग दोनों के औज़ार मिलते हैं।
अधिकांश आरंभिक पुरापाषाण युग हिमयुग में गुजरा है। अफ्रीका में आरंभिक पुरापाषाण युग संभवतः 20 लाख वर्ष पूर्व शुरू हुआ। लेकिन भारत में आरंभिक पुरापाषाण युग 6 लाख वर्ष से अधिक पुराना नहीं है। यह तिथि महाराष्ट्र के बोरी नामक स्थान को दिया गया है जो भारत में किसी भी आरंभिक पुरापाषाण स्थल के लिए प्राचीनतम तिथि है। यहाँ के लोग कुल्हाड़ी या हस्तकुठार (हैंड-एक्स), विदारणी (क्लीवर) और खंडक (चोपर) का उपयोग करते थे। भारत में पाई गई कुल्हाड़ी काफी हद तक वैसी ही है जैसी पश्चिम एशिया, यूरोप और अफ्रीका में मिली है। पत्थर के औज़ार से मुख्यतः काटने, खोदने और छीलने का काम लिया जाता था। आरंभिक पुरापाषाण युग के स्थल अब पाकिस्तान में पड़ी पंजाब की सोअन या सोहन नदी की घाटी में पाए जाते हैं। कई स्थल कश्मीर और थार मरुभूमि में मिले हैं। आरंभिक पुरापाषाणकालीन औज़ार उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले में बेलन घारी में भी पाए गए हैं। जो औजार राजस्थान की मरुभूमि के दिदवाना क्षेत्र में, बेलन और नर्मदा की घाटियों में तथा मध्य प्रदेश के भोपाल के पास भीमबेटका की गुफाओं और शैलाश्रयों (चट्टानों से बने आश्रयों) में मिले हैं वे मोटा-मोटी 100,000 ई० पू० के हैं। शैलाश्रयों का उपयोग मानवों के ऋतुकालिक बसेरे के रूप में किया जाता होगा। हस्तकुठार द्वितीय हिमालयीय अंतर्हिमावर्तन (इंटरग्लेसिएशन) के समय के जमाव में मिले हैं। इस अवधि में जलवायु में नमी कम हो गई थी।
मध्य पुरापाषाण युग में लोग मुख्यतः पत्थर की पपड़ी बनाते थे। ये पपड़ियाँ सारे भारत में पाई गई हैं और इनमें क्षेत्रीय अंतर भी पाए गए हैं। मुख्य औज़ार हैं पपड़ियों के बने विविध प्रकार के फलक, वेधनी, छेदनी और खुरचनी। मध्य पुरापाषाण स्थल जिस क्षेत्र में मिलते हैं मोटे तौर पर उसी क्षेत्र में प्रारंभिक पुरापाषाण स्थल भी पाए जाते हैं। यहाँ हम एक प्रकार के सरल बाटिकाश्म उद्योग (पत्थर के गोलों से वस्तुओं का निर्माण) देखते हैं जो तृतीय हिमालयीय हिमावर्तन के समकाल में चलता है। इस युग की शिल्प-सामग्री नर्मदा नदी के किनारे-किनारे कई स्थानों पर और तुंगभद्रा नदी के दक्षिणवर्ती कई स्थानों पर भी पाई जाती है।
भारत में ऊपरी पुरापाषाण काल के 566 स्थल पाए गए हैं। ऊपरी पुरापाषाणीय अवस्था में आद्र्रता कम थी। इस अवस्था में विस्तार हिमयुग की उस अवस्था में हुआ जब जलवायु अपेक्षाकृत गर्म हो गई थी। विश्वव्यापी संदर्भ में इसकी दो विशेषताएँ हैं-नए चकमक उद्योग की स्थापना और आधुनिक प्रारूप के मानव (होमो सेपीयन्स) का उदय। भारत में फलकों (ब्लेड्स) और तक्षणियों (ब्युरिन्स) का