पक्षियों के घोसले या नीड़ वास के बारे में जानकारी , पक्षियों का नीड़-वास और प्रवसन क्या होता है
जाने पक्षियों के घोसले या नीड़ वास के बारे में जानकारी , पक्षियों का नीड़-वास और प्रवसन क्या होता है ?
पक्षियों का नीड़-वास और प्रवसन
नीड़-वास अधिकांश पक्षी नीड़ों या घोंसलों में अंडे देते हैं पर कुछ पक्षी ऐसे हैं जिनके घोंसले नहीं होते। ऐसे पक्षी जमीन के गड्ढों में अंडे देते हैं।
पक्षियों के घोंसले कई प्रकार के होते हैं। अब तक देखे हुए उदाहरणों से यह स्पष्ट है।
अंडे देने के बाद पक्षी उनपर बैठने लग जाता है। आम तौर पर अंडे सेने का काम मादा करती है, पर कुछ प्रकारों में नर भी इस काम में भाग लेता है।
अंडों से निकलनेवाले सभी पक्षि-शावकों को देखभाल की आवश्यकता होती है य पर विभिन्न पक्षियों में इस देखभाल का स्वरूप भिन्न होता है। कुछ बच्चे अंडों से निकलते ही स्वतंत्रतापूर्वक अपना भोजन ढूंढ ले सकते हैं। जहां कहीं उनकी मां जाती है, उसके पीछे पीछे वे भी चले जाते हैं। मुर्गियों और बत्तखों के बच्चे इसके उदाहरण हैं। वे मुलायम परों की परत से ढंके रहते हैं और अपनी आंखों से देख सकते हैं। उनके सुविकसित टांगें होती हैं। उनकी मां एक ‘समूह‘ के रूप में उनका मार्गदर्शन करती है और इसलिए वे समूहजीवी कलहाते हैं। इन्हें शीघ्र-वयस्क कहा जा सकता है। मादा शिकारभक्षी प्राणियों से उनकी रक्षा करती है, भोजन की खोज में उनकी मदद करती है और अपने पंखों का सहारा देकर वर्षा और शीतकाल में उन्हें गरमी पहुंचाती है।
अन्य पक्षियों (रूक , अबाबील , कबूतर इत्यादि ) के नवजात बच्चे बिल्कुल असहाय होते हैं। वे नंगे होते हैं और अधिकांशतः अंधे। ऐसी हालत में वे अपने मां-बाप के पीछे पीछे चलकर स्वतंत्र रूप से अपना भोजन नहीं ढूंढ सकते। मां-बाप अपने असहाय वच्चों के लिए चुग्गा ढूंढकर लाने में सुबह से शाम तक लगे रहते हैं। ये पक्षी विलंब-वयस्क कहलाते हैं। वे बहुत ज्यादा बच्चों को नहीं चुगा सकते इसलिए शीघ्र-वयस्क पक्षियों की तुलना में वे कम अंडे देते हैं।
कोयलें न घोंसले बनाती हैं और न अपने अंडे सेती ही हैं। यद्यपि कोयल का आकार बड़ा-सा (कौए जितना) होता है फिर भी अंडे उसके छोटे छोटे होते हैं। कोयल विभिन्न छोटे पक्षियों के घोंसलों में अंडे देती है। ये पक्षी अपने अंडों के साथ कोयल के अंडों को भी सेते हैं और उसके बच्चों का पालन-पोषण करते हैं। कोयल का बच्चा आकार में उसे खिलानेवाले पक्षियों से कहीं बड़ा होता है (आकृति १२६ )। वही सबसे पहले भोजन हड़प लेता है , जल्दी से बड़ा होता है और दूसरे पक्षियों के बच्चों को घोंसले से ढकेलकर गिरा देता है।
प्रवसन बहुत-से पक्षियों के जीवन में मौसम के बदलने के साथ काफी परिवर्तन आते हैं।
गरमियों में मध्य रूस के वगीचों, जंगलों और खेतों में भिन्न भिन्न पक्षियों की बड़ी चहल-पहल रहती है। पर अगस्त ही में, जबकि मौसम अभी गरम होता है और आगामी शरद की उतनी आहट नहीं लगती, मारटिन दूर उड़ जाते हैं। इनके बाद अबाबीलें अपने झुंड बनाकर गरम देशों की ओर चली जाती हैं। क्रमशः अन्य पक्षी भी उड़ जाते हैं। और आखिर, पाला पड़ने से पहले , दक्षिण की ओर जानेवाले कलहंसों और सारसों की पांतें ऊंचे आसमान में नजर आने लगती हैं । ये जैसे शिशिर के अग्रदूत हैं।
