पृथ्वी का लगभग कितना प्रतिशत भाग जल से आच्छादित है पृथ्वी का कितना भाग जल में गिरा हुआ है ?
पृथ्वी का कितना भाग जल में गिरा हुआ है पृथ्वी का लगभग कितना प्रतिशत भाग जल से आच्छादित है ?
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
1. पृथ्वी पर पायी जाने वाली भूआकृतियों का विज्ञान अर्थात ……….
(अ) भू-आकृति विज्ञान (ब)समाज विज्ञान (स) नगरीय विज्ञान (द) भौतिक विज्ञान
2. कौन-से भू-वैज्ञानिक भौतिक भूगोल को ‘भौतिक वातावरण का अध्ययन‘ मानते है –
(अ) अर्थर होम (ब)स्ट्राहलर (स) स्पार्कस (द) ज्योमार्कोलॉजी
3. भू-आकृति विज्ञान का किस विज्ञान से संबंध है –
(अ) वनस्पति विज्ञान (ब)जीव-विज्ञान (स) भूगर्भशास्त्र (द) सभी
4. पृथ्वी पर कितने प्रतिशत भाग जल-मण्डल का है –
(अ) 60% (ब) 70.8% (स) 90.8% (द) 80.8%
5. भू-आकृति विज्ञान के उपागम ….
(अ) ऐतिहासिक उपागम (ब) परिमाणात्मक एवं अनुभाविक उपागम
(स) प्रादेशिक उपागम (द) उपरोक्त तीनों
उत्तर- 1 (अ), 2. (अ), 3.(द), 4. (ब), 5. (द)
(2) परिमाणात्मक एंव आनुभाविक उपागम (Quantitative and Empirical approach ) – जिन वृहद् क्षेत्रों में भू-आकृतिक प्रक्रमों द्वारा अत्यधिक अपरदन के कारण प्रारम्भिक अवशिष्ट आकृतियों के बर्षित एवं लुप्त हो जाने के कारण भ्वाकृतिक इतिहास की पुनर्रचना के लिए पर्याप्त प्रमाण का अभाव होता है। वहाँ की स्थलाकृतियों की व्याख्या के लिए ऐतिहासिक उपागम के स्थान पर परिमाणात्मक या आनुभाविक उपागम का सहारा लिया जाता है। वृहदाकार स्थलाकृतियों की भ्वाकृतिक समस्याओं की ब्याख्या तथा निराकरण के लिए उपयोग किए जाने वाले आनुभाविक उपागम के अन्तर्गत स्थलाकृतियों के विभिन्न पक्षों के ज्यामितीय आकारों का मापन तथा उनकी परिणात्मक व्याख्या की जाती है। इस कार्य हेतु आदर्श वाकृतिक क्षेत्रीय इकाई के लिए जलीय उत्पत्ति वाली अपवाह बेसिन का चयन किया जाता है तथा उसके आकारमितिक अध्ययन के लिए उसके रैखिक पहलू बेसिन में विभिन्न श्रेणियों के पदानुक्रम का निर्धारण, सरिता संख्या तथा द्विशाखन अनुपात का परिकलन, सरिता खण्डों की लम्बाई तथा बेसिन क्षेत्र का मापन, लम्बाई एवं क्षेत्रफल अनुपात का परिकलन, इन आकारमितिक विचारों के सम्बन्धों का निर्धारण तथा विभिन्न आकारमितिक नियमों का परीक्षण – क्षेत्रीय उच्चावच पहलू से सम्बन्धित विभिन्न आकारमितिक विचारों का परिकलन तथा सारणीवन करके समुचित व्याख्या की जाती है। मात्रात्मक उपागमन की शुरुआत 1940 दशक में संयुक्त राज्य अमेरिका में हुई। तदन्तर इसका उपयोग विश्व स्तर पर तेजी से प्रारम्भ हो गया एवं 1950 के बाद तो यह सर्वव्यापक हो गया। अतः ऐसी स्थिति में प्राप्त परिणामों का क्षेत्र अध्ययन के आधार पर सत्यापन किया जाता है।
(3) प्रादेशिक उपागम (Regional Approach) – प्रादेशिक उपागम के अन्तर्गत वृहद् क्षेत्रीय स्वाकृतिक प्रदेश के स्थलाकृति समूह का दीर्घकालिक मापक के सन्दर्भ में अध्ययन किया जाता है। इसे मेगा-भू-आकृति विज्ञान या मेसो-भूआकृति विज्ञान कहते है। वास्तव में प्रादेशिक उपागम के तहत प्रादेशिक स्तर से महाद्वीपीय स्तर पर स्थलरूपाों के चक्रीय विकास तथा अनाच्छादन कालक्रम का अध्ययन किया जाता है। वृहद्स्तरी स्थलरूपाों के