द्रव्यमान प्रवाह सिद्धान्त (Mass flow theory in hindi) , डोनन साम्यावस्था सिद्धान्त (Donnan equillibrium theory )
जानेंगे विसरण सिद्धान्त द्रव्यमान प्रवाह सिद्धान्त (Mass flow theory in hindi) , डोनन साम्यावस्था सिद्धान्त (Donnan equillibrium theory ) ?
विसरण सिद्धान्त (Diffusion theory)
आयन अथवा अणुओं का सांद्रता प्रवणता के अनुसार चालन विसरण कहलाता है। आयन बाह्य विलयन (मृदा में लवणों का विलयन) से सांद्रता प्रवणता के अनुसार मुक्त दिक्स्थान में आ जाते हैं तथा यह प्रक्रिया दोनों ओर संतुलन स्थापित होने तक चलती रहती है। अतः लवणों का विसरण द्वारा अवशोषण रासायनिक विभव प्रवणता (chemical potential gradiant) अर्थात सांद्रता प्रवणता से सीधे समानुपाती (directly proportional) होता है।
रासायनिक विभव (chemical potential) से तात्पर्य एक विशिष्ट अणु अथवा अणु पर लगने वाले उन सभी बलों के योग से हैं जो अणु की चालन की दिशा निर्धारित करते हैं।
अधिकांशतः विसरण झिल्ली में उपस्थिति पार – झिल्ली (trans-membrane) चैनल प्रोटीन के माध्यम से होता है जो झिल्ली में वरणात्मक छिद्र (selective pore) की भांति कार्य करती हैं। छिद्र का आकार तथा इसकी भीतरी सतह की ओर उपस्थित आवेश का घनत्व यह सुनिश्चित करते हैं कि इनमें से कौन सा अणु गुजर सकता है। जब तक ये छिद्र खुले रहते हैं अणु इनमें से होकर तेजी से गति कर सकते हैं। ये चैनल ‘गेट’ युक्त होते हैं जो बाहरी उद्दीपन ( stimulus) के आधार पर खुलते अथवा बंद होते हैं। चैनल प्रोटीन के माध्यम से आयन का विसरण सबसे अधिक तेजी से होता है।
वाहक माध्यमित अथवा सुगमित विसरण (Carrier mediated diffusion or Facilitated diffusion)
पादप के पोषण एवं उपापचय से संबंधित अधिकांश अणु सरलता से झिल्ली के पार नहीं जाते उन्हें झिल्ली में उपस्थित प्रोटीन की आवश्यकता होती है। किसी वाहक के माध्यम से लवणों के कोशिका में निष्क्रिय अवशोषण को सुगमित विसरण अथवा वाहक माध्यमित विसरण कहते हैं। ऐसा माना जाता है कि संभवत कुछ प्रोटीन शटल की तरह से आयनों को कोशिका के भीतर व बाहर लाने ले जाने के लिए कार्य करती । ये वाहक विशिष्ट अणु या आयन के साथ संलग्न हो जाते हैं तथा कोशिका झिल्ली के दूसरे – किनारे पर चले जाते हैं वहां पर इन अणुओं को मुक्त कर देते हैं। यह विसरण सांद्रता प्रवणता की दिशा में ही होता है। इस प्रकार के कुछ प्रोटीन जीवाणुओं में पाये गये हैं जो आयनोफोर (ionophore) कहलाते हैं व धनायनों को झिल्ली के आर-पार लाते ले जाते हैं। ये ऊतकों की उच्च सांद्रता पर संतृप्तता (saturation) प्रभाव, तथा आयन व अणुओं के प्रति वरणात्मकता (selectivity) एवं प्रतिस्पर्धा (competition) प्रदर्शित करते हैं।
- द्रव्यमान प्रवाह सिद्धान्त (Mass flow theory)
