पोमचा क्या है | महिलाओं की ओढ़नी ‘पोमचा’ का रंग कैसा होता है | लहरिया कहां का प्रसिद्ध है
लहरिया कहां का प्रसिद्ध है पोमचा क्या है | महिलाओं की ओढ़नी ‘पोमचा’ का रंग कैसा होता है |
हस्तशिल्प व वास्तुशिल्प
वस्त्र पर हस्तकला
प्रश्न: पोमचा
उत्तर: पोमचा कमल के फूल के अभिप्राय युक्त ओढनी की पीले रंग की रंगाई का एक प्रकार है जिसे राजस्थान में जच्चा । पीहर पक्ष की ओर से भेजने का रिवाज है।
प्रश्न: लहरिया
उत्तर: लहरिया ओढ़नी की रंगाई की सर्वप्रिय भांत है जिसमे प्रायः पचरंगी या खंजरीनुमा गंडादार एक ओर आडी धारियां होती हैं। जयपुर एवं जोधपुर का लहरिया जगत प्रसिद्ध है।
प्रश्न: बन्धेज
उत्तर: बन्धेज ओढ़नी की रंगाई की सर्वप्रिय भांत है जिसमें ओढनी को जगह – जगह से राज मिट्टी के गीले धागे से बांधकर रंगा जाता है। जयपुर
व जोधपुर का बन्धेज सम्पूर्ण देश में प्रसिद्ध है।
प्रश्न: अजरख प्रिंट
उत्तर: यह बाडमेर की छपाई का एक प्रकार है जिसमें कपड़े के दोनों और लाल नीले रंग के ज्यामितिय अलंकरण बनाये जाते हैं। यहाँ की कत्थई काले रंग की प्रिंट मलीर प्रिंट कहलाती है।
प्रश्न: अकोला
उत्तर: अकोला बड़े पैमाने पर अपनी दाबूप्रिंट व बन्धेज रंगाई के लिए जाना जाता है। छीपा जाति द्वारा काम करने के कारण यह छीपों का अकोला
कहलाता है।
प्रश्न: बगरू
उत्तर: बगरू अपनी बगरू प्रिंट के लिए प्रसिद्ध है जिसमें स्याह बगैर रंग के दाबू प्रिंट द्वारा विभिन्न अलंकरण प्रिंट किये जाते हैं।
प्रश्न: सांगानेरी प्रिंट
उत्तर: सांगानेर अपनी ठप्पा छपाई, वेजेटेबल कलर एवं अत्यन्त आकर्षक सुरूचिपूर्ण अलंकरणों के कारण संसार भर में प्रसिद्ध हो गई है। इसमें मुख्यतः लाल व काला रंग का प्रयोग किया जाता है।
प्रश्न: बातिक
उत्तर: बातिक कपडे पर मोम की परत चढ़ाकर एक लम्बे खरीते के रूप में लोक कथाओं के चित्रांकन की एक लोक शैली है। इस काम के लिए खण्डेला सीकर प्रसिद्ध है।
प्रश्न: डोरिया-मसूरिया
उत्तर: कैथून व मांगरोल में डोरिया व मसूरिया साडियों की हस्तनिर्मित बुनाई का एक प्रकार है जो सूत और सिल्क के ताने बाने से निर्मित होती है। यह सम्पूर्ण देश में प्रसिद्ध है।
प्रश्न: मथैरणा कला
उत्तर: बीकानेर के जैन कलाकारों द्वारा धार्मिक पौराणिक कथाओं की आकर्षक भित्ति चित्रण एवं गणगौर आदि की रंगों से आकर्षक सजावट मथैरणा कला के नाम से प्रसिद्ध है।
लघूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न: हस्तशिल्प के विकास में राजसीको की भूमिकाध्योगदान
उत्तर: 1961 में स्थापित राजसीको ने राज्य में विलुप्त हो रही हस्तकला को जीवन्त रखने के लिए नवीन तकनीकी ज्ञान, धन एवं स्थान उपलब्ध करवाया है। इसने अनेक प्रशिक्षण केन्द्र, उत्पाद क्रय केन्द्र, राजस्थली एम्पोरियम एवं शिल्पग्राम, बुड सीजनिंग प्लांट, डिजाइन व. शोध केन्द्रों की स्थापना की है। प्रदशर्नियों, व्यापार मेलों का आयोजन, रियायती दरों पर कच्चा माल उपलब्ध करवाना, निर्यात के लिए इनलैण्ड डिपों व एयर कार्गो कॉम्पलेक्स स्थापित कर हस्तशिल्प को प्रोत्साहन दिया है। इससे हस्तशिल्प निर्यात में वृद्धि हुई है।