अध्ययन के उपागमों को तीन वर्गों में रखा जाता है-(i) प्रादेशिक स्तर से उपमहाद्वीपीय स्तर के क्षेत्रों की स्थलाकृतिक विशेषताओं की 10 से 10 वर्ष की अवधि के अन्तर्गत पुराप्रक्रमों के सन्दर्भ में व्याख्या, (ii)उपमहाद्वीपीय एवं प्रादेशिक स्तरों पर 1 से 100 वर्ष की अवधि में वर्तमान प्रक्रमों तथा प्रक्रम एवं स्थलरूपाों में गतिक संतुलन का परीक्षण एवं व्याख्या, तथा (iii)प्रमुख भ्वाकृतिक निर्धारकों का परीक्षण एवं व्याख्या। इस तरह प्रादेशिक उपागम के अन्तर्गत यह देखा जाता है कि विगत पर्यावरणीय दशाओं एवं उनसे सम्बन्धित प्रक्रमों में किस तरह का, कितना और कैस परिवर्तन हुए हैं तथा विगत प्रक्रमों ने धरातलीय सतह को किस तरह परिवर्तित किया है।
(4) क्रमबद्ध उपागम (Systematic approach) – स्थालाकृतियों की व्याख्या के क्रमबद्ध उपागम के अन्तर्गत विभिन्न पर्यावरणीय दशाओं में स्थलरूपाों को निर्मित करने वाले भू-आकृतिक प्रक्रमों के परिचालन के मापन तथा विश्लेषण का सम्मिलित किया जाता है। वास्तव में इस उपागम के अन्तर्गत समकालीन भ्वाकृतिक प्रक्रमों के कार्यकार्यात्मक अध्ययन तथा भूपदार्थों, जिनसे स्थलरूपाों का निर्माण होता है, के व्यवहार तथा प्रक्रमों एवं भूपदार्थों के बीच सम्बन्धों के अध्ययन पर अधिक ध्यान दिया जाता है। कार्यकार्यात्मक उपागम के अन्तर्गत लघु क्षेत्रों में लघु समय के दौरान समकालीन भ्ववाकृतिक प्रक्रमों के परिचालन के पर्यवेक्षण तथा मापन एवं मानीटरिंग तथा प्रक्रमों एवं स्थलरूपाों में कारणात्मक संबंध पर अधिक बल दिया जाता है। साथ ही साथ भविष्य में होने वाले परिवर्तनों की भी भविष्यवाणी की जाती है। इस तरह कार्यकार्यात्मक उपागम का सम्बन्ध प्रक्रम भूआकृति विज्ञान से होता है। स्थलाकृतिक विकास के प्रमुख कारणात्मक कार के आधार पर क्रमबद्ध उपागम को दो उपवर्गों में विभाजित किया जाता है – प्रक्रम-रूपा उपागमन तथा संरचना-रूपा उपागमा।
भू-आकृतिक विज्ञान का भौतिक भूगोल में स्थान (The Place of Geomorphology in Physia Geography) –
भूगोल के प्रारम्भिक विकास भौतिक भूगोल के विकास से ही हुआ। जिसमें पृथ्वी के विभिन्न परिमण्डली स्थलमण्डल, जलमण्डल तथा वायुमण्डल का क्रमबद्ध अध्ययन सम्मिलित किया गया तथा तीनों परिमण्डली के जैविक समुदाय के विकास के लिए अनुकूल दशाओं वाले भौगोलिक क्षेत्र को अलग रुप में पहचान गया जिसे जीवमण्डल कहा गया। भूआकृति विज्ञान भौतिक भूगोल की प्रमुख शाखा के रूपा में विकसित हुई जिसे भूदृश्य का भूगोल भी कहा गया। इसमें स्थलमण्डल की संरचना, संगठन तथा स्वरूपा का अध्यय किया जाता है।
‘भू-आकृति विज्ञान‘ शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम अमेरीकी विद्धान पावेल तथा मेकगी ने 1880 किया। भू-आकृति विज्ञान स्थलरूपाों का विज्ञान है जिसमें मुख्यतः भूपटल की संरचना पर प्रकाश डाला जाता है। भू-आकृति विज्ञान अंग्रेजी भाषा के ‘जियॉमार्कोलोजी‘ शब्द का पर्याय है जीयॉमार्कोलॉजी अर्थ पृथ्वी के आकार या स्वरूपा का वर्णन ही भू-आकृति विज्ञान है। यद्यपि प्रारंभिक समय में भू-आकृति विज्ञान पृथ्वी की भूआकृतियों का विज्ञान माना जाता था लेकिन वर्तमान में यह विस्तृत हुआ है तथा इसमें पृथक तल के विवरण के साथ स्थल रुपों के परिवर्तनशील स्वरूपा, इनके परस्पर अन्तःक्रियात्मक संबंधों, तथा इन संबंधों को बनाये रखने वाले भ्वाकृतिक प्रक्रमों का विभिन्न भौगोलिक कारकों की नियंत्रणकारी भूमि के संदर्भ में अध्ययन किया जाता है।