ह्ययलम्यो (Hyulomyo, 1953,55). क्रेमर (Kramer. 1956), रसेल एवं बाथर (Rassel and Bather, 1960) ने यह अवध अनुसार शरण दी कि आयन जल के द्रव्यमान प्रवाह के साथ-साथ ही जड़ से होते हुए प्ररोह तक पहुँचते हैं। इस मत के वाष्पोत्सर्जन में वृद्धि के साथ लवणों का अवशोषण एवं स्थानांतरण भी बढ़ता है। हांलाकि यह स्पष्ट नहीं है कि यह प्रभाव प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष।’ लोपूशिंस्की (Lopushinsky, 1964) ने टमाटर के पौधे में रेडियोधर्मी P32 एवं Ca45 का उपयोग करते हुए पाया कि वाष्पोत्सर्जन के साथ जल स्थैतिक दाब (hydrostatic pressure) में वृद्धि से आयन अंतर्ग्रहण (ion uptake) में वृद्धि होती है । प्रद्रव्यमान प्रवाह एवं वाष्पोत्सर्जन के प्रत्यक्ष प्रभाव को चुनौती दी गई है ये सिद्धान्त परासरण प्रवणता (osmotic gradient) के विरुद्ध लवणों के संचय का कोई स्पष्टीकरण नहीं दे सकता। कुछ वैज्ञानिकों के मतानुसार वाष्पोत्सर्जन जल एवं लवणों के जायलम में पहुँचने के बाद लवणों का हटा कर अप्रत्यक्ष रूप से प्रभाव डालता है।
- आयन विनिमय सिद्धान्त (Theory of lon exchange)
अनेक पादपों में पाया गया है कि आयनों का अवशोषण सांद्रता प्रवणता के विरुद्ध होता है तथा इसमें ऊर्जा भी खर्च नहीं होती। ऐसा माना जाता है कि इस प्रकार का उर्जा रहित अवशोषण आयन विनिमय अथवा डोनन साम्यावस्था के माध् यम से होता है।
इस सिद्धांत के अनुसार जड़ों के बाहर विलयन में उपस्थित आयन जड़ की सतह पर कोशिका भित्ति में अवशोषित आयन से विनिमय कर सकते हैं। जिस प्रकार मृदा के मिसेल एवं मृदा विलयन के मध्य आयन विनिमय होता है उसी प्रकार जड़ की सतह (कोशिका भित्ति) पर धनायन हाड्रोजन आयन तथा हॉइड्रॉक्सिल आयन ऋणायनों के साथ परस्पर विनिमय करते हैं।
आयन विनिमय को जौ की कटी हुई जड़ों के साथ रेडियोधर्मी K+ आयन के उपयोग द्वारा सिद्ध किया गया। यहां K+ आयनों का विनिमय रेडियोधर्मी K+ आयनों के साथ होता है। इसी प्रकार CI एवं Br- में भी वैद्युत समन्वय को परिवर्तित किए बिना आपस में विनिमय होता रहता 1
- आयन विनिमय के स्पष्टीकरण के लिए दो सिद्धांत बताये गये हैं-
(i) आयन सम्पर्क विनिमय सिद्धान्त
(ii) कार्बोनिक अम्ल विनिमय सिद्धान्त
(i) सम्पर्क विनिमय सिद्धान्त (Contact exchange theory)
यह सिद्धान्त आयनों के एक अधिशोषक ( adsorbent) सतह से दूसरी अधिशोषक सतह पर परस्पर विनिमय पर आध रित है। इसके अनुसार आयनों का अथवा लवणों में विलयन के रूप में होना आवश्यक नहीं है। मिट्टी के कोलाइडी कण- मिसेली (micelle) की सतह ऋणावेशित होती है तथा अनेक धनायन (cations) इनसे स्थिर वैद्युती बल (electrostatic force) के कारण इन कर्णौ पर अधिशोषित हो जाते हैं। स्थिर वैद्युती बल से बंधे ये आयन स्थिर नहीं होते बल्कि एक निश्चित स्थल पर दोलन (oscillate) करते रहते हैं। जब मृदा कण एवं पादप मूल पर उपस्थित दोलायमान आयनों का अतिव्यांपन (overlapping) होता है तो उनमें तुरंत विनिमय हो जाता है। इस प्रकार से धनायन विनिमय होता है। उदाहरणतया किसी भी धनायन (K+) का मृदा में उपस्थित H+ तथा क्षारीय मृदा में अधिकांशतः Ca++ आयन से विनिमय हो जाता है। इसी प्रकार मिट्टी में उपस्थित ऋणायनों का भी OH- से विनिमय हो जाता है।
(ii) कार्बोनिक अम्ल विनिमय सिद्धान्त (Carbonic acid exchange theory)
इसमें मृदा जल अथवा विलयन का महत्वपूर्ण योगदान है। पादप मूल श्वसन के द्वारा कार्बन डाई ऑक्साइड छोड़ते हैं जो मृदा में उपस्थित जल के साथ मिलकर कार्बोनिक अम्ल बनाती हैं। यह H+ एवं HCO3 आयनों में विघटित हो जाता विलयन में उपस्थित समान आवेश युक्त धनायन अथवा ऋणायन से विनिमित (exchanged) हो जाते हैं ।
इन दोनों सिद्धान्तों के अनुसार मृदा कणों अथवा विलयन में उपस्थित आयन पादप मूल की ओर गति करते हैं। वाष्पोत्सर्जन अपकर्षण से यह गति तीव्र हो जाती है तथा अवशोषण अधिक होता है। ये आयन कोशिका भित्ति के बाद कोशिका झिल्ली की सतह पर आ जाते हैं। चूंकि यह सभी के लिए पारगम्य नहीं होती अतः अवशोषण की प्रक्रिया मंद हो जाती है। यहाँ से भीतर की ओर आयनों को पहुँचाने के लिए उपापचयी ऊर्जा की आवश्यकता होती है हालांकि कुछ आयन विसरण द्वारा भीतर प्रवेश कर जाते हैं।
- डोनन साम्यावस्था सिद्धान्त (Donnan equillibrium theory )
एफ जी डोनेन (F. G. Donnan, 1927) द्वारा प्रतिपादित यह सिद्धान्त अविसरणीय अथवा स्थिर (undiffusible or fixed) आयनों के प्रभाव पर आधारित है। इसमें वरणात्मक पारगम्य (selectivity permeable) झिल्ली की वरणात्मकता को आधार बनाया गया है। यदि प्लाज्मा झिल्ली कोशिका में से किन्ही ऋणायनों को बाहर नहीं जाने देती परन्तु बाह्य विलयन से दोनों आयनों (धनायन व ऋणायन) के लिए पारगम्य है तो भीतर के ऋणायनों को संतुलित करने के लिए धनायन भीतर प्रवेश करते है अतः धनायनों की संख्या बाह्य विलयन से अधिक होगी। बाह्य घोल से ऋणायन कम संख्या में भीतर प्रवेश करेगें अतः उनकी संख्या बाहर ज्यादा होगी इस प्रकार की वैद्युत साम्यावस्था जो वैद्युत आवेश एवं विसरण प्रक्रिया द्वारा नियंत्रित रहती है डोनेन साम्यावस्था कहलाती है। डोनेन साम्यावस्था में
कोशिका रस में धनायनों की सांद्रता/ बाह्य विलयन में धनायनों की सांद्रता
बाह्य विलयन में ऋणायनों की सांद्रता /कोशिका रस को ऋणायनों की सांद्रता
इस प्रकार की साम्यावस्था से कभी-कभी कोशिका में विशिष्ट आयन की सांद्रता बाह्य विलयन से 30 गुना ज्यादा तक हो सकती है। Zn का अवशोषण संचय इसी आधार पर होता है। यह सिद्धान्त सांद्रता प्रवणता के विपरीत दिशा में उपापचयी उर्जा खर्च किए बिना आयनों के विसरण की व्याख्या (explaination) देता है।