प्रश्न: कैथून
उत्तर: कोटा से 15 किलोमीटर दूर बुनकरों का एक गांव है, कैथून। कैथून के बुनकरों (कोली) ने चैकोर बुनाई से बनाई जाने वाली सादी साड़ी को अनेक रंगों और आकर्षक डिजाइनों में बुना है तथा सूती धागे के साथ रेशमी धागे और जरी का प्रयोग करके साड़ी की अलग ही डिजाइन बनाई है। पहले सूत का ताना बुना जाता है फिर सूत या रेशम को चरखे पर लपेटकर लच्छियां बनाई जाती हैं। धागे को लकड़ियों की गिल्लियों पर लपेटा जाता है, फिर ताना-बाना डालकर बुनने का काम किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि 1716 ई. में कोटा राज्य के प्रधानमंत्री झाला जालिमसिंह ने मैसूर से कुछ बुनकरों को बुलाया तथा उनमें से सबसे कुशल बुनकर महमूद मंसूरिया था। उसने सर्वप्रथम यहाँ हथकरघा उद्योग की स्थापना कर साडी बुनना शुरू किया। उसी के नाम से साड़ी का नाम मंसूरिया साड़ी हो गया।
प्रश्न: राजस्थान की शिल्प जातियां
राजस्थान की प्रमुख हस्तशिल्प जातियां निम्नलिखित हैं
1. वस्त्र शिल्पी शिल्पी जाति कार्य
पन्दराध्पिन्जाराध्नद्दाफ – रूई पिंजाई
बुनकर (कोली, बलाई) – वस्त्र बुनना
नीलगर, रंगरेज या छीपा – रंगाई, छपाई
चड़वा या बन्धारा – बन्धेज कार्य
दरजी – सिलाई
2. आभूषण शिल्पी जाति
सुनारध्स्वर्णकार – जेवर का कार्य
जड़िया – नगीनों की जड़ाई
बरकसाज – सोने-चांदी का बक्र
बेगड़ी – नगीनों की कटाई
3. बर्तन शिल्पी जाति कार्य
ठठेराध्कसेराध्कंसारा – धातु के बर्तन बनाना
भरावा – धातु की ढलाई
कलईगर – कलई का काम
4. शस्त्र शिल्पी जाति कार्य
सिकलीगरध्साणगर – हथियार बनाना, तीक्ष्ण करना
लुहार – लोहे के औजार, उपकरण आदि बनाना
5. चूड़ी शिल्पी जाति कार्य
लखेराध्मणियाराध्चूड़ीगर – लाख की चूड़िया
6. काष्ठ शिल्पी जाति कार्य
कार्य खातीध्बढईध्सुथार – लकड़ी का काम
खरादी . – खराद का काम
गांछीध्मेहतर – बांस की टोकरी का कार्य
7. चर्म शिल्पी जाति कार्य
बोळाध्रेगरध्मोची – चमड़े का काम
सक्काध्भिश्ती – मसक का काम
8. मृण्य शिल्पध्टेराकोटा शिल्पी जाति कार्य कार्य
कुम्हारध्कुंभकारध्प्रजापत – मिट्टी के बर्तन, खिलौने बनाना
9. पत्थर शिल्पी जाति कार्य
सलावरध्कारूरध्सुथार – पत्थरों का तराशने का काम
प्रश्न: मोलेला की मृण्मूर्ति शिल्प
उत्तर: तनाथद्वारा के निकट मोलेला ग्राम के कुम्भकार परम्परागत रूप से मिट्टी की बहुत सुन्दर मूर्तियां बनाते हैं। चिकनी मिटर का कूट-छानकर गीली मिट्टी से एक फलक तैयार कर उस पर मिट्टी की लोइयां बनाकर आकृतियों का निर्माण कर उन्हें पकाया जाता है। विभिन्न देवी-देवताओं सहित उनके विविध विषय है। विशेष बात यह है कि मूर्ति बनाते समय पर या कोई औजार काम में नहीं लिया जाता। आदिवासी इनके परम्परागत क्रेता हैं जो मोलेला ही आते हैं। मोहनलाल राष्ट्री पुरस्कार प्राप्त मोलेला शिल्पी हैं।