इस प्रकार भू-आकृतिक विज्ञान वह विज्ञान है जो पृथ्वी तल के उच्चावच लक्षणों का व्याख्यात्मक वर्णन करता है। भू-आकृतिक विज्ञान को केवल पृथ्वी के उच्चावच संबंधी लक्षणों के अध्ययन तक ही सीमित रखा गया है। जबकि प्रो.थार्नबरी ने भू-आकृति विज्ञान में स्थलाकृतियों के अतिरिक्त महासागरीय नित की बनावट एवं द्वीपों को भी समाहित किया हैं, इसी प्रकार मोंकहाउस के अनुसार, “भू-आकृति विज्ञाान भू-आकृतियों की उत्पत्ति और विकास की वैज्ञानिक विवेचना है। जर्मन विद्वान माचेत्सचेक के अनुसार, “पृर के ठोस तल की आकृति का निर्माण करने वाली भौतिक प्रक्रियाओं का तथा उनके द्वारा निर्मित भू-आकृति की जानकारी ही भू-आकृति विज्ञान है।‘‘
इस प्रकार निष्कर्ष स्वरूपा कहा जा सकता है कि भू-आकृति विज्ञान वह विज्ञान है जिसमें भूसा की सामान्य बनावट स्थलरूपाों की उत्पत्ति, विकास, विवरण तथा वर्गोकरण का अध्ययन किया जाता साथ ही इनके अन्तःसंबंधों, संबंद्ध संरचना तथा भू-वैज्ञानिक इतिहास के साथ आये परिवर्तन पर भी प्रक डाला जाता है अनेक विद्वान भू-आकृति विज्ञान (ळमवउवतचीवसवहल) एवं भूआकारिकी विज्ञान (च्ीलेपवहतंचील) को समानार्थी मान लेते हैं जबकि दोनों में पर्याप्त अन्तर है। जिसका हम आगे के अध्यायों में अध्ययन करें।
महत्वपूर्ण प्रश्न
दीर्घउत्तरीय प्रश्न
1. भू-आकृति विज्ञान का अर्थ बताकर उसके क्षेत्र और प्रकृति का वर्णन कीजिए।
2. भू-आकृति विज्ञान का अर्थ, परिभाषाएँ बताते हुए उसके उपागमों की विस्तृत जानकारी दीजिए।
लघुउत्तरीय प्रश्न
1. भू-आकृति विज्ञान का अर्थ बताकर उसकी दो परिभाषाएँ बताईए।
2. भू-आकृति विज्ञान के क्षेत्र को स्पष्ट कीजिए।
3. भू-आकृति विज्ञान के उपागम को स्पष्ट कीजिए।
हिंदी माध्यम नोट्स
Class 6
Hindi social science science maths English
Class 7
Hindi social science science maths English
Class 8
Hindi social science science maths English
Class 9
Hindi social science science Maths English
Class 10
Hindi Social science science Maths English
Class 11
Hindi sociology physics physical education maths english economics geography History
chemistry business studies biology accountancy political science
Class 12
Hindi physics physical education maths english economics
chemistry business studies biology accountancy Political science History sociology
English medium Notes
Class 6
Hindi social science science maths English
Class 7
Hindi social science science maths English
Class 8
Hindi social science science maths English
Class 9
Hindi social science science Maths English
Class 10
Hindi Social science science Maths English
Class 11
Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics
chemistry business studies biology accountancy
Class 12
Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics