द बर्ड ऑफ टाइम पुस्तक के लेखक / ल्रेखिका कौन है , द गोल्डन थ्रेसहोल्ड (1905) किसकी रचना है
जाने द बर्ड ऑफ टाइम पुस्तक के लेखक / ल्रेखिका कौन है , द गोल्डन थ्रेसहोल्ड (1905) किसकी रचना है ?
उत्तर : ‘द गोल्डन थ्रेसहोल्ड (1905)‘, ‘द बर्ड ऑफ टाइम (1912)‘, ‘द ब्रोकन विंग (1912)‘ सरोजिनी नायडू की पुस्तकों के नाम है |
प्रश्न: सरोजिनी नायडू
उत्तर: सरोजिनी नायडू का जन्म 13 फरवरी, 1879 को निजाम कॉलिज, हैदराबाद के संस्थापक और वैज्ञानिक अघोरनाथ चट्टोपाध्याय के यहां हुआ था। 16 वर्ष की आयु में वह अध्ययन के लिए इंग्लैण्ड रवाना हो गई। वह पहली ऐसी भारतीय महिला थीं जो वर्ष 1925 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष बनीं और भारत में उत्तर प्रदेश राज्य की पहली महिला गवर्नर बनीं। उन्होंने मोन्टेग्यू चेम्सफोर्ड सुधार, खिलाफत, रॉलेट एक्ट सत्याग्रह के लिए अभियान चलाया। वर्ष 1930 में महात्मा गांधी ने उन्हें नमक सत्याग्रह का नेतृत्व करने के लिए चुना था। वह भारतीय कोकिला (नाइटेंगल ऑफ इंडिया के रूप में विख्यात हैं। भारतीय और अंग्रेजी पाठकों को आकृर्षित करने वाली उनकी महत्वपूर्ण पुस्तकें इस प्रकार हैं – ‘द गोल्डन थ्रेसहोल्ड (1905)‘, ‘द बर्ड ऑफ टाइम (1912)‘, ‘द ब्रोकन विंग (1912)‘। सरोजिनी नायडू का निधन 2 मार्च, 1949 को हो गया था।
प्रश्न: अरुणा आसफ अली का भारतीय स्वतंत्रता संग्राम विशेषकर भारत छोड़ो आंदोलन में योगदान बताइए।
उत्तर: एक सम्मानित बंगाली परिवार से संबंधित अरुणा का जन्म 16 जलाई. 1909 में हुआ। शिक्षा लाहौर और नैनीताल के पब्लिक स्कूलों में हुई। अध्यापन-कार्य उन्होंने कलकत्ता में शुरू किया। उन्हीं दिनों 1928 में अध्यापन छोड़, देशभक्त वकील श्री एम.आसफ अली से विवाह करके अरुणा गांगुली से अरुणा आसफ अली हो गयीं। श्री आसफ अली आयु में उनसे 23 वर्ष बड़े थे। वर्ष 1930-41 के बीच वह कई बार जेल गयीं। 8 अगस्त, 1942 के ‘‘भारत छोड़ो‘‘ प्रस्ताव के बाद 9 अगस्त को सरकारी इमारतों पर तिरंगा फहराने के बाद आंदोलन का श्रीगणेश करने वाली सभा की अध्यक्षता अरुणा आसफ अली ने ही की थी। इसके बाद भूमिगत रहते हुए ही उन्होंने डा. राम मनोरह लोहिया के साथ मिलकर ‘इंकलाब पत्र‘ चलाया। 26 जनवरी, 1946 को उनके विरुद्ध गिरफ्तारी का वारंट वापस ले लिया गया। ‘दैनिक ट्रिब्यून‘ ने अरुणा जी की इस साहसिक व सफल भूमिगत ‘मोर्चाबन्दी‘ के लिए उन्हें ‘सन् 42 की रानी झांसी‘ कहकर सम्बोधि किया। 1947 में वह दिल्ली प्रदेश कांग्रेस-कमेटी की अध्यक्ष बनीं और 1958 में दिल्ली नगर निगम की ‘पहली महिला मेयर चुनी गयी। ‘लिंक‘ और ‘पैट्रियट‘ पत्रों की संस्थापिका-व्यवस्थापिका के नाते पत्रकारिता में भी उन्होंने कम नाम नहीं कमाया। 29 जुलाई, 1996 को इनका निधन हो गया। उन्हें वर्ष 1997 में मरणोपरान्त भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
प्रश्न: आयु, लिंग तथा धर्म के बन्धनों से मुक्त होकर, भारतीय महिलाएँ भारत के स्वाधीनता संग्राम में अग्रणी बनी रहीं। विवेचना कीजिए।
उत्तर: स्वाधीनता संग्राम में भारतीय महिलाओं का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। अंग्रेजों के विरुद्ध कन्धे-से-कन्धा मिलाकर महिलाओं ने अपना कर्तव्य निभाया। वर्ष 1857 की बगावत के समय राजघरानों की महिलाएँ आजाद भारत का स्वप्न पूरा करने के लिए पुरुषों के साथ एकजुट हुई। इनमें प्रमुख थीं – इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर तथा झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई। भारतीय राजनीतिक परिदृश्य पर मातानीनी हाजरा और सरोजिनी नायडू आदर्श के रूप में देखी जाने लगी थीं। महिलाओं की भागीदारी केवल सत्याग्रह तक ही सीमित नहीं थी, 19वीं शताब्दी के अन्त में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ महिलाओं की घनिष्ठता बढ़ी और भारत की राष्ट्रीय गतिविधियों में उनका योगदान प्रारम्भ हुआ। वर्ष 1890 में स्वर्ण कुमारी घोषाल तथा ब्रिटिश साम्राज्य की पहली महिला स्नातक कादम्बिनी गांगुली भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की मीटिंग में प्रतिनिधि के तौर पर शामिल हुई। बंगाल विभाजन वर्ष 1905 के समय महिलाओं ने विदेशी सामानों का बहिष्कार किया, जिसे पिकेटिंग कहा जाता था। इसमें सरोजिनी नायडू, उर्मिला देवी, दुर्गाबाई देसमुख, बसन्ती देवी, कृष्णाबाई राम आदि प्रमुख थीं। गाँधीजी के असहयोग आन्दोलन में महिलाओं ने सक्रिय रूप से हिस्सा लिया। इस आन्दोलन में राजकुमार अमृतकौर, सुचेता कृपलानी, सरलादेवी चैधरानी, मुथुलक्ष्मी रेड्डी, सुशीला नायर, अरुणा आसफ अली आदि ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। कस्तूरबा गाँधी, कमला नेहरू, विजयलक्ष्मी पण्डित ने राष्ट्रीय आन्दोलन में प्रमुखता से हिस्सा लिया। विजयलक्ष्मी ने विदेशों में भारत का प्रतिनिधित्व किया।
सुभाषचन्द्र बोस की इण्डियन नेशनल आर्मी में रानी झाँसी रेजिमेण्ट में 1000 महिलाएं शामिल थीं। डॉ. लक्ष्मी स्वामीनाथन ने इस रेजिमेण्ट का नेतृत्व किया। क्रान्तिकारी गतिविधियों में भी महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका रही। काकोरी काण्ड में महिलाओं का काफी योगदान रहा। वर्ष 1928 में ललिता घोष ने महिला राष्ट्रीय संघ की नींव डाली। बीना दास ने बंगाल के गवर्नर को गोली मारी। कमला दास गुप्ता तथा कल्याणी दास क्रान्तिकारी दल के साथ सक्रिय रूप से जुड़ी रहीं। ऐसे नाम महिला स्वतंत्रता सेनानी की सूची में काफी अधिक हैं।
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