फिर वसंत आता है और शरद में दूर चले गये पक्षी शीतकाल के आश्रयस्थान स्वरूप धुपहले दक्षिणी क्षेत्रों से घर लौटने लगते हैं। मार्च में जब बर्फ पिघलने लगती है, तो सबसे पहले रूक वापस आते हैं। फिर इनके पीछे पीछे आती हैं सारिकाएं, भारद्वाज , बत्तखें, कलहंस , सारस और कई अन्य पक्षी। सबके बाद लौट आती हैं अबाबीलें और मारटिन ।
एक देश में घोंसले बनाकर पलनेवाले और जाड़ों के लिए परदेश-गमन करनेवाले पक्षियों को प्रवासी पक्षी कहते हैं। जो पक्षी बारहों मास एक ही स्थान में रहते हैं (गौरैया , नीलकंठ, जैतून मुर्ग इत्यादि) उन्हें निवासी पक्षी कहा जाता है।
कुछ पक्षी यद्यपि निवासी पक्षी लगते हैं फिर भी असल में वे होते हैं प्रवासी जाति के। गरमियों में लेनिनग्राद के पास रहनेवाले कौए इस प्रकार के पक्षी हैं जो जाड़ों के लिए जर्मनी और फ्रांस चले जाते हैं। दूर उत्तरी प्रदेशों से आनेवाले कौए इनकी जगह लेते हैं।
छल्ला-पद्धति पक्षियों के मौसमी प्रवसन के बारे में यथातथ सूचना छल्ला-पद्धति से मिलती है। इस काम के लिए पक्षी पकड़े जाते हैं और उनकी टांग में एलूमीनियम का हल्का-सा छल्ला पहनाया जाता है। छल्ले पर एक नंबर और जिस संस्था द्वारा छल्ला पहनाया गया हो उसका नाम लिखा जाता है। फिर ये पक्षी आजाद किये जाते हैं। यदि ऐसा पक्षी मरा हुआ पाया जाये तो यह छल्ला उसके प्राप्त होने की तारीख और जगह की सूचना के साथ संबंधित संस्था के नाम डाक द्वारा भेज दिया जाता है।
प्रवसन के कारण पक्षियों के प्रवसन के कारण वैसे बड़े जटिल हैं। जाड़ों के आने से पक्षियों के जीवन के अनुकूल स्थितियों में बड़ा फर्क आता है। सबसे महत्त्वपूर्ण कारण ठंड नहीं है क्योंकि पक्षियों में गरम रक्त होता है और वे ठंड को सह सकते हैं। प्रवसन का वास्तविक कारण है भोजन का अभाव या कमी। अबाबीलों और मारटिनों के भोजन के काम में आनेवाले कीट ओझल हो जाते हैं य कलहंसों, सारसों और बत्तखों के भोजन-स्थल का काम देनेवाली नदियां, झीलें और दलदली जगहें जम जाती हैं। जब धरती जमकर बर्फ से ढंक जाती है तो रूक का भी जीना असंभव हो जाता है।
उत्तरी गोलार्द्ध के पक्षियों के प्रवसन में हिमनदी काल-खंड (सेनोजोइक युग ) के अति प्राचीन ऋतु-परिवर्तनों का बड़ा हाथ था। उस समय शीत का एक लंबा पट्टा-सा तैयार हो गया था और यूरोप का अधिकांश भाग एक अखंड हिमनदी से ढंक गया था। यह नदी स्केंडिनेविया के पहाड़ों से बह निकली थी। हिमनदी ने पक्षियों को दूर दक्षिण की ओर जाने पर मजबूर किया। बाद में मौसम फिर गरम हुआ और हिमनदी धीरे धीरे पीछे हटने लगी। गरमियों में पक्षी उत्तर की ओर लौटने लगे। यहां उन्हें अपने बच्चों के पालन-पोषण के लिए अधिक अनुकूल स्थितियां मिलीं- लंवे दिन और भोजन की समृद्धि । जाड़ों के लिए ये पक्षी फिर दक्षिण की ओर आने लगे। जैसे जैसे हिमनदी उत्तर की ओर हटती गयी वैसे वैसे ये वार्षिक स्थलांतर लंवे समय के होने लगे। आखिर उन्हें नियमित प्रवसनों का स्वरूप प्राप्त हुआ।
