ग्रेट लैक्स के विकास की अवस्थाएँ क्या हैं , ग्रेट लेक्स किन समूह का नाम है , महान झील प्रदेश की पांच झीलों के नाम
महान झील प्रदेश की पांच झीलों के नाम ग्रेट लैक्स के विकास की अवस्थाएँ क्या हैं , ग्रेट लेक्स किन समूह का नाम है ?
ग्रेट लैक्स के विकास की अवस्थाएँ –
विभिन्न साक्ष्यों तथा अध्ययनों के आधार पर ग्रेट लेक्स के विकास में 7 अवस्थाओं का प्रतिपादन किया गया है:
प्रथम अवस्था – सर्वाधिक हिम-प्रसार के समय हिमचादर का विस्तार, मिसीसीपी तथा सेण्ट लारन्स के मध्य जलविभाजक के दक्षिण तक हो गया था। हिमचादर के अप्रभागों से निकले हुए जल का निकास मिसीसीपी प्रवाह क्रम से होकर मध्यवर्ती निम्न भाग की ओर था। वर्तमान ग्रेट लेक्स का समस्त भाग हिमचादर से आच्छादित था।
द्वितीय अवस्था – उपर्युक्त अवस्था के बाद हिमचादर का पिघलना तथा पीछे हटना प्रारम्भ हो गया। हिमचादर के पिघलने से प्राप्त जल, हिमचादर द्वारा छोड़े गये अन्तिम हिमोढ तथा हिमचादर के मध्य एकत्रित होकर झील के रूप में परिवर्तित होने लगा। हिमचादर का जब निवर्तन होने लगा तो स्थान-स्थान पर हिमचादर का रूप हिम के भार के कारण लोब के समान होने लगा। हिमचादर पिघलने के कारण जब प्राचीन जलविभाजक उत्तर खिसक गई तो जल विभाजक तथा हिमचादर के मध्य जल अवरुद्ध होकर एक विस्तृत जल-क्षेत्र या बेसिन में परिवर्तित हो गया।
तृतीय अवस्था – पुनः हिमचादर के पिघलने तथा उत्तर को ओर सरकने के कारण हिमयुग से पूर्व का निमित सेण्टलारेन्स की घाटी की सहायक घाटियों का दक्षिणी भाग हिमचादर से अनाच्छादित हो जाने से छछली बेसिन के रूप में बदल गया। उत्तर की ओर सरकती हुई हिमचादर लोब के रूप में परिवर्तित हा लगी। परिणामस्वरूप वर्तमान सपीरियर झील के दक्षिणी भाग में इलुथ झील, मिशिगन के दक्षिण में शिकागों झील तथा ईरी झील के दक्षिण-पश्चिम में मामी झील का निर्माण हो गया जिन्हें ग्रेट लेक्स कहते हैं | इन नवनिर्मित झीलों का प्रवाह दिशा दक्षिण की ओर मिसीसीपी क्रम में थी। इलथ झील सेण्ट वापस नदी से होकर दक्षिण में मिसीसापी से सम्बन्धित थी। इसी तरह शिकागो झील का जल इलोनोइस नदी से होकर एवं मामी झील का जल वाबाश नदी से होकर मिसीसीपी क्रम से मिलने लगा। स्पष्ट है कि इस अवस्था तक नवनिर्मित तीन झीलों का जल स्वतंत्र रूप में प्रवाहित होकर मिसीसीपी क्रम से मिलता था। इस अवस्था में प्रवाह क्रम की दो दिशायें थीं। झीलों का जल तो मिसीसीपी क्रम से होकर प्रवाहित होता था, परन्तु पूर्व में हिमचादर के पिघलने से प्राप्त जल का निकास ससक्वेहना तथा हडसन नदियों से होकर होता था। जब मिशिगन के दक्षिणी भाग से अधिकांश हिम पिघल कर लुप्त हो गया तो सैगिना की खाड़ी में एक लोब का निर्माण हुआ। इस लोब के अग्रभाग में सैगिना झील का विकास हो गया। सेगिना झील का जल ग्रेण्ड नदी से होकर शिकागो झील में आने लगा। इसी समय मामी झील का जल एक नवीन मार्ग द्वारा सैगिना झील से मिल गया। परिणामस्वरूप मामी झील मे वाबाश नदी के निकास का परित्याग कर दिया। अब मामी झील का जल नवीन निकास द्वारा सैगिना झील से होकर पुनः ग्रैण्ड नदी से होकर शिकागो झील में जाने लगा। यहाँ पर एकत्रित जल इलीनोइस नदी से होकर मिसीसीपी क्रम में मिल जाता था। हिमचादर के क्रमशः टते जाने के साथ ही साथ मामी झील का भी विस्तार होता रहा।
चतुर्थ अवस्था – हिमचादर के पुनः उत्तर की ओर सरकने पर झील लुण्डी का निर्माण हुआ। पश्चिम की ओर इसका विस्तार सैगिना झील तक तथा पूर्व की ओर ह्यूरन झील के दक्षिणी भाग तक हो गया। ओण्टारियों के उत्तर में किर्कलैण्ड के पास भी इस झील का विस्तार हो गया। इस तरह लुण्डी झील का विकास, सैगिना झील, दक्षिणी यूरन तथा समस्त ईरी के जल के सम्मिलित भागों द्वारा हुआ। इस अवस्था में लुण्डी झीलों निकास, मोहक निकासद्वारा हडसन से होकर अटलाण्टिक महासागर में हो गया। सैगिना झील के ग्रैण्ड नदी द्वारा पश्चिम की ओर के निकास की समाप्ति हो गई। शिकागो झील का निकास वर्तमान मिशिगन के लगभग हो गया था तथा डुलुथ झील, वर्तमान सुपीरियर के आधे भाग में विस्तृत थी। डुलुथ तथा शिकागो झीलों का सम्बन्ध अब भी मिसीसीपी क्रम से था। हिमचादर के पुनः उत्तर की ओर सरकने से ओण्टारियो झील के अधिकांश भाग का अनावरण हो गया, जिसमें इरीदिवस झील का विकास हुआ।
पंचम अवस्था- पंचम अवस्था के आगमन के समय वर्तमान झीलों की बेसिन से हिमचादर का पूर्णतया लोप हो गया था। सुपीरियर, मिशिगन तथा यूरन झीलों का जल सम्मिलित होकर एक विस्तृत झील के रूप् में परिवर्तित हो गया। इस झील का नामकरण अलगानिकन झील किया गया। हिमचादर के सरकने के साथ ही ईरी तथा ओण्टारियो झीलों के बीच एस्कार्पमेन्ट का अनावरण हो गया था। अतः इरी का जल इस एस्कार्पमेन्ट से होकर इरोक्विस में जाते समय प्रपात बनाता था। नियाग्रा प्रपात का प्रारम्भ यहीं से होता है। इस समय तक सेण्टलारेन्स मार्ग हिम के कारण अवरुद्ध था। आगे चलकर हरन का कछ जल सेण्ट क्लेयर निकास से होकर ईरी झील में आने लगा।
छठवी अवस्था- हिमचादरों के और अधिक उत्तर की ओर सरकने पर सेण्टलारेन्स की घाटी से हिम पूर्णतया हट गया। परिणामस्वरूप सागरीय जल का विस्तार चैम्पलेन सागर के रूप में समस्त सेण्टलारेन्स की घाटी और हडसन मोहक द्वार तक हो गया। इसी समय ओटावा निकास खुल गया, जिस कारण सुपीरियर, मिशिगन तथा ह्यूरन झीलों का जल ओटावा निकास से होकर चैम्पलेन सागर में जाने लगा। ईरी झील का जल नियाग्रा प्रपात से होकर ओण्टारियो झील से होकर चैम्पलेन सागर तक पहुँचता था। इस प्रकार इस अवस्था तक नियाग्रा प्रपात से होकर केवल ईरी का जल ही प्रवाहित होता था।