निष्क्रिय खनिज लवण अवशोषण सिद्धान्तः आपत्तियां
(Passive mineral salt absorption theory: Objections )
- खनिज अवशोषण की वास्तविक दर निष्क्रिय अवशोषण अवधारणाओं के अनुसार अपेक्षित दर से कहीं अधिक होती है, जिसका कोई स्पष्टीकरण निष्क्रिय अवशोषण अवधारणाओं द्वारा नहीं दिया जा सकता।
2 निष्क्रिय अवशोषण विपरीत संबंधित दिये गए कोई भी सिद्धान्त परासरण प्रवणता के विपरीत लवणों व आयनों के अवशोषण एवं संग्रह का उपयुक्त स्पष्टीकरण नहीं देते। कुछ जलीय पादपों जैसे नाइटेला ट्रांसलूसेंस (Nitella transhuscens) एवं कारा ऑस्ट्रेलिस (Chara australis) में बाह्य विलयन की अपेक्षा K+ की सांद्रता लगभग 1000 गुना होती है।
- निष्क्रिय अवशोषण अवधारणा के अनुसार खनिज लवण अवशोषण एवं उपापचयी क्रियाओं में कोई संबंध नहीं होता जबकि प्रयोगों द्वारा पाए गये तथ्य इसके विपरीत इंगित करते हैं।
(i). श्वसन एवं ऋणायन अवशोषण के मध्य सीधा संबंध पाया गया है।
(ii) हॉप्किंस (Hopkins, 1956) ने पोषक माध्यम में ऑक्सीजन की कमी के साथ लवण संचयन में भी कमी पाई अर्थात् लवण संचय एवं श्वसन में प्रत्यक्ष संबंध होता है।
(ii) उपापचयी क्रियाओं एवं लवणों के अवशोषण व संचय क्षमता में नजदीकी संबंध पाया जाता है।
(iv) उपापचयी अवरोधक एवं संदमक लवणों के अवशोषण को विपरीत रूप से प्रभावित करते हैं। राबर्टसन एवं टर्नर (Rodertson and Turner, 1956), तथा लुण्डेगार्ध (Lundegardh, 1956) ने प्रयोगों द्वारा सिद्ध किया कि कार्बन मोनो ऑक्साइड (O2 अवरोधक) एवं सायनाइड तथा एजाइड (उपापचयी संदमक एवं एन्जाइम विष) की उपस्थिति में लवण अंतर्ग्रहण (uptake) अवरुद्ध हो जाता है।
(v) अनेक उपापचयी क्रियाएँ तथा इन्हें प्रभावित करने वाले कारक यथा प्रकाश, आक्सीजन की कमी (oxygen tension), pH, तोपमान वृद्धि इत्यादि लवण अवशोषण को प्रभावित करते हैं। ऐसा लगता है कि उपापचयी क्रियाएँ प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से लवण अंतर्ग्रहण को प्रभावित करते हैं।
(vi) स्टीवार्ड (Steward, 1932) एवं हॉकिंस (Hopkins, 1956) ने लवण अवशोषण एवं श्वसन में नजदीकी संबंध पाया एवं देखा कि श्वसन की गति बढ़ाने पर लवण अवशोषण की गति बढ़ जाती है। लुण्डेगार्ध एवं बर्सट्राम (Lundegardh and Burstrom, 1933) ने पाया कि पादप को जल से लवणीय जल में स्थानांतरित करने पर लवण अवशोषण के साथ-साथ श्वसन दर भी बढ़ जाती है जिसे लवण प्रेरित श्वसन (salt induced respiration) कहा गया। अनेक वैज्ञानिकों ने इन प्रायोगिक निष्कर्षों एवं विभिन्न आपत्तियों को ध्यान में रखते हुए लवण अवशोषण के लिए सक्रिय अवशोषण अवधारणाएं प्रस्तुत की व समर्थन किया ।
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