WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

तोपों का युद्ध किसे कहते हैं , तोप का युद्ध कब और क्यों लड़ा गया war of cannon in hindi

जाने war of cannon in hindi तोपों का युद्ध किसे कहते हैं , तोप का युद्ध कब और क्यों लड़ा गया ?

प्रश्न: तोपो का युद्ध
1848, सिक्खों की निर्णायक पराजय। 29 मार्च, 1849 डलहौजी ने एक तरफा घोषणा की कि पंजाब का राज्य समाप्त किया जाता है। महाराजा दलीप सिंह को पेंशन दी जाती है। लंदन में शिक्षा का भार भारत सरकार वहन करेगी। कोहिनूर ब्रिटिश सम्राट को भेंट किया जाता है।
प्रश्न: भारत का वह पहला राज्य कौनसा था जिसने अंग्रेजों की सहायक संधि स्वीकार की ?
निजामशाही (आसफजाही वंश) की स्थापना चिनकिलिच खां ने 1724 में की। फर्रुखशियर ने इसे निजाम-अल-मुल्क की उपाधि दी व मुहम्मदशाह रंगीला ने आसफजहां की उपाधि देकर दक्षिण का सूबा दिया गया। निजाम अली (1799) के समय में हैदराबाद में अंग्रेजों से सहायक संधि की। पहला भारतीय राज्य जिसने सहायक संधि स्वीकार की।

प्रश्न: देशी राज्यों के प्रति समकक्षता समतुल्यता की नीति (1935-47) के कारण, उद्देश्य एवं विषताओं की विवेचना कीजिए।
उत्तर: समतुल्यता की नीति का अर्थ था बराबर के आधार पर ब्रिटिश सर्वोच्च सत्ता का देशी राज्यों से संबंध। इस नीति के तहत 1935 के भारत
शासन अधिनियम के जरिए एक ऐसे संघ के निर्माण की व्याख्या की गई, जिसमें देशी रियासतें बराबरी पर हों।
कारण, उद्देश्य एवं विशेषताएं
1. बदलती वैश्विक एवं भारतीय राजनीतिक परिस्थितियों में ब्रिटिश सरकार द्वारा यह महसूस किया गया कि बटलर समिति के सुझाव ठीक
नहीं है।
2. भारत में हो रहे राष्ट्रीय आन्दोलन केवल देशी राज्यों में प्रतिनिधि संस्थाओं द्वारा उत्तरदायी सरकार संबंधी मांगों ने ब्रिटिश सरकार को
अपना अस्तित्व कायम रखने के लिए देशी राज्यों के समर्थन की ओर पुनः प्रेरित किया। क्योंकि राष्ट्रीयता के उन्माद को रोकने के लिए देशी राज्यों का ही प्रयोग किया जा सकता था।
3. देशी राज्यों के पास भी अपने निरंकुश अधिकारों को बचाने का एकमात्र विकल्प था – ब्रिटिश सत्ता से सहयोग बनाकर रखना।
4. इसलिए 1930 की साइमन कमीशन की रिपोर्ट के सुझाव के आधार पर अखिल भारतीय संघ की प्रक्रिया शुरु की तथा भारत के संवैधानिक विकास में देशी रियासतों को संघ की सदस्यता स्वीकार करने के लिए कहा गया।
5. 1935 में इस एक्ट में भारतीय रियासत को संघ में शामिल होने के लिए अनेक सुविधाएं दी जाने लगी जैसे उन्हें अपनी जनसंख्या से अधिक प्रतिनिधित्व प्राप्त था। उन्हें संघ विधानसभा के लिए अपने प्रतिनिधि को मनोनीत करने का अधिकार था। निश्चित संख्या में भारतीय रियासतें इस संघ में शामिल हो। प्रस्तावित संघ तभी कायम हो सकता था जब कम से कम अधिदेशी राज्य इसमें सम्मिलित हो।
6. ऐसी व्यवस्था के पीछे ब्रिटिश सरकार का अपना हित था क्योंकि रियासतों के राजाओं से अपनी इच्छानुसार कार्य करवाने में कठिनाई नहीं होती और उनका पक्ष शक्तिशाली हो जाता।
7. दरअसल भारतीय संवैधानिक प्रगति न हो यही ब्रिटिश सरकार की मंशा थी।
परिणाम
1. ब्रिटिश साम्राज्य के सहयोगी की भूमिका में देशी नरेशों की विफलता।
2. उनके द्वारा संघ का प्रस्ताव अपनी शर्तों के मुताबिक नहीं होने के कारण नामंजूर किया जाना तथा अंग्रेजी सरकार द्वारा अनदार तत्वों को संविधान में आरोपित नहीं करने की मजबूरी। राज्यों की प्रजा द्वारा निरंकुश नरेशों का खुला विरोध।