पक्षियों के बरताव की जटिलता पक्षियों का बरताव असाधारण रूप में जटिल होता है। वे घोंसले बनाते हैं, अपने अंडे सेते हैं और बच्चों का पालन-पोषण और रक्षा करते हैं। जाहों की आहट मिलते ही वे झुंड बनाकर दक्षिणी देशों को चले जाते हैं और वसंत में घर लौट आते हैं।
ये सभी जटिल क्रिया-कलाप अचेतन रूप में होते हैं और हम इन्हें आनुवंशिक अनियमित प्रतिवर्ती क्रियाएं या सहज प्रवृत्ति कहते हैं। इस प्रकार शरद के आगमन के समय प्रकृति में आनेवाले मौसमी परिवर्तन से प्रवसन की सहज प्रवृत्ति जागृत हो उठती है। वसंत में आसपास की प्रकृति में आनेवाले परिवर्तनों और अंडों के परिपक्व होने के साथ नीड़-निर्माण की सहज प्रवृत्ति जग जाती है। पक्षियों के बरताव की अचेतनता उन छोटे पक्षियों में विशेप स्पष्ट रूप से प्रकट होती है जो कोयल के बच्चों को खिलाते हैं। इन बच्चों का प्राकार श्माताश् से कहीं अधिक बड़ा होता है। मुर्गी तो असली अंडों की जगह खड़िया के अंडे रखे जाने पर भी उन्हें सेती जाती है।
आनुवंशिक सहज प्रवृत्तियां बदलती हुई बाह्य परिस्थितियों के प्रभाव से परिवर्तित हो सकती हैं। इस प्रकार मास्को के चिड़ियाघर के तालाबों में आजादी से रहनेवाली और काफी भोजन पानेवाली जंगली वत्तखें जाड़ों में कहीं और उड़ नहीं जातीं।
पक्षियों में नियमित प्रतिवर्ती क्रियाएं विकसित हो सकती हैं। उदाहरणार्थ, जुताई के समय रूक खेतों में इकट्ठे हो जाते हैं। क्रांतिपूर्व रूस में वे घोड़े के साथ चलनेवाले हलवाहे के पास आ जाते थे और आधुनिक रूस में वे ट्रेक्टर के पास चले आते हैं। ट्रेक्टर की आवाज से वे डरते नहीं। ट्रेक्टर का दिखाई पड़ना उनके लिए खेतों की नयी जुताई का संकेत बन गया है। और यहीं उन्हें अपना भोजन ( कीट-डिंभ , केंचुए) मिलता है। इस प्रकार उनमें नियमित प्रतिवर्ती क्रिया का विकास हुआ है- खेतों में ट्रेक्टर के दर्शन होते ही रूक भोजन वटोरने के लिए उड़ आते हैं। पिंजड़े के पक्षियों को तुम अपने हाथों से खाना चुगने के आदी बनाकर देख सकोगे कि उनमें नियमित प्रतिवर्ती क्रियाएं आसानी से विकसित हो सकती हैं।
पक्षी वर्ग की विषेषताएं पक्षी वर्ग में वे प्राणी पाते हैं जिनके अग्रांग डैनों में परिवर्तित हो चुके हैं। उनके शरीर परों से ढंके रहते हैं। उनके हृदय के चार कक्ष होते हैं । फेफड़ों के अच्छे विकास और उड़ान के समय उनके उत्कृष्ट श्वसन के कारण उनकी इंद्रियों को प्रॉक्सीजन से समृद्ध रक्त की पर्याप्त पूर्ति होती है। उपापचय उनमें बड़े जोरों से होता है। शरीर का तापमान स्थायी होता है। मस्तिष्क सुविकसित होता है। बरताव में स्पष्टतया जटिलता होती है। पक्षी जनन-क्रिया में बड़े बड़े अंडे देते हैं और उन्हें सेते हैं।
इस समय पक्षियों के ८,००० तक प्रकार ज्ञात हैं।
प्रश्न – १. विलंब-वयस्क पक्षियों की तुलना में शीघ्र-वयस्क पक्षियों के अधिक बच्चे क्यों होते हैं ? २. प्रवासी और निवासी पक्षियों में क्या अंतर है? ३. पक्षियों के प्रवसन के कारण बतलायो। ४. पक्षियों के बरताव की जटिलता किन बातों से प्रकट होती है और उसे सचेतन क्यों नहीं माना जा सकता ? ५. पक्षी वर्ग की विशेषताएं कौनसी हैं ?
व्यावहारिक अभ्यास – अपने इलाके के पक्षियों के गमन और आगमन पर ध्यान रखो और उनकी तिथियां नोट कर लो।
६२. पक्षियों की उपयोगिता और रक्षा
उपयोगी पक्षी लगभग सभी पक्षी मनुष्य का बड़ा उपकार करते हैं। गौरैया-बाज जैसे कुछ पक्षी इसके अपवाद हैं जो उपयोगी पक्षियों का नाश करते हैं ।
कीटभक्षी पक्षी (अवावील, कठफोड़वा, सारिका, टामटिट और कई अन्य ) बहुत बड़ी संख्या में कीटों का संहार करते हैं। उदाहरणार्थ , टामटिट (प्राकृति १२७) एक दिन में खुद अपने वजन के बराबर तुलनेवाले कीटों को चट कर जाता है। सारिकाओं का एक परिवार एक दिन में ३५० से अधिक इल्लियों , बीटलों और घोंघों का नाश करता है। कोयल एक घंटे में १०० तक ऐसी रोएंदार इल्लियों को खा जाती है जिन्हें अन्य पक्षी नहीं खाते।
विशेषकर पक्षी अपने बच्चों की परवरिश के दौरान बहुत बड़ी मात्रा में हानिकर कीटों का सफाया कर देते हैं। केवल कीटभक्षी ही नहीं बल्कि अनाजभक्षी पक्षी (सिसकिन , गोल्ड फिंच , गौरैया) भी अपने बच्चों को कीट चुगाते हैं। जल्दी से बड़े हो रहे बच्चों के लिए काफी भोजन की जरूरत होती है और उनके मां-बाप पूरे दिन उसकी खोज में लगे रहते हैं । इस प्रकार कठफोड़वे के निरीक्षण से पता चला है कि वह अपने बच्चों के लिए २४ घंटों में लगभग ३०० बार चुग्गा लाता है।
दिनचर और रात्रिचर शिकारभक्षी पक्षियों ( उल्लू आदि) से भी हमारा बड़ा फायदा होता है। ये चूहों, धानी चूहों और गोफरों को खाते हैं। हिसाब लगाया गया है कि एक उल्लू एक वर्ष के दौरान इतने चूहे खा जाता है जो पूरे एक टन अनाज का सफाया कर सकते हैं।
पक्षी की चगाई और आकर्षण पक्षी मनुष्य के मित्र हैं। उनकी रक्षा करनी चाहिए और उन्हें बागों, खेतों , साग-सब्जी के बगीचों और रक्षक जंगल पट्टियों की ओर आकृष्ट करना चाहिए। शरद के उत्तरार्द्ध में और जाड़ों में हम वगीचों के पेड़ों पर टामटिटों के झुंड देख सकते हैं। वे बड़ी सावधानी से सभी टहनियों का मुआइना और अंडों तथा पेड़ों की छालों की दरारों में जाड़ों के दौरान छिपे रहनेवाले कोटों की खोज करते हैं। टामटिट हमारे बगीचों के सबसे ईमानदार पहरेदार हैं। पर वर्फ को लिये पाला आता है और फिर पक्षियों को अपना भोजन मिलना दूभर हो जाता है। और जाड़ों के लिए तो उन्हें और भी बड़ी मात्रा में भोजन की आवश्यकता होती है। इस प्रकार जव पक्षियों के लिए स्थिति बड़ी कठिन हो जाती है तो हमें उनकी सहायता और उनके भोजन का प्रबंध करना चाहिए।
जाड़ों में पक्षियों की परवरिश के लिए बगीचों में चुगाई का बंदोबस्त किया जाता है। आम तौर पर इसके लिए मेजें रखी जाती हैं और उनपर सन के बीज , सूखी रोटी के टुकड़े और चरबी के टुकड़े बिछा दिये जाते हैं (रंगीन चित्र ११)।