प्रश्न: बस्सी की काष्ठ कला
उत्तर: चित्तौडगढ़ जिले के बस्सी गांव की काष्ट कला देश-विदेश में ख्याति प्राप्त है जिसके जन्मदाता श्प्रभाव जी सुथारश् माने जाते हैं। बस्सी के कलाकार नक्काशी एवं चित्रकारी युक्त आदमकद गणगौर, कठपुतलियां, पौराणिक चित्रांकित कावड काष्ठ मंदिर बैवाण, विवाह में लड़कियों को दी जाने वाली भेंट के लिए बाजौट, तिलक, कुमकुम के चैपड़े एवं छोटी गणगौर आदि बनाते हैं। इनके अलावा मुखोटे, हाथी, घोड़े एवं पशु पक्षियों के आकर्षक खिलौने आदि यहाँ बनाये जाते हैं। इनकी बिक्री भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी होती है।
निबंधात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न: राजस्थान के हस्तशिल्प के वर्तमान परिदृश्य की विवेचना कीजिए।
अथवा
राजस्थान में हस्तशिल्प या हस्तकला पर एक लेख लिखिए।
उत्तर: हाथों द्वारा कलात्मक एवं आकर्षक वस्तुएं बनाना ही दस्तकारियां कहलाती हैं। राजस्थान की अनेक हस्तशिल्प वस्तुएंदेश-विदेश में प्रसिद्ध
हैं। जिनमें प्रमुख हैं जयपुर की मीनाकारी, कुन्दन, नक्काशी, लाख की चूडियां, चमड़े की जूतियां, धातु व प्रस्तर की प्रतिमायें, खिलौने, वस्त्राभूषण, ब्ल्यू पॉटरी आदि प्रसिद्ध हैं। जोधपुर की कशीदाकारी, जूतियां, बटुए, बादले, ओढनियां, मलमल व बीकानेर की ऊँट की खाल से बनी कलात्मक वस्तुएं, लहरिये व मोठड़े आदि बड़े प्रसिद्ध हैं।
इसी प्रकार शाहपुरा की फड पेंटिंग, प्रतापगढ की थेवा कला, मोलेला की मृण्मूर्ति, बस्सी की काष्ठ कला, कोटा की डोरिया-मसूरियां साडियां, उदयपुर के चन्दन के खिलौने, नाथद्वारा की पिछवाई, सांगानेरी व बगरू हैंड प्रिंट, खण्डेला की बातिक, बाड़मेर की अजरख प्रिंट आदि अनेक राजस्थानी हस्तशिल्प देश – विदेश में प्रसिद्ध हैं।
राजस्थानी हस्तशिल्प विदेशों में पिछले कुछ वर्षों से अधिक लोकप्रिय हो रही है। परिणामस्वरूप इस उद्योग में रोजगार के अवसरों में वृद्धि हुई है। साथ ही समय की मांग के अनुरूप और अधिक आकर्षक व कलात्मक वस्तुएं बनाना आरंभ किया गया है। इसके द्वारा राज्य के आर्थिक विकास में क्षेत्रीय असामानताओं को दूर किया जा सकता है। साथ ही स्थानीय लोगों को वहीं रोजगार उपलब्ध करवाकर अन्यत्र जाने से रोकना भी संभव हुआ है। राज्य में हस्तशिल्प निर्यात विदेशी मुद्रा अर्जन करने का सर्वाधिक अच्छा स्त्रोत है। राजस्थान के आर्थिक विकास में हस्तशिल्प अपना महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। राज्य का हस्तशिल्प विश्वविख्यात है। यह क्षेत्र स्थानीय लोगों को रोजगार ही नहीं प्रदान करता बल्कि इससे विदेशी मुद्रा भी राज्य को प्राप्त होती है। एक मोटे अनुमान के अनुसार राज्य में लगभग 407700 हस्तशिल्प इकाईयां कार्यरत हैं। इनमें से 202212 इकाईयां ग्रामीण क्षेत्रों में तथा शेष 205488 इकाईयां शहरी क्षेत्रों