धोलावीरा कहाँ स्थित है , धोलावीरा का दूसरा नाम / स्थानीय नाम क्या है धोलावीरा का उत्खनन किसने किया था
धोलावीरा का उत्खनन किसने किया था धोलावीरा कहाँ स्थित है , धोलावीरा का दूसरा नाम / स्थानीय नाम क्या है ?
धौलावीरा
यह गुजरात के कच्छ जिले में स्थित एक प्राचीन पुरातात्विक स्थल है। यह ‘हड़प्पा सभ्यता‘ के नाम से विख्यात सिन्ध घाटी सभ्यता के अवशेषों के लिए प्रसिद्ध है। स्थानीय भाषा में इस शहर को ‘कोटाडा टिम्बा‘ कहा जाता है। इस क्षेत्र में किए गए शोधों के अनुसार, पुरातत्वविदों का तर्क है कि यह सर्वाधिक महत्व की हड़प्पन बस्तियों में से एक था। इस स्थल पर सबसे प्राचीन बस्ती ईसा पूर्व 2650 की है, जिसका अवसान ईसा पूर्व 2100 तक धीरे-धीरे होना आरम्भ हो गया था। इसे संक्षिप्त अवधि के लिए त्याग दिया गया था, किन्तु ईसा पूर्व 1450 में पुनः बसा दी गयी थी।
प्रोडेसर जे. पी. जोशी ने वर्ष 1967 से 68 तक इसकी व्यापक खुदाई की। तब से शोध से यह पता लग चुका है कि यह आरंभिक-हड़प्पन चरण (ईसा पूर्व 2650-2500) से गुजर कर पूर्ण हड़प्पन काल (ईसा पूर्व 2500-1900) में पहुँची. तथा इसका अंत उत्तर-नगरीय हड़प्पन चरण (ईसा पूर्व 1650-1450) के साथ हुआ। इसे वर्ष 1998 में अनतिम युनेस्को विश्व विरासत स्थलों की सूची में रखा गया।
उन खुदाइयों से कई अनोखी सामग्रिया, यथा महरें, मोतियाँ, स्वर्ण, चादी, टेराकोटा के बने आभूषण, मिट्टी के बर्तन तथा कांसे के बर्तन, प्राप्त की गयी है। यह सुनिश्चित किया गया कि ये सभी अवशेष हमें दिखा सके कि यह गुजरात, सिंध और पंजाब की बस्तियों के बीच एक प्रमुख व्यापारिक केंद्र था। इस नगर के तीन भाग हैंः नगर-दुर्ग, नगर-मध्य तथा नगरीय किनारे या नगर के सुदूरवर्ती भाग।
दिल्ली
स्वतंत्र भारत की राजधानी के रूप में, दिल्ली भारतीय संस्कृति तथा विरासत की प्रमुख केंद्र रही है। दिल्ली सल्तनत काल से ही, दिल्ली, कुछ अवधियों को छोड़ कर, सदैव भारत की राजधानी रही है। यहाँ तक कि बाद के मुगल शासकों ने इसे अपना मूल स्थान बनाया तथा यह नगरी अपने उत्कर्ष पर पहुँची। स्वतन्त्रता के पूर्व, ब्रिटिशों ने उत्तर भारत के जीवन में दिल्ली के महत्व को देखते हुए राजधानी को कलकत्ता से दिल्ली स्थानांतरित किया ।
पांडवों के प्राचीन नगर – इन्द्रप्रस्थ का संबंध दिल्ली से ही रहा है। भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग ने दिल्ली शहर में 1200 विरासत भवनों की एक व्यापक सूची तैयार की है। एकमात्र दिल्ली शहर में 175 राष्ट्रीय विरासत स्थल हैं। यह इसलिए भी अनोखी है क्योंकि यहाँ कई ऐसे स्मारक हैं जिन्हें यू.एन.इ.एस.सी.ओ. द्वारा विश्व विरासत स्थलों की सूची में रखा गया है, यथा हुमायूं का मकबरा (वर्ष 1993), कुतुब मीनार परिसर (1993) तथा लाल किला परिसर (वर्ष 2007)।
भारत की सबसे बड़ी मस्जिद, जामा मस्जिद, चांदनी चैक के ऐतिहासिक क्षेत्र के मध्य में है। इस क्षेत्र पर मुगलों द्वारा भारतीय महाद्वीप में अपनी शक्ति के प्रतीक के रूप में बनवाए गए लाल किले का भी वर्चस्व है। 16वीं शताब्दी में निर्मित पुराना किला इसी किले के प्रांगण के भीतर है।
अन्य प्रमुख मध्यकालीन स्मारकों में 18वीं शताब्दी में निर्मित विशाल भवन जंतर-मंतर है। सफदरजंग का मकबरा मुगल शैली के भवन निर्माण तथा बगीचों के लिए प्रसिद्ध है।
औपनिवेशिक वास्तुकला ने दिल्ली को एक नया स्वरूप प्रदान किया। ब्रिटिशों ने चैड़ी सड़कों तथा ब्रितानी शैली से प्रेरित भवनों के द्वारा लुटियन्स द्वारा परिकल्पित दिल्ली का निर्माण किया। स्वतन्त्रता की स्मृति में स्वतन्त्रता पश्चात् भी बहुत से स्मारकों का निर्माण किया गया। देश की स्वतंत्रता के लिए अपना जीवन न्योछावर करने वाले सभी लोगों की स्मृति में बना इंडिया गेट एक उपयुक्त स्मारक है। सचिवालय क्षेत्र में सर्वाधिक उभर कर सामने आने वाला भवन राष्ट्रपति भवन है। यह भारत की लोकतांत्रिक संस्कृति का प्रतीक है। मुगलपाक शैली, उत्तर भारतीय खाद्य संस्कृति का मेरुदण्ड है। यह नगर कई समारोहों, यथा राष्ट्रीय पुस्तक मेला, भारत अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मेला, जैसे उत्सव इत्यादि के लिए जाना जाता है।