सप्तम अवस्था- अन्तिम अवस्था में हिमचादर का पूर्णतया निवर्तन हो गया था हिमचादर के हट जाने से भार में कमी होने से महाद्वीप का उत्तरी-पूर्वी भाग ऊपर उठने लगा, जिस कारण ऊपरी सेण्टलारेन्स तथा हडसन चैम्पलेन निम्न भाग में सागरीय जल का निवर्तन हो गया। प्रत्येक झील के आकार में ह्यस हुआ, जिससे उनका वर्तमान रूप प्राप्त हो सका। ओटावा निकास की समाप्ति हो गई। सुपीरियर, मिशिगन तथा हृूरन झीलों का जल सेण्ट क्लेयर नदी से होकर ईरी झील में जाने लगा। वहाँ से पुनः नियाग्रा नदी से होकर ओण्टारियो झील तथा अन्त में सेण्टलारेन्स नदी द्वारा अटलाण्टिक महासागर में जाने लगा। इस तरह गे्रट लेक्स का वर्तमान रूप तथा उनके अपवाह प्रतिरूप का अन्तिम रूप प्राप्त हुआ।
सागर तल में उतार-चढ़ाव
(Fluctuation in Sea Level)
यह ध्यान में रखने योग्य तथ्य है कि हिमयुग के समय हिमानी प्रावस्था (सागर तल में गिरावट) तथा अन्तर्हिमकाल प्रावस्था के समय (सागर तल में वृद्धि) सागर तल में उतार-चढ़ाव का सागर तटीय क्षेत्रों पर व्यापक प्रभाव होता है। हिमकाल के समय स्थलीय भागों पर हिमचादरों के आच्छादन के कारण सागर तल में पर्याप्त गिरावट (fall) इसलिए होती है कि सागरों के जल की भारी राशि हिम के रूप में स्थलभागों पर हिमचादर के रूप में छा जाती है। इस तरह जब हिमचादर पिघलने लगती है तथा जब हिमकाल का अवसान होन लगता है तो हिमचादर के पिघलने से प्राप्त जल सागरों में चला जाता है जिससे सागरतल पनः ऊपर उठने लगता है अतः वह बाढ़ का रूप ले लेता है। सामान्यतः समस्त हिमचादर पूर्णतया नहीं पिघल पाती है, अतः हिमकाल के बाद अन्तर्हिमकाल का सागर तल, हिमकाल से पहले के सागरतल के बराबर नहीं हो पाता है, बल्कि कुछ नीचा ही रह जाता है। प्रायः यह अनुमान किया जाता है कि यदि वर्तमान समय में ग्रीनलैण्ड तथा अण्टार्कटिका की हिमचादर पूर्णतया पिघल जाय तथा उसका जल सागर में लौट जाय तो वर्तमान सागर-तल में 150 से 200 फीट की वृद्धि हो जायेगी। इन गणना के आधार पर यह विश्वास किया जाता है कि अधिकतम हिमाच्छादन के समय, जबकि 3,00,000 वर्ग किमी. पर 1000-1500 मीटर का आवरण व्याप्त था, सागर-तल में 100 मीटर की गिरावट हुई होगी। सागर तल में गिरावट के कारण सागरीय भागों के विभिन्न स्वरूपों पर अत्यधिक प्रभाव होता है। सागर-तल के नीचा हो जाने पर सागरीय लहरों ने अपरदन द्वारा विस्तृत तरंग-अपरदित प्लेटफार्म का निर्माण कर दिया था। इस तरह के स्थलरूपों के प्रमाण अनेक स्थानों पर पाये गये हैं। हिमकाल के अवसान के बाद जब सागर-तल में चढ़ाव या वृद्धि हुई तो ये तंरग-अपरदित प्लेटफार्म जलमग्न हो गये। अनेक विद्वानों ने कई प्रमाणों के आधार पर इस निष्कर्ष का प्रतिपादन किया है कि प्लीस्टोसीन हिमकाल में प्रत्येक बार जब कि हिमचादर पिघल जाती थी, सागर-तल अपने पहले वाले तल को प्राप्त नहीं कर पाता था। अर्थात् हिम के पिघलने पर भी सागर-तल प्रारम्भिक तल के बराबर नहीं हो पता था। प्लीस्टोसीन हिमानीकरण तथा सागर-तल में क्रमिक उतार-चढ़ाव का प्रभाव प्रवाल-पालिप पर भी कम महत्वपूर्ण नहीं था।
स्थलखण्ड में अवतलन तथा उत्थान
(Subsidence and Upliftment of Landmass)
प्लीस्टोसीन हिमकाल में स्थलीय भागों पर हिमावरण के कारण भार अधिक होने से स्थलीय भाग का घुसाव या अवतलन होने लगा। जब हिमचादर पिघल गयी तो स्थल भाग में उत्थान होने लगा, अथात् प्लीस्टोसीन हिमनीकरण के समय प्रभावित क्षेत्रों में संतुलन में व्यवधान उपस्थित हो गया था। इस तथ्य के अनेक प्रमाण उत्तरी अमेरिका तथा उत्तरी यूरोप से प्रस्तत किये जा सकते हैं। परन्त कई विद्वानों ने गणना के आधार पर बताया है कि हिमकाल के समय सुपीरियर झील के आस-पास 1500 फीट का अवतलन हो गया था तथा हिमचादर के पिघल जाने पर पुनः 1500 फीट तक स्थलभाग ऊपर उठ कर अपने प्रारम्भिक तल को प्राप्त कर लिया। यह स्मरणीय है कि हिमाच्छादित भागों की सीमाओं पर भी अवललन हुआ था, परन्तु इसकी मात्रा बहुत कम थी। यह जानना आवश्यक है कि अवतलन या उत्थान की गति अत्यन्त मन्द थी। यह क्रिया एक लम्बे समय में घटित हुई थी। इन्हें आकस्मिक क्रिया नहीं मानना चाहिए। ग्रेट लेक्स क्षेत्र के पूर्वी भाग में भी हिमचादर के कारण स्थलभाग में अवतलन के प्रमाण मिले हैं। प्लोस्टोसीन युग के अन्त में हिमचादर के कारण ग्रेट लेक्स के पूर्वी भाग में अवतलन हो जाने से सागरीय भूजा का विस्तार सेण्ट लारेन्स की घाटी से लेकर ओण्टारियों झील तक हो गया। वैम्पलेन झील भी इस सागर में अन्तर्गत समा गयी थी। प्लीस्टोसीन हिमकाल के समय स्थलीय भागों के अवतलन तथा उत्पादित देने के प्रमाण ऊँचाई पर स्थित जीवाश्म द्वारा भी मिलते हैं। वर्तमान समय में अन्तिम प्लीस्टोसीन युग के सागरीय फासिल्स, ‘न्यू-इंगलैंड‘ के किसी विशेष प्रान्त के तटीय भाग में वर्तमान सागर तल से 60 मीटर की ऊंचाई पर चैम्पलेन झील के उत्तरी भाग पर सागर-तल से 150 मीटर की ऊंचाई पर तथा जेम्स की खाड़ी के तट पर 180 मीटर की ऊंचाई पर पाये गये हैं। इन प्रमाणों से यह स्पष्ट होता है कि हिमानीकरण के समय हिमचादर के भार के कारण उपर्युक्त स्थानों पर अवतलन हो गया था तथा उस तल पर सागरीय जीवावशेषों का संचयन हुआ था। बाद में हिमचादर के पिघल जाने पर अवतलित भाग ऊपर उठ गये जिस कारण जीवावशेष भी उतनी ही ऊँचाई पर उठ गये जितना कि अवतलन हुआ था। इसी तरह के प्लीस्टोसीन हिमकाल तथा उत्तर-हिमकाल में युरोप में स्थलखण्डों में अवतलन तथा उभार के अनेक प्रमाण मिले हैं। फेनोस्कैण्डिया क्षेत्र मोटी हिमचादरों से आच्छादित हो गये थे, जिस कारण स्थलीय भागों में वृहद स्तरीय धसाव हो गया। उत्तर-हिमकाल के समय हिम चादरों के पिघलने के कारण स्थलीय भाग धीरे-धीरे ऊपर उठने लगे। विश्वास किया जाता है कि फेनो स्कैण्डिया का मध्यवर्ती भाग अब भी धीरे-धीरे ऊपर उठ रहा है। प्लीस्टोसीन हिमकाल की विभिन्न प्रावस्थाओं में अवतलन एवं उभार के कारण ही बाल्टिक सागर का विकास हुआ।
वर्तमान स्थलाकृतियों पर प्रभाव
प्लीस्टोसीन हिमचादर के पिघलने के बाद स्थलखण्ड में जो उत्थान प्रारम्भ हुआ उस कारण अनेक सरिताओं में नवोन्मेष हो गया, जिस कारण नदियों ने प्लीस्टोसीन हिमानीकरण द्वारा प्रभावित स्थलीय भागों म गहरे गार्ज का निर्माण कर डाला। कनाडा के क्यूबेक के पठार पर इस तरह नदियों में नवोन्मेष के कारण अनक गार्ज का निर्माण हआ है। स्थलीय भागों में उत्थान केकारण तरंग-कृत सागरीय बेदिकाये भी ऊपर उठ गयों, जिन पर प्लीस्टोसीन हिमकाल के सागरीय जीववशेषों के लक्षण इस समय भी देखे जा सकते है। अधिकांश क्षेत्रों में अन्तः सागरीय कैनियन का निर्माण हुआ। प्लीस्टोसोन हिमकाल में सागर-तल के नीचे गिरने के कारण तंरगो द्वारा निर्मित प्लेटफार्म पर हिमचादर के पिघलने के बाद सागर तल में वृद्धि के समय प्र्रवाल पालिप ने प्रवाल भित्तियों का बड़े पैमाने पर निर्माण किया।
हिमचादरों के पिघलने तथा निरंतर पीछे हटने से अन्तिम हिमोड़ो का जमाव इस तरह हुआ है कि कई समानान्तर हिमोढ़ कटकों का निर्माण हो गया है। इन हिमोढ़ों के मध्य जल के एकत्रित हो जाने के कारण अनेक दलदल तथा अनुपजाऊ निम्न भागों का निर्माण हो गया है। स्थान-स्थान पर अन्तिम हिमोड़ों के पीछे निचले भागों में जल के संचय हो जाने में छोटी-छोटी झीलों का विकास हो गया है। हिमोढ़ के अलावा हिमानीकृत क्षेत्रों में अनेक एस्कर, ड्रमलिन, रॉशमुटोने आदि स्थलरूपों का सृजन हुआ है। प्लोस्टोसोन हिमानीकरण सर्वाधिक प्रभाव हिमानीकृत क्षेत्रों की हजारों की संख्या में स्थित झीलों में परिलक्षित होता है। हिमचादर के प्रसार के समय अपरदन तथा निवर्तन के समय निक्षेप के कारण प्रायः सभी प्रभावित क्षेत्रों में अनेकों की संख्या में हिम-झीलों का निर्माण हुआ है। इन हिमकृत झीलों की सबसे अधिक महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि से एक साथ सैकड़ों की संख्या में पाई जाती हैं। फिनलैण्ड इसका प्रमुख उदाहरण है।
स्वीटन की अनेक झीलों का निर्माण प्लीस्टोसीन हिमानीकरण के फलस्वरूप ही सम्भव हुआ था। वैटर्न तथा वैनन झीलें हिमानीकरण द्वारा ही निर्मित हैं। बाल्टिक सागर का विकास प्लीस्टोसीन हिमकाल के विभिनन चरणों में कई अवस्थाओं में हुआ है। उत्तर अमेरिका में ग्रेट लेक्स का आविर्भाव तथा विकास निश्चित रूप से प्लीस्टोसीन हिमकाल के समय हिमचादरों के बार-बार प्रासर तथा निवर्तन के कारण ही हुआ है। पर्वतीय भागों में हिमनदों ने नदियों द्वारा निर्मित घाटियों को अपरदन द्वारा U आकार को घाटियों में दिया। समस्त पर्वतीय उच्चावच्च घिस कर नीचा तथा तीक्ष्ण हो गया। स्थान-स्थान पर अनेक सर्क लटकती घाटियों आदि का निर्माण हो गया। तटीय भागों से जब कि सागर तल नीचा था, हिमनदों ने गहरी घाटियों का निर्माण कर दिया। बाद में, जबकि सागर तल ऊपर उठा तो ये भाग जलमग्न हो गये, जिससे फियोर्ड तटों का निर्माण हुआ है। नार्वे तथा स्वीडन के फियोर्ड तट इसी तरह निर्मित है।