में कार्यरत हैं जिसमें लगभग 6.00 लाख आर्टीजन कार्यरत हैं। राजस्थान के हस्तशिल्पों में मुख्यतः धातु शिल्प, पीतल पर नक्काशी, बन्धेज (टाई एण्ड डाई), तारकशी, मिनिएचर पेटिंग, कशीदा कार्य, एल्युमिनियम टायज, वुडन काविंग फर्नीचर, मार्बल की मूर्तियां, वुडन एण्ड मेटल क्राफ्ट, कारपेट (गलीचा), ब्ल्यू आर्ट पॉटरी, टेराकोटा (मिट्टी के बर्तन), पेपरमेशी, मार्बल स्टोन कारविंग, लकडीध्कागजध्हाथी दांत पर नक्काशी, कोटा डोरिया, थेवा क्राफ्ट, डाईंग एण्ड प्रिटिंग (हाथ ठप्पा छपाई) से सम्बन्धित हस्तशिल्प सम्मिलित हैं। राज्य सरकार द्वारा राज्य म हस्तशिल्प के विकास हेतु हाल में ही राजस्थान हस्तशिल्प एवं हाथकरघा विकास सलाहकार बोर्ड का गठन किया गया है, जो राज्य में हस्तशिल्प के विकास हेतु निसन्देह रूप से एक मील का पत्थर साबित होगा। प्राप्त आंकड़ों के अनुसार अर्न्तराष्ट्रीय मंदी के बावजूद वर्ष 2012-13 में राज्य से ₹ 2362.04 करोड़ के विभिन्न हस्तशिल्प उत्पादों का निर्यात हुआ।
राजस्थान की औद्योगिक नीति 1998 के अन्तर्गत हस्तशिल्प पर विशेष बल दिया गया है। सीडो द्वारा प्रबंधकीय तकनीक और आर्थिक सहायता, यू.एन.डी.पी. व खादी ग्रामोद्योग द्वारा सांगानेर में हस्तशिल्प कागज राष्ट्रीय संस्थान की स्थापना का गई है। राजसीकों द्वारा नवीन तकनीकी ज्ञान, रियायती दर पर कच्चा माल, निर्यात विपणन एवं प्रशिक्षण केन्द्रों की व्यवस्था करके राजस्थान के हस्तशिल्प को सराहनीय योगदान दिया गया है जिससे राजस्थानी हस्तशिल्प की गुणवत्ता एवं मात्रा वृद्धि हुई है। इनकी विदेशों में निरंतर मांग बढ़ रही है तथा निर्यात में लगातार वृद्धि हो रही है।
हिंदी माध्यम नोट्स
Class 6
Hindi social science science maths English
Class 7
Hindi social science science maths English
Class 8
Hindi social science science maths English
Class 9
Hindi social science science Maths English
Class 10
Hindi Social science science Maths English
Class 11
Hindi sociology physics physical education maths english economics geography History
chemistry business studies biology accountancy political science
Class 12
Hindi physics physical education maths english economics
chemistry business studies biology accountancy Political science History sociology
English medium Notes
Class 6
Hindi social science science maths English
Class 7
Hindi social science science maths English
Class 8
Hindi social science science maths English
Class 9
Hindi social science science Maths English
Class 10
Hindi Social science science Maths English
Class 11
Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics
chemistry business studies biology accountancy
Class 12
Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics