द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग की रिपोर्ट pdf (Second Administrative Reform Commission in hindi)
(Second Administrative Reform Commission in hindi) द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग की रिपोर्ट pdf क्या है
द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग (Second Administrative Reform Commission)
प्रथम रिपोर्ट-सूचना का अधिकार
आयोग को सौंपे गए प्रमुख विषय निम्नलिखित हैं-
ऽ सरकारी दस्तावेजों की, विशेष रूप से आधिकारिक गुप्तता अधिनियम के सन्दर्भ में गोपनीयता वर्गीकरण की समीक्षा करना,
ऽ अवर्गीकृत डाटा की पारदर्शिता और सुलभता प्रोत्साहित करनाय और
ऽ नागरिकों के सूचना के अधिकार के पूरक के रूप में सूचना का प्रकटन और पारदर्शिता।
रिपोर्ट दो भागों में है-
(1) भाग एक-इसमें आधिकारिक गुप्तता एवं गोपनीयता संबंधी मुद्दे हैं। यह तीन अध्यायों में विभाजित है-
(i) आधिकारिक गुप्तता (ii) नियम और प्रक्रियाएँ (iii) गोपनीयता वर्गीकरण
(2) भाग दो-इसमें अधिनियम के प्रभावी क्रियान्वयन के आवश्यक उपायों पर ध्यान दिया गया है। यह चार अध्यायों में विभाजित है-
(i) अधिकार और दायित्व (ii) कार्यान्वयन के मुद्दे
(iii) न्यायपालिका पर कानून को लागू करना (iv) कठिनाइयों को दूर करना।
आयोग की प्रमुख सिफारिशें निम्नलिखित हैं-
(1) भाग एक
अधिकारिक गुप्तता
ऽ आधिकारिक गुप्तता अधिनियम 1923 को निरस्त करके इसे राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम के एक अध्याय के रूप में शामिल किया जाए।
ऽ सार्वजनिक मामलों में मंत्रीगण, पदभार संभालने के समय पारदर्शिता की शपथ लें।
ऽ सशस्त्र सेनाओं को अंिधनियम की द्वितीय अनूसूची में सम्मिलित किया जाए।
ऽ अधिनियम की द्वितीय अनुसूची की समय-समय पर समीक्षा की जाए।
ऽ द्वितीय अनुसूची में सूचीबद्ध सभी संगठनों में लोक सूचना अधिकारी नियुक्त किये जाएँ। पीआईओ के आदेशों के विरुद्ध अपील सीआईसी/एसआईसी के पास फाइल की जानी चाहिए।
नियम और प्रक्रियाएँ
ऽ सिविल सेवा नियमों में यह-शामिल किया जाए की प्रत्येक सरकारी सेवक सद्भावना के साथ अपने कर्तव्यों के निष्पादन में जनता को अथवा किसी संगठन को सही एवं पूरी जानकारी देगा परन्तु अनधिकृत एव अनुचित लाभ हेतु नहीं।
गोपनीयता वर्गीकरण
ऽ त्ज्प् अधिनियम के अंतर्गत छूट में अधिकारियों की वार्षिक गोपनीय रिपोर्टो और परीक्षा प्रश्नपत्र व सम्बद्ध मामलों को शामिल करने के लिए व्यवस्था की जानी चाहिए।
ऽ एक बार परम गुप्त अथवा गुप्त के रूप में वर्गीकृत दस्तावेजों को 30 वर्ष तक और प्रतिबंधित के रूप में वर्गीकृत दस्तावेजों को 10 वर्ष की अवधि के लिए ऐसे ही बने रहना चाहिए।
ऽ दस्तावेजों की ग्रेडिंग प्रदान करने के लिए प्राधिकृत अधिकारी निम्नांकित स्तर के हों-
परम गुप्त-संयुक्त सचिव से कम स्तर का नहीं।
गुप्त-उप सचिव से कम स्तर का नहीं।
गोपनीय-अवर सचिव से कम स्तर का नहीं।
साथ ही राज्य सरकारें समकक्ष रैंक के अधिकारियों को ग्रेडिंग प्रदान करने के लिए प्राधिकृत कर सकती हैं।
(2) भाग दो
अधिकार और दायित्व
ऽ सीआईसी की चयन समिति (प्रधानमंत्री, विपक्ष का नेता और भारत के मुख्य न्यायाधीश के साथ) गठित करने के लिए अधिनियम की धारा 12 को संशोधित किया जाना चाहिए। इसी प्रकार, राज्य का मुख्यमंत्री, विपक्ष का नेता और उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के साथ चयन समिति गठित करने के लिए धारा 15 को संशोधित किया जाना चाहिए।
ऽ भारत सरकार को सभी राज्यों में 3 माह के अन्दर एसआईसी का गठन सुनिश्चित करना चाहिए।
ऽ सीआईसी को 4 क्षेत्रीय कार्यालय स्थापित करने चाहिए जिनमें प्रत्येक का अध्यक्ष एक आयुक्त होना चाहिए। इसी प्रकार बड़े राज्यों में एसआईसी के क्षेत्रीय कार्यालय स्थापित किये जाने चाहिए।
ऽ सूचना आयोग के कम से कम आधे सदस्य गैर सिविल सेवा पृष्ठभूमि वाले होने चाहिए। केन्द्रीय सरकार द्वारा अधिनियम के अंतर्गत नियमों में ऐसा प्रावधान किया जा सकता है जो सीआईसी और एसआईसी दोनों पर लागू हो।
ऽ एक से अधिक च्प्व् वाले सभी मंत्रालयों/विभागों/एजेंसियों/कार्यालयों का एक नोडल सहायक लोक सूचना अधिकारी हो। समुचित सरकारों द्वारा नियमों में ऐसा प्रावधान शामिल किया जा सकता है।
ऽ केंद्रीय सचिवालयों में च्प्व् कम से कम उप सचिव स्टार का होना चाहिए। राज्य सचिवालय में, ऐसे ही रैंक के अधिकारियों को च्प्व् के रूप में अधिसूचित किया जा सकता है। सभी अधीनस्थ एजेंसियों और विभागों में, रैंक में पर्याप्त रूप से वरिष्ठ अधिकारियों को, किन्तु जो जनता के लिए सुलभ हों, PIO के रूप में पदनामित किया जा सकता है।
ऽ सभी अधिकारियों को भारत सरकार द्वारा सलाह दी जा सकती है कि लोक सूचना अधिकारियों के साथ-साथ अपीलीय अधिकारी पदनामित किये जा सकते हैं।
ऽ प्रत्येक सार्वजनिक प्राधिकारी के लिए अपीलीय प्राधिकारियों का मनोनयन और अधिसूचना या तो नियमों के तहत अथवा अधिनियम की धारा 30 का इस्तेमाल करके की जा सकती है।
ऽ सूचना को सरकारी भाषा में मुद्रित, समूल्य प्रकाशन के रूप में स्वमेव प्रकटन के लिए उपलब्ध होना चाहिए जिसे समय-समय पर संशोधित किया जाना चाहिए। इसके लिए एकल पोर्टल की व्यवस्था हो।
ऽ भारत सरकार द्वारा एक स्वतंत्र प्राधिकरण रूप में तथा सभी राज्यों द्वारा वर्तमान में अभिलेख पालन में लगी अनेक एजेंसियों को एकीकृत करके 6 महीने के अन्दर सार्वजनिक अभिलेख कार्यालय स्थापित करना चाहिए।
ऽ यह अभिलेख कार्यालय सीआईसी एसआईसी के समग्र पर्यवेक्षण और मार्गदर्शन के अधीन कार्य करेगा।
ऽ भारत सरकार को अभिलेखों को अद्यतन बनाने, अवस्थापना सुधारने, संहिताएं तैयार करने तथा सार्वजनिक अभिलेख कार्यालय स्थापित करने के लिए, पांच वर्ष तक की अवधी के लिए सभी अग्रणी कार्यक्रमों की निधियों का 1 प्रतिशत सुनिश्चित करना चाहिए और इसको अधिकतम 25ः राशि का उपयोग जागरूकता सृजन के लिए किया जाए।
ऽ भारत सरकार सभी भूमि अभिलेखों के सर्वेक्षण और उन्हें अद्यतेन बनाने के लिए एक भू अभिलेख आधुनिकीकरण निधि कायम कर सकती है।
ऽ जिलों में 2001 के अंत तक डीजीटीकरण की प्रक्रिया पूरी कर ले और उप जिला स्तर के संगठन 2011 तक यह कार्य कर लें।
ऽ सभी सरकारी कार्मिकों को आरटीआई का वर्ष में कम से कम एक दिन का प्राशक्षण दिया जायें।
ऽ जागरूकता अभियान राज्य स्तर पर एक विश्वसनीय गैर लाभकारी संगठनों को सौंपे जाएँ, बहु मीडिया अभियान हो जो की स्थानीय भाषा में हो।
ऽ सरकारों को गाइड और समझ योग्य सूचना सामग्री प्रकाशित करनी चाहिए।
ऽ राज्य, क्षेत्रीय, जिला और उप-जिला स्तर पर उपयुक्त मॉनिटरिंग प्राधिकारी द्वारा जहाँ कहीं आवश्यक हो, एक नोडल अधिकारी विनिर्धारित किया जाना चाहिए।
ऽ प्रत्येक सरकारी प्राधिकरण, अपने कार्यालय के साथ ही अधीनस्थ सरकारी प्राधिकरणों में भी एक्ट के प्रावधानों के अनुपालन के लिए जिम्मेदार हों।
ऽ मूख्य सूचना आयुक्त की अध्यक्षता में एक राष्ट्रीय समन्वय समिति गठित की जाए। समिति राष्ट्रीय मंच के रूप में कार्य करेगी, भारत व अन्यत्र सर्वोत्तम प्रथाओं को प्रलेख्बध्य व प्रसारित करेगी, राष्ट्रीय पोर्टल के सृजन और कार्यकरण की मॉनिटरिंग करेगी, अधिनियम के अंतर्गत उपयुक्त सरकारों द्वारा जारी नियमों और कार्यकारी आदेशों की समीक्षा करेगी।
कार्यान्वयन में मुद्दे
ऽ नियमों में संशोधन करके पोस्टल ऑर्डर के माध्यम से अदायगी को सम्मिलित किया जाए।
ऽ राज्यों को केंद्रीय नियमों के अनुरूप आवेदन-पत्र फीस के सम्बन्ध में नियम तैयार करने चाहिए।
ऽ राज्य सरकारें फीस की अदायगी की एक विधि के रूप में उपयुक्त राशि के समुचित स्टाम्प जारी कर सकती हैं।
ऽ डाकघरों को नगद रूप में फीस प्राप्त करने और आवेदन पत्र के साथ रसीद भेजने के लिए प्राधिकृत किया जा सकता है।
ऽ भारत सरकार के स्तर पर कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग नोडल एजेंसी है। उसके पास सभी केंद्रीय मंत्रालयोंध्विभागों में कार्यरत सार्वजनिक प्राधिकरणों की एक पूर्ण सूची होनी चाहिए।
ऽ इन सार्वजनिक प्राधिकरणों का वर्गीकरण निम्नांकित प्रकार हो- संवैधानिक निकाय, एक समान एजेंसियाँ, सांविधिक निकाय, सरकारी क्षेत्रक उपक्रम, कार्यकारी आदेशों के तहत स्थित निकाय, पर्याप्त रूप से वित्त पोषित स्वामित्व वाले नियंत्रित निकाय और सरकार द्वारा पर्याप्त रूप से वित्त पोषित एनजीओ।
ऽ सरकारी प्राधिकरण के पास उसके अधीन तत्काल अगले स्तर के सभी सरकारी प्राधिकरणों के ब्यौरे हों।
ऽ जिला कलेक्टर/उपायुक्त अथवा जिला परिषद् के कार्यालय में प्रकोष्ठ की स्थापना करके एकल खिड़की एजेंसी कायम की जाए।
ऽ किसी भी संगठन में सबसे निचले स्तर के कार्यालय को, जिसे निर्णय लेने की शक्ति प्राप्त हो अथवा जो अभिलेखों का अभिरक्षक हो, एक सार्वजनिक प्राधिकरण के रूप में मान्यता दी जानी चाहिए।
ऽ कोई भी सरकारी सूचना जिसे किसी गैर सरकारी निकाय को हस्तांतरित कर दिया गया हो वह आरटीआई के अंतर्गत प्रकट की जा सकेगी।
ऽ किसी भी संस्थान को सरकार से ‘‘पर्याप्त निधियन‘‘ प्राप्त समझा जायेगा (अगर उसकी वार्षिक प्रचालन लागत का कम से कम 50ः अथवा पिछले 3 वर्षों में से किसी एक वर्ष में एक करोड़ रुपये के बराबर अथवा अधिक राशि प्राप्त हुई हो)। अनुरोध पर 20 वर्ष पुराने अभिलेख उपलब्ध करने की व्यवस्था केवल उन सरकारी अभिलेखों पर लागू होनी चाहिए जिन्हें ऐसी अवधि के लिए परिरक्षित रखे जाने की जरूरत हो।
ऽ देरी, उत्पीड़न और भ्रष्टाचार की शिकायतों से निपटने के लिए राज्य स्वतंत्र लोक शिकायत समाधान प्राधिकरण कायम कर सकते हैं।
ऽ यदि अनरोध तुच्छ्र अथवा कष्टकर हो या अनुरोध पर कार्यवाही करने में पर्याप्त और अनावश्यक रूप से सरकारी निकाय के संसाधनों का विचलन हो। लोक सूचना अधिकारी आवेदन पत्र प्राप्त होने के 15 दिन के अन्दर अपीलीय अधिकारी के पूर्व अनुमोदन से सूचना के किसी अनुरोध को अस्वीकार कर सकता है।
न्यायपालिका पर कानून को लागू करना
ऽ नागरिकों को आभलेखों को पुनः प्राप्ति को सुलभता हो इसलिए विधानमंडलों को सूची पत्र तैयार करने और अभिलेखों के डीजीटीकरण का कार्य करवाना चाहिए।
ऽ सीएजी जाँच आयोगों और सदन की समितियाँ की रिपोर्टो के सम्बन्ध में कार्यपालिका शाखा द्वारा की जाने वाली कार्यवाहियों को आॅनलाइन उपलब्ध होना चाहिए।
ऽ जिला एवं अधीनस्थ न्यायालय में अभिलेखों को वैज्ञानिक ढंग से भंडारित किया जाए और इनकी प्रशासनिक प्रक्रियाएँ समयबद्व तरीके से कम्प्यूटरीकृत की जायें।
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