इस्तेमाल देखा जाता है, जो आंध्र, कर्नाटक, महाराष्ट्र, केंद्रीय मध्य प्रदेश, दक्षिणी उत्तर प्रदेश, बिहार के पठार में और उनके इर्द-गिर्द पाए गए हैं। मानवों के उपयोग के लायक ऊपरी पुरापाषाणीय गुफाएँ और शैलाश्रय भोपाल से दक्षिण में 40 किलोमीटर दूर भीमबेटका में मिले हैं। गुजरात के टिब्बों के ऊपरी तलों पर ऊपरी पुरापाषाणीय भंडार भी मिला है जिसकी विशेषता है शल्कों (सिंामे), फलकों (इसंकमे), तक्षणिओं (इनतपदे) और खुरचनियों (ेबतंचमते) का अपेक्षाकृत अधिक मात्रा।
इस प्रकार देश के अनेकों पहाड़ी ढलानों और नदी घाटियों में पुरापाषाणीय स्थल पाए जाते हैं। किंतु सिंधु और गंगा के कछारी मैदानों में इनका पता नहीं है।
मध्यपाषाण (मिसोलिथिक) युगः आखेटक और पशुपालक
ऊपरी पुरापाषाण युग का अंत 10,000 ई० पू० के आसपास हिमयुग के अंत के साथ ही हुआ, और जलवायु गर्म व शुष्क हो गई। जलवायु के बदलने के साथ ही पेड़-पौधों और जीव-जंतुओं में भी परिवर्तन हुए, और मानव के लिए नए क्षेत्रों का ओर अग्रसर होना संभव हुआ। 9000 ई० पू० से जलवायु की स्थिति में कोई बड़ा परिवर्तन नहीं हुआ है। प्रस्तरयुगीन संस्कृति में 9000 ई० पू० में मध्यवर्ती अवस्था का आरंभ हुआ जो मध्यपाषाण युग कहलाती है। यह पुरापाषाण युग और नवपाषाण या के बीच का संक्रमण काल है। मध्यपाषाण युग के लोग शिकार करके, मछली पकड़कर और खाद्य वस्तुएँ बटोर कर पेट भरते थे। आगे चलकर वे कुछ पशुपालन भी करने लगे। इनमें शुरू के तीन पेशे तो पुरापाषाण युग से ही चले आ रहे थे, पर अंतिम पेशा नवपाषाण संस्कृति से जुड़ा है।
मध्यपाषाण युग के विशिष्ट औज़ार हैं सूक्ष्मपाषाण या पत्थर के बहुत छोटे औज़ार (माइक्रोलिथ्स)। राजस्थान, दक्षिणी उत्तर प्रदेश, मध्य और पूर्वी भारत में मध्यपाषाण स्थल काफी मात्रा में पाए जाते हैं, तथा दक्षिण भारत में कृष्णा नदी के दक्षिण में पाए जाते हैं। इनमें से राजस्थान में बागोर स्थल का उत्खनन भली-भाँति हुआ है। यहाँ सुस्पष्ट सूक्ष्मपाषाण फलकों का उद्योग था और यहाँ के निवासियों की जीविका शिकार और पशुपालन से चलती थी। इस स्थल पर बस्ती ईसा-पूर्व पाँचवी सहस्राब्दी के आरंभ से 5000 वर्षों तक रही। मध्य प्रदेश में आज़मगढ़ और राजस्थान में बागोर पशुपालन का प्राचीनतम साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं, जिसका समय लगभग 5000 ई० पू० हो सकता है। राजस्थान के पुराने नमक-झील सांभर के जमावों के अध्ययन से प्रतीत होता है कि 7000-6000 ई० पू० के आसपास पौधे लगाए जाते थे।
अभी तक मध्यपाषाण युग की कुछ ही उपलब्धियों का वैज्ञानिक काल-परीक्षण हो पाया है। मध्यपाषाण संस्कृति का महत्त्व मोटे तौर पर 9000 ई० पू० से 4000 ई० पू० तक बना रहा। इसमें संदेह नहीं कि इसने नवपाषाण संस्कृति का मार्ग प्रशस्त किया।