दार्जिलिंग – हिमालयन रेलमार्ग
दार्जिलिंग – हिमालयन रेलवे को ‘टॉय ट्रेन‘ के नाम से भी जाना जाता है। 2 फीट या 610 मिलीमीटर चैड़ाई वाली पटरी पर चलने के कारण इसे छोटा समझा जाता है। इस रेलगाड़ी का मार्ग पश्चिम बंगाल में दार्जिलिंग से ले कर न्यू जलपाईगुड़ी तक है। यह रेलगाड़ी ब्रितानियों की पहल पर 1879 और 1881 के बीच निर्मित किए जाने के कारण ऐतिहासिक महत्व की है। वर्ष 1999 में इसे युनेस्को द्वारा विश्व विरासत की सूची में सम्मिलित कर लिया गया था।
यह रेलगाडी भारत के सबसे ऊंचे रेलवे स्टेशन घूम तक जाती है। सैलानियों को यात्रा कराने वाली इन रेलगाडियों में ब्रितानियों द्वारा निर्मित विशिष्ट प्रकार का पुराना भाप से चलने वाला इंजन लगा होता हैं। ये रेलगाडियाँ कर्सियांग तथा दार्जिलिंग के बीच चलती हैं। रेल-मार्ग इस बहु-सांस्कृतिक क्षेत्र के सामाजिक और आर्थिक विकास का अंग रही हैं। वर्तमान में, इस रेल-मार्ग को व्यावसायिक घाटे का शिकार होना पड़ रहा है, तथा रेलवे संघ स्थानीय स्वामियों की निजीकरण की इच्छा का विरोध कर रहे हैं।
एलोरा की गुफाएं
एलोरा गुफाएं महाराष्ट्र राज्य के औरंगाबाद में चट्टानों को काट कर बनायी गयी प्राचीन वास्तुकला के महत्वपूर्ण उदाहरण हैं। एलोरा का प्राचीन नाम एलापुरा था। स्थानीय भाषा में इसे ‘एलुरा‘ या ‘वेरुल‘ कहा जाता है। वे राष्ट्रकूट वंश के शासन काल में निर्मित बौद्ध तथा ब्राह्मण कालीन गुफाओं के समूह हैं। बाद में यादव वंश के शासन काल में बनाई गयी जैन गुफा समूहों के उत्तर संस्करण भी इनमे जुड़ गए। ये गुफाएं ऐतिहासिक रूप से इतनी महत्वपूर्ण हैं कि वे न केवल भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की संरक्षित स्मारकों की सूची में सम्मिलित हैं बल्कि उन्हें यू.एन.इ.एस.सी.ओ. द्वारा विश्व विरासत स्थलों की सूची में भी रखा गया है। पुरातत्वविदों तथा इतिहासकारों का तर्क है कि इन गुफाओं का निर्माण 5वीं तथा 10वीं शताब्दी के बीच हुआ। ज्ञात गुफाओं की संख्या 34 है जिन्हें निम्नलिखित वर्गों में विभाजित किया गया हैः
1. 17 गुफाएंः चट्टानों को काट कर बनाए गए हिन्दू मंदिर, इत्यादि।
2. 12 गुफाएंः चट्टानों को काट कर निर्मित बुद्ध विहार, इत्यादि
3. 5 गुफाएंः चट्टानों को काट कर बनाए गए जैन मठ, इत्यादि।
अधिकाँश हिन्दू गुफाएं कालचुरी तथा चालुक्य वंश के शासन काल में निर्मित किए गए थे किन्तु जगन्नाथ सभा के नाम से विख्यात पांच जैन गुफाओं के समूह का निर्माण राष्ट्रकूट शासकों द्वारा 9वीं शताब्दी में कराया गया। सभी जैन गुफाएं दिगंबर पन्थ से संबंध रखती हैं तथा उसके दर्शन और उसकी परम्पराओं को प्रदर्शित करती हैं। बौद्ध गफाओं में विहार या मठ सम्मिलित हैं जिनमें भिक्षुकों के लिए आवासीय खण्ड, शयन खण्ड, रसोई इत्यादि की भी व्यवस्था है। इन गुफाओं की दीवारों पर कई नक्काशियां विद्यमान हैं, किन्तु इनमे सर्वाधिक विख्यात ‘चैत्य कक्ष‘ या “विश्वकर्मा गुफा‘ के नाम से विख्यात उत्कीर्ण सभा-कक्षों के समूह हैं। इसे ‘बढ़ई की गुफा‘ (सुतर का झोपड़ी) के नाम से भी जाना जाता है, चूँकि इन पत्थर की शिल्पाकृतियों को इस प्रकार आकार दिया गया है कि ये लकड़ी के शहतीरों जैसे दीखते हैं।
इन गुफाओं में एक अन्य अत्यंत प्रसिद्ध स्मारक है कैलाशनाथ मंदिर, जिसे भगवान् शिव तथा देवी पार्वती के निवास स्थल कैलाश पर्वत का सादृश्य प्रदान किया गया है। यह एक ही चट्टान से बनी है तथा बहुमंजिले मंदिर की भाति दीख पड़ती है।
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