गरमियों के दौरान पक्षियों को बगीचों और खेतों की ओर आकृष्ट करना तो और भी महत्त्वपूर्ण है। इस दृष्टि से हमें उनके नीड़-निर्माण के लिए अनुकूल स्थितियां उपलब्ध करानी चाहिए। खुले घोंसले बनानेवाले पक्षियों के लिए सघन झाड़ी-झुरमुटों की आवश्यकता होती. है। हमारे बगीचों की झाड़ी-झुरमुटों वाली (विशेषकरं कांटेदार झाड़ी-झुरमुटों वाले ) बाड़ों की ओर बहुत-से पक्षी घोंसले बनाने के लिए उपयुक्त स्थान मानकर खिंच आते हैं। बंद घोंसलों वाले पक्षियों को तख्तियों के बने और पेड़ों परः टंगे हुए पंछी-घरों (आकृति १२८ ) द्वारा आकृष्ट किया जा सकता है। इन पंछी-घरों का आकार-प्रकार संबंधित पक्षियों की आवश्यकता के अनुसार भिन्न हो सकता है।
चूहों का नाश करनेवाले शिकारभक्षी पक्षियों को खेतों और नये से लगाये गये जंगलों की ओर आकृष्ट करने के लिए लंबे लग्गे गाड़ दिये जाते हैं जिनपर बठकर वे अपने शिकार पर नजर लगाये रह सकते हैं।
सोवियत लड़के-लड़कियां प्राणि-शास्त्र के अध्ययन में प्राप्त किये गये ज्ञान का उपयोग करते हुए उपयोगी पक्षियों के संरक्षण और आकर्षण के काम में सक्रिय भाग लेते हैं।
व्यापारिक पक्षी सोवियत संघ में रहनेवाले बहुत-से पक्षियों से स्वादिष्ट मांस और अति मूल्यवान् रोएं मिलते हैं। यदि ऐसे पक्षियों का काफी बड़े पैमाने पर शिकार किया जाता है तो उन्हें व्यापारिक पक्षी (आकृति १२६) कहा जाता है।
सोवियत संघ के विभिन्न भागों में भिन्न भिन्न पक्षियों का शिकार किया जाता है – जंगलों में काले ग्राउज , जैतून-मुर्गी और केपरकाल्योज का, टुंड्रा में टारमीगन का, ताल-तलैयों में भिन्न भिन्न कलहंसों और बत्तखों का।
पक्षियों के मांस के अलावा उनके पर और रोएं भी उपयोगी होते हैं। ईडेर के रोएं विशेष मूल्यवान् होते हैं। ये बहुत ही मुलायम और गरमीदेह होते हैं। ईडेर एक जल-पक्षी है जो उत्तरी सागरों के किनारों पर रहता है। यहां वे एक विशेष उद्योग के विषय हैं। यहां पक्षियों को मारा नहीं जाता बल्कि लोग उनके रोएं इकठे कर लेते हैं – ईडेर के घोंसलों में इन रोगों का मोटा-सा अस्तर लगा रहता है।
व्यापारिक पक्षियों के लोप की रोक-थाम के लिए सोवियत संघ में विशेष कानून जारी किये जाते हैं। इस प्रकार , अंडे देने और बच्चों के पालन-पोषण के मौसम में पक्षियों का शिकार करना मना है। जंगलों के कुछ खास हिस्से सुरक्षित रखे गये हैं जहां शिकार की पूरी मनाही है।
प्रश्न – १. खेती की दृष्टि से पक्षियों का क्या उपयोग है? २. खेतों और बगीचों की ओर पक्षियों को कैसे आकृष्ट किया जा सकता है ? ३. कौनसे व्यापारिक पक्षियों का शिकार बड़े पैमाने पर किया जाता है ? ४. ईडेर के पर कहां और कैसे प्राप्त किये जाते हैं?
व्यावहारिक अभ्यास – १. अपने स्कूली और घरेलू बगीचे में पक्षियों की चुगाई की व्यवस्था करो। २. पंछी-घर बनाकर समय पर उन्हें पेड़ों पर टांग दो और देखो उनमें कौनसे पक्षी बसेरा करते हैं।
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