वृहद् झीलों के विकास की अवस्थायें
उत्तरी अमेरिका के स्थलाकृतिक रंगमंच पर प्लीस्टोसीन हिमानीकरण द्वारा निर्मित स्थलरूपों में ग्रेट लेक्स सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं। ग्रेट लेक्स के अन्तर्गत सुपीरियर, मिशिगन, स्रन, ईरी तथा ओण्टारियो झीलों को सम्मिलित किया जाता है। ग्रेट लेक्स का वर्तमान रूप हिमानीकरण के समय अन्तिम हिमचादर के पूर्णतया हट जाने के बाद ही प्राप्त हो सका था। प्रायः ऐसा विश्वास किया जाता है कि प्लीस्टोसीन हिमकाल के पहले, वर्तमान ग्रेट लेक्स के स्थान पर एक निम्न बेसिन थी जो कि कई नदी घाटियों से मिलकर बनी थी। इस बेसिन का अपवाह प्रतिरूप अटलाण्टिक महासागर की ओर था। सम्पूर्ण क्षेत्र वर्तमान समय की अपेक्षा ऊँचा था तथा निम्न बेसिन चारों तरफ से उच्च भागों से घिरी थी। प्लीस्टोसीन हिमकाल के समय जब लेब्राडोर तथा कीवाटिन हिमकेन्द्रों से हिमचादर का प्रसार दक्षिण की ओर होने लगा तो इस बेसिन में हिम के संचयन के कारण उसका अटलाण्टिक महासागर की ओर का प्रवाह-मार्ग अवरुद्ध हो गया। हिमचादर का प्रसार इस जलविभाजक के दक्षिण तक हो गया था। इस समय हिमचादर के अग्रभाग से हिम के पिघलने से प्राप्त जल का निकास दक्षिण की ओर ओहियो तथा मिसौरी नदियों से होकर मिसीसिपी क्रम से सम्बन्धित था। जैसे-जैसे हिमचादर पिघल कर पीछे हटती गयी वैसे-वैसे उससे पिघला हुआ जल विभिन्न भागों से जलविभाजक से होकर मिसीसिपी प्रवाह-क्रम से मिल जाता था। चूंकि प्रारम्भ में निम्न बेसिन का निकास अटलाण्टिक महासागर की ओर था, अतः सेण्टलारेन्स के मुहाने के खुलते ही ग्रेट लेक्स को अटलाण्टिक महासागर में बह जाना चाहिये था परन्तु ऐसा नहीं हो पाया, क्योंकि सेण्ट लारेन्स के मुहाने के पास स्थल भाग धीरे-धीरे ऊपर उठने लगा। इस कारण ग्रेट लेक्स का अधिकांश जल गड्ढ़ों में अवरुद्ध हो गया। जिससे ग्रेट लेक्स तथा सेण्ट लारेन्स के वर्तमान रूप प्राप्त हुए। ग्रेट लेक्स का विकास, एक ही अवस्था में नहीं हुआ है बल्कि कई अवस्थाओं में हुए हैं। ग्रेट लेक्स के विकास की अवस्थाओं पर दो तथ्यों का सर्वाधिक प्रभाव हुआ है। हिमचादरों के पूर्णतया पिघलकर हट जाने पर भी निम्न कारणों से झीलें अदृश्य नहीं हो पायीः
(अ) हिमानीकरण के बाद स्थल भाग अपनी पहले की ऊँचाई (तल) को नहीं प्राप्त कर सका।
