पायस क्या है कितने प्रकार के होते हैं , उदाहरण , बनाने की विधि उपयोग अनुप्रयोग EMULSION in hindi
EMULSION in hindi पायस क्या है कितने प्रकार के होते हैं , उदाहरण , बनाने की विधि उपयोग अनुप्रयोग किसे कहते हैं परिभाषा लिखिए |
द्रवों में द्रव पायस (LIQUID IN LIQUID: EMULSION)
पायस ऐसे कोलाइडी विलयनों को कहते हैं जिनमें वितरित प्रावस्था तथा वितरण माध्यम दोनों ही द्रव में हों। अर्थात् द्रव-द्रव सॉल को ही पायस (emulsion) कहते हैं। उदाहरणार्थ, दूध (milk) एक ऐसा पायस है जिसमें द्रव वसाएं जल में वितरित होती हैं।
पायसों के प्रकार (Types of Emulsions) — पायस दो प्रकार के होते हैं
- तेल में जल (Water in Oil, W/O) जब वितरित प्रावस्था के रूप में तैलीय पदार्थ हों और वितरण माध्यम के रूप में जल हो तो तेल में जल (W/O) प्रकार के पायस बनते हैं। मक्खन, कोल्ड क्रीम; आदि इसके सामान्य उदाहरण हैं।
(2).जल म तेल (Oil in Water.o/W) यह उपयुक्त से विपरीत प्रकार का हाता है। इसमें वितरण माध्यम व तैलीय पदार्थ वितरित प्रावस्था होता है। दृद्ध, वैनिशिग क्राम, आदि इस श्रेणी के सामान्य उदाहरण हैं।
कोई पायस तेल में जल है अथवा जल में तेल है, इसे ज्ञात करने की तीन विधियां हैं
(1) सूचक विधि (Indicator method) इस विधि में पायस में कोई ऐसा रंजक डालते हैं जो तेल में। विलयशील हो, अब यदि विलयन रंगीन हो जाए तो वह होगा तेल में जल क्योंकि उसमें मुख्य भाग तेल है जिसमें रंजक घुलकर घोल को रंगीन बना देता है। यदि पायस रंगीन न हो, तो इसका निष्कर्ष यह है कि वह पायस है जल में तेल, क्योंकि उस स्थिति में रंजक तो तेल में घुल गया और विलयन का मुख्य भाग जल रंगहीन ही रहा।
(2) चालकता विधि (Conductivity method)-0W प्रकार के पायसों की चालकता अधिक होती है जबकि W/O प्रकार के पायसों में चालकता की मात्रा कम होती है अतः चालकता प्रयोगों से ज्ञात किया जा सकता है कि पायस O/W प्रकार का है अथवा W/O प्रकार का।।
(3) तनुता विधि (Dilution method)—किसी पायस को वितरण माध्यम की कितनी भी मात्रा के साथ तनु किया जा सकता है लेकिन यदि इसे वितरित प्रावस्था से तनु करेंगे तो उसकी पृथक् सतह बन जाएगी। अतः यदि पायस में जल मिलाने पर सतह पृथक् न हो तो इसका अर्थ है कि वह जल में तेल है। इसके विपरीत, यदि जल डालने पर सतहें पृथक् हो जाएं तो इससे निष्कर्ष निकलता है कि वह पायस तेल में जल है। इनके अतिरिक्त, पायसों की श्यानता से भी पायस की प्रकृति का ज्ञान हो जाता है। तेल में जल अर्थात तैलीय पायसों की श्यानता जल में तेल अर्थात् जलीय पायसों की तुलना में अधिक होती है। साथ ही तैलीय पायस तेल की सतह पर शीघ्रता से फैलते हैं जबकि जलीय पायस जल की सतह पर शीघ्रता से फैलते हैं। इस प्रकार इनके सतह पर फैलने की प्रकृति से भी पायस की प्रकृति का ज्ञान हो जाता है।।
पायस बनाने की विधि (Method of Preparing Emulsion)
किसी पायस को बनाने की क्रियापायसीकरण (emulsification) कहलाती है। उपयुक्त द्रवों को मिलाकर तेजी से हिलाकर अथवा अल्ट्रासोनिक तरंगों द्वारा पायस बनाए जाते हैं। सामान्यतया पायस अस्थायी होते हैं, अतः इनके स्थायीकरण के लिए कुछ पदार्थों जल का प्रयोग किया जाता है जिन्हें पायसीकारक (emulsifires or emulsifying agents) कहते हैं। ये द्रव की सूक्ष्म बूंदों के बीच में एक निश्चित दूरी को बनाए रखते हैं जिससे वे एक-दूसरे के साथ मिलकर द्रव की सतह के रूप में पृथक न हो सकें जैसा कि चित्र 6.12 में प्रदर्शित है। माय पायसीकारक के रूप में साबुन, अपमार्जक (detergents), प्रोटीन, गम (gum), ऐगार, आदि मग किया जाता है। साबुन तथा अपमार्जकों के पायसीकारक गुण के कारण ही इनका उपयोग कपडे। व बर्तन आदि धोने में अपमार्जक के रूप में किया जाता है।