प्रश्न : तिब्बत के प्रति कर्जन की नीति की विवेचना कीजिए।
उत्तररू जिस समय लॉर्ड कर्जन भारत आया (1899), उस समय तिब्बत में रूसी प्रभाव बढ़ रहा था। इसी बीच 1902 में कर्जन को चीन तथा रूस के बीच एक गुप्त समझौते की जानकारी मिली, जिसके अनुसार चीन की सरकार ने तिब्बत पर रूस का नियंत्रण स्वीकार कर लिया था। मार्च 1904 में लॉर्ड कर्जन ने फ्रांसिस यंग हस्बैंड के नेतृत्व में एक सैनिक अभियान दल तिब्बत की राजधानी ल्हासा के लिए भेजा। इसका मुख्य उद्देश्य तिब्बतियों को समझौता करने के लिए बाध्य करना था। 7 सितंबर, 1904 को दलाई लामा ने यंग हस्बैंड के साथ श्ल्हासा की संधिश् की। इसके अनुसार तिब्बत पर युद्ध के हर्जाने के रूप में 75 लाख रुपये शोप दिये गये। हर्जाना चकाये जाने की अवधि तक चुम्बी घाटी पर अंग्रेजों का अधिकार स्वीकार कर लिया गया। व्यपारिक सविधा के लिए यातंग, ज्ञानत्से तथा गरटॉक में ब्रिटिश व्यापारिक केंद्र खोलने की बात तय हुई। यह भी तय हुआ कि तिब्बत. इंग्लैण्ड के अलावा अन्य किसी भी विदेशी शक्ति को तिब्बत में रेल, सड़क, तार आदि बनाने की निशा पटान नहीं करेगा। इस नीति से तिब्बत पर रूसी प्रभाव तो कम अवश्य हो गया. परंत चीन की सार्वभौमिकता मिलतप स्पष्ट रूप से स्थापित हो गयी। फिर भी, कर्जन की नीति के फलस्वरूप तिब्बत पर रूस का प्रभाव कायम नहीं होना, उसकी एक सफल रणनीतिक विजय ही मानी जा सकती है।

प्रश्नः कृषि का वाणिज्यीकरण से आप क्या समझते हैं ? ब्रिटिश भारत सरकार द्वारा इसे लागू किए जाने के पीछे क्या उद्देश्य थे ?
उत्तररू कृषि के वाणिज्यिकरण का अर्थ इस प्रकार की कृषि उत्पादन की प्रक्रिया शुरु करना है जिसमें कृषि उत्पादों का प्रयोग व्यापारिक मुनाफे के लिए किया जाता है। भारत में कृषि के वाणिज्यीकरण की जो प्रक्रिया प्रारंभ हुई उसका मूल उद्देश्य भारत में नकदी फसलों का उत्पादन करके निर्यात करना तथा इस निर्यात के माध्यम से लाभांश प्राप्त करना था। कृषि उपज के बाजारों का अस्तित्व प्राक् औपनिवेशिक काल में भी था, लेकिन इसका स्वरूप देशीय था अर्थात आत्मनिर्भरता के साथ-साथ राजस्व प्राप्त करने का दबाव तथा शहरों एवं विदेशों की मांगे तथा निर्यात को ध्यान में रखकर कृषक वस्तुओं का उत्पादन होता था।