(ब) हिमानीकरण के समय निक्षेप (deposits) द्वारा हिमोढ़ के कटक (ridges) के रूप में जमाव के कारण झीलों के जल में अवरोध।
(स) उत्तर-पूर्वी भाग का ऊपर उठना।
होलोसीन स्थलाकृति
(Holocene Landscape)
क्वाटरनरी काल के अन्तिम चरण को होलोसीन या उत्तर-हिमकाल कहते है जो आज भी है। होलोसीन वर्तमान से 10,000 वर्ष पूर्व प्रारम्भ हुआ था। वर्तमान समय में भी प्लीस्टोसीन के हिमनदीय, परिहिमानी, जलीय तथा शुष्क मरुस्थलीय स्थलरूपों के अवशेष दृष्टिगत होते हैं। परन्तु प्लीस्टोसीन स्थलाकृतियों को होलोसीन की जलवायु की वृष्टीय एवं अवृष्टीय प्रावस्थाओं ने बड़े पैमाने पर परिमार्जित एवं परिवर्तित किया है। भविष्य में इन प्लीस्टोसीन स्थलाकृतियों में परिवर्तन होना निश्चित है। प्लीस्टोसीन हिमकाल की विस्तत हिमचादरों के पिघलने से प्राप्त जल की सागरों में वापसी होने से सागर तल में उभार होने से सागर तल ऊँचा हुआ है, जिस कारण सागर तटीय दृश्यावली में परिवर्तन हो रहे हैं। वर्तमान समय में प्लीस्टोसीन की तुलना में यद्यपि हिमावरण का विस्तार कम है परन्तु उच्च पर्वतीय भागों में आज भी हिमनद सक्रिय है। विश्व के एक तिहाई क्षेत्र पर शुष्क एवं अर्द्ध शुष्क जलवायु का विस्तार है। वर्तमान समय में मनुष्य एक महत्वपर्ण भूआकृतिक कारक बन गया है। अपने आर्थिक क्रिया-कलापों द्वारा उष्ण कटिबन्ध में शीतकटिबन्ध तक विभिन्न भआकृतिक प्रक्रमों को प्रभावित कर रहा है तथा क्रियाविधियों एवं गति में परिवर्तन कर रहा है। मानव जनित भूमण्डलीय ऊष्मन के हिमानी, परिहिमानी, जलीय, वायु आदि प्रक्रमों पर दूरगामी प्रभाव पड़े हैं तथा पड़ रहे हैं। भूमण्डलीय ऊष्मन के कारण जलवायु में हो रहे परिवर्तनों के कारण भूमण्डलीय स्तर पर जलवर्षा एवं हिमपात की मात्रा एवं अवधि में स्थानिक एवं कालिक परिवर्तन हो रहे हैं जिस कारण की स्थलाकृतियों की विशिष्टताओं में परिवर्तन परिलक्षित होने लगे हैं।
महत्वपूर्ण प्रश्न
दीर्घउत्तरीय प्रश्न
1. क्वाटरनरी भूआकारिकी का विस्तृत वर्णन कीजिए।
2. क्रिश्चियन काल में जलवायु परिवर्तन का विस्तृत वर्णन कीजिए।
लघुउत्तरीय प्रश्न –
1. सेनोजोइक युग से क्या तात्पर्य है।
2. युरोप का हिमानीकरण टिप्पणी लिखिए।
3. वृहत झीलों के विकास की अवस्थायें लिखो।
4. “होलोसीन स्थलाकृतिष् पर टिप्पणी लिखिए।
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
1. सेनोजोइक काल का क्वाटरनरी युग आज से कितने मिलियन वर्ष पहले प्रारम्भ हुआ-
(अ) 1 (ब) 2 (स)3 (द) 4
2. प्लीस्टोसीन युग में उत्तरी अमेरिका का अधिकांश भाग किससे आच्छादित था-
(अ) हिमकण (ब) हिमचादर (स) वर्षा (द) पर्वतों
3. क्वाटरनरी काल के अंतिम चरण को-
(अ) दीर्घकाल (ब) हिमकाल (स) हालोसीन (उत्तरी हिमकाल) (द) मानसूनी
उत्तर- 1. (अ), 2. (ब), 3. (स)
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