साबुन अथवा अपमार्जक में एक लम्बी हाइड्रोकार्बन शृंखला के सिरे पर एक आयनिक लवणं समूह होता है। उदाहरणार्थ, साबुन सोडियम स्टीयरेट (sodium stearate) C17H35COONa में 17 कार्बन परमाणुओं की एक संतृप्त सहसंयोजक हाइड्रोकार्बन शृंखला होती है जिसे पूंछ (tail) कहते हैं और आयनिक COONa समूह होता है जिसे ‘सिर’ (head) कहते हैं। इसी प्रकार किसी अपमार्जक (detergent) सोडियम डोडेसाइल सल्फेट (sodium dodecyl sulphate) C12H25SO3Na में 12 कार्बन परमाणुओं की एक संतृप्त हाइड्रोकार्बन श्रृंखला ‘टेल’ है व आयनिक समूह ___SO3Na हैड’ है। अतः साबुन अथवा अपमार्जक ONa की संरचना को चित्र 6.13 द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है।
साबुन अथवा अपमार्जक की इस प्रकार की संरचना वाले अणुओं का आयनिक सिरा ध्रुवीय विलायक जल में घुलनशील होता है अर्थात् वह सिरा जलस्नेही’ (hydrophilic-water loving) है जबकि शेष अणु । सहसंयोजक अथवा अध्रुवीय होने के कारण चिकनाई व धूल में घुलनशील होता है जल में नहीं अर्थात् अणु का यह सिरा जलविरोधी’ (hydropholic-water hating) है। किसी साबुन अथवा अपमार्जक की ‘अपमार्जन क्रिया’ (cleansing action) में होता यह है कि चिकनाई व धूल में अपमार्जक का जलविरोधी सिरा मिल जाता है लेकिन उसका दूसरा सिरा जलस्नेही होने के कारण जल में घुला रहता है। इस प्रकार धूलसहित तेल का जल में पायसीकरण हो जाता है। इस प्रकार जब बहुत सारे अणु ऐसी क्रिया करेंगे और साथ में यदि हाथ से मसलने की अथवा गरम जल में उबालने की अथवा धोने को मशीन से हिलाने की क्रिया होगी तो गन्दगी जिस सतह पर चिपकी हुई है वहां से छोटी-छोटी बूंदों के रूप में हटकर जल में फैलने लगेगी और कुछ समय बाद वह सतह गन्दगी से मुक्त हो जाएगी। किसी साबुन अथवा अपमार्जक की अपमार्जन क्रिया को निम्न चित्रों द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है
पायसों के अनुप्रयोग (Applications of Emulsions) |
(1) मानव शरीर में सम्पन्न होने वाली पाचन क्रिया पायसीकरण के बिना सम्भव नहीं है। हम भोजन के साथ जो वसा व घी ग्रहण करते हैं, उसका कुछ भाग आंतों के क्षारीय द्रव द्वारा सोडियम साबुन में बदल। जाता है। इस प्रकार बना हुआ सोडियम साबुन शेष वसा व घी का पायसीकरण कर देता है जिसस वह। आंतों में आसानी से पच जाता है।
(2) उपर्युक्त के अतिरिक्त कई औषधियां, मरहम, क्रीम, लोशन, आदि विभिन्न प्रकार के पायस हा, होते हैं।
(3) घातुकर्म (Metallurgy) में धातु अयस्कों के सान्द्रण में प्रयुक्त की जाने वाली झाग उत्प्लावन विधि (froth floatation process) में भी तैलीय पायस का ही प्रयोग होता है।धात् अयस्क के महीन चूण का जल में डालकर उसमें तैलीय पायस डालते हैं और वाय के बलबलों से झाग उत्पन्न करते ह जिसस शप्प धात्विक योगिक के कण तैरकर सतह पर आ जाते हैं जिन्हें एकत्रित कर लिया जाता है।
विपायसीकरण (Demulsification) किसी पायस को तोड़कर उसके दोनों अवयवों की सतहों को पृथक करने की क्रिया को विपायसीकरण कहते हैं। दूध अथवा दही की मलाई को मथकर उससे मक्खन प्राप्त करने की प्रक्रिया विपायसीकरण का ही उदाहरण है। अपकेन्द्रण (centrifugation) द्वारा दूध से क्रीम को प्रथक करने की क्रिया भी विपायसीकरण का ही उदाहरण है। कुछ तेल कुओं से पेट्रोलियम भी पायस के रूप में प्राप्त होता है जिसे विभिन्न भौतिक अथवा रासायनिक विधियों द्वारा विपायसीकृत किया जाता है।
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