प्राचीनतम कलाकृतियाँ
पुरापाषाण और मध्यपाषाण युग के लोग चित्र बनाते थे। प्रागैतिहासिक कलाकृतियाँ तो कई स्थानों में पाई जाती हैं, परंतु मध्य प्रदेश का भीमबेटका स्थल अद्भुत है। यह भोपाल से 45 किलोमीटर दक्षिण विंध्यपर्वत पर अवस्थित है। इसमें 10 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में बिखरे 500 से भी अधिक चित्रित गुफाएँ हैं। इन गुफाओं के चित्र पुरापाषाण काल से मध्यपाषाण काल तक के बने हुए हैं, और कुछ श्रृंखलाओं में तो हाल के समय तक के हैं। परंतु इनमें अनेकों गुफाएँ मध्यपाषाण काल के लोगों से संबद्ध हैं। इनमें बहुत सारे पशु, पक्षी और मानव चित्रित हैं। स्पष्टतः इन कलाकृतियों में चित्रित अधिकांश पशु-पक्षी वे हैं जिनका शिकार जीवन-निर्वाह के लिए किया जाता था। अनाज पर जीने वाले पचिंग (चमतबीपदह) पक्षी उन आरंभिक चित्रों में नहीं पाए जाते हैं, क्योंकि वे चित्र अवश्य ही आखेट / खाद्य-संग्रह पर आश्रित अर्थव्यवस्था से संबद्ध होंगे।
-कालक्रम-
मानव का उद्भव और विकास
चार अरब साठ करोड़ वर्ष पुरानी पृथ्वी।
तीन अरब पचास करोड़ वर्ष पूर्व पृथ्वी पर जीवोत्पत्ति।
तीन करोड़ वर्ष पूर्व आदिमानव का (जो बंदरों से बहुत भिन्न नहीं
थे) पृथ्वी पर आविर्भाव।
साठ लाख वर्ष पूर्व मानवसम (होमिनिड) का पृथ्वी पर आविर्भाव।
55 लाख वर्ष से लेकर 15 लाख पृथ्वी पर ऑस्ट्रालॉपिथेकस का आविर्भाव।
वर्ष पूर्व के बीच
22 लाख वर्ष पूर्व शिवालिक पहाड़ी इलाके में पाकिस्तान के पंजाब
के अंतर्गत पोतवार के पठार में रामापिथेकस और
शिवापिथेकस की खोपड़ियाँ।
20 लाख वर्ष पूर्व अफ्रीका में निम्न पुरापाषाण काल।
20 लाख-15 लाख वर्ष पूर्व पृथ्वी पर होमो हैविलिस का आविर्भाव।
18-16 लाख वर्ष पूर्व पृथ्वी पर सीधे मानव (होमो इरेक्टस) का आविर्भाव।
700000 वर्ष पूर्व नर्मदा घाटी से आद्य होमो सेपीयन्स की खोपड़ी प्राप्त।
230000-30000 वर्ष पूर्व होमो सेपीयन्स (बुद्धिमान मानव) का आविर्भाव।
115000 वर्ष पूर्व दक्षिणी अफ्रीका में होमो सेपीयन्स सेपीयन्स (आधुनिक मानव)
का प्रकटन।
34000 वर्ष पूर्व श्रीलंका में होमो सेपीयन्स सेपीयन्स के जीवाश्म।
भारत में पाषाणकाल।
प्राचीन प्रस्तर युग
600000 ई० पू०-150000 ई० पू० भारत में निम्न पुरापाषाण काल।
150000 ई० पू०-35000 ई० पू० भारत में मध्य पुरापाषाण काल।
50000 ई० पू० भाषा की शुरुआत।
35000 ई० पू०-10000 ई० पू० भारत में ऊपरी पुरापाषाण काल।
12000 ई० पू० से आज तक नूतन युग (हिमोत्तर काल)।
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