गांधी-इरविन समझौता क्या था ? इसकी आलोचनात्मकता विवेचना कीजिए , क्यों और कब हुआ gandhi irwin pact in hindi
gandhi irwin pact in hindi गांधी-इरविन समझौता कब हुआ उसके दो शर्तों का उल्लेख कीजिए , क्यों और कब हुआ और किस नाम से जाना जाता है ?
प्रश्न: गांधी-इरविन समझौता क्या था ? इसकी आलोचनात्मकता विवेचना कीजिए।
उत्तर: सर तेज बहादुर सप्रू, श्री जयकर एवं बी.एस. शास्त्री के प्रयत्नों के फलस्वरूप गांधीजी एवं वायसराय इरविन के बीच 5 मार्च, 1931 को एक समझौता हुआ, जिसे गांधी-इरविन समझौता या ‘दिल्ली पैक्ट‘ कहते हैं। समझौते की प्रमुख विशेषताएं निम्न हैं।
1. कांग्रेस को सविनय अवज्ञा आंदोलन वापस ले लेना पड़ा।
2. कांग्रेस द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने के लिए तैयार हो गयी।
3. संविधान के प्रश्न पर यह तय हुआ कि संविधान का बुनियादी आधार संघात्मक हो।
4. जिन लोगों को बन्दी बनाया गया, उनमें से उन सभी राजनीतिक बन्दियों की रिहाई, जिन पर हिंसक कार्रवाई का आरोप नहीं है।
5. कानून द्वारा निर्धारित सीमा में शराब व विदेशी दुकानों को रखना होगा।
6. जुर्माना समाप्त करना तथा चल सम्पत्ति जो जब्त की गयी, उसको वापस कर दिया जायेगा।
7. सरकार ने तटीय इलाकों में रहने वाले ग्रामीणों को घरेलू उपयोग हेतु नमक बनाने के अधिकार दिये और शांतिपूर्ण तरीके से बिना आक्रामक हुए लोगों को धरना देने का अधिकार भी दिया।
8. सविनय अवज्ञा आन्दोलन से संबंधित सभी अध्यादेशों को वापस कर लिया गया। करांची अधिवेशन (1931) ने गांधी-इरविन समझौते का अनुमोदन कर दिया।
प्रश्न: मैकडोनाल्ड निर्णय क्या था ? इसे गांधीजी ने किस प्रकार संशोधित किया गया ?
उत्तर: द्वितीय गोलमेज सम्मेलन की समाप्ति पर रैम्से मैकडोनाल्ड ने अगस्त, 1932 में ‘सांप्रदायिक निर्णय‘ की घोषणा की। इस घोषणा में दलित वर्ग को भी मुसलमान, सिख, ईसाई के साथ अल्पसंख्यक वर्ग में रख दिया गया, जिसके सदस्यों का चुनाव ‘पृथक् निर्वाचक मंडल‘ द्वारा होना था। गांधीजी ने दलितों को अल्पसंख्यक वर्ग में शामिल करने तथा उन्हें पृथक् निर्वाचन का अधिकार देने की सरकार के निर्णय की आलोचना की। अपनी मांग के समर्थन में गांधीजी ने रैम्से मैकडोनाल्ड को एक पत्र लिखा तथा 20 सितम्बर, 1932 से वे आमरण अनशन पर बैठ गये। 5 दिन तक लगातार विचार-विमर्श के बाद 24 सितम्बर, 1932 को गांधी और अम्बेडकर के मध्य ‘पूना पैक्ट‘ हुआ। समझौते के अनुसार दलित वर्गों के लिए पृथक् निर्वाचन व्यवस्था समाप्त कर दी गयी, लेकिन प्रांतीय विधानमंडलों में दलितों के लिए आरक्षित सीटों की संख्या 71 से बढ़ाकर 148 कर दी गयी। केन्द्रीय विधानमंडल में इनके लिए सुरक्षित सीटों की संख्या 9 प्रतिशत से बढ़ाकर 18 प्रतिशत कर दी गयी।
प्रश्न: पूना समझौता पर एक लेख लिखिए। इसने कैसे सिद्ध किया कि गांधी के हाथों में दलित अधिकार सुरक्षित हैं ?
उत्तर: कम्यूनल अवार्ड के विरोध में महात्मा गांधी एवं दलित नेता अम्बेडकर के मध्य 24 सितम्बर, 1932 में पूना (यरवदा जेल) में समझौता संपन्न हुआ। इसके अनुसार गांधी ने भारतीय दलितों को केन्द्रीय विधान मंडल में 9 प्रतिशत की जगह 18 प्रतिशत तथा प्रान्तीय विधानमंडलों में 71 स्थानों की जगह 148 स्थान निर्धारित किए। अंबेडकर ने पहली बार औपचारिक। रूप से यह स्वीकार किया की दलितों के अधिकार गांधी के हाथों में सुरक्षित हैं।
प्रश्न: गांधीजी के सविनय अवज्ञा आंदोलन के नकारात्मक पक्षों के बारे में बताइये?
उत्तर: सविनय अवज्ञा आंदोलन के नकारात्मक पक्ष निम्नलिखित थे
ऽ इस आन्दोलन का नकारात्मक पक्ष यह था कि उद्देश्यों को पूरा नहीं किया जा सका।
ऽ राजनीतिक निराशा व विकल्प की खोज, कांग्रेस से जुड़े कार्यकर्ताओं का अन्य संगठनों से जुड़ना।
ऽ आन्दोलन के स्थगन के बाद जो वृहद् मुद्दों पर गांधी इर्विन पैक्ट किया गया, उसकी विफलता।
ऽ आन्दोलन में रणनीति व दिशा, आन्दोलन में कार्यक्रमों के कुछ कमजोर पक्षा करांची कांग्रेस में जो कार्यक्रम लाये गये। कुछ इतिहासकारों का मानना था कि यह समाजवाद की विजय कम थी। नाममात्र का समाजवाद लाया गया व कई महत्वपूर्ण समाजवादी कार्यक्रमों को सम्मिलित नहीं किया गया।
प्रश्न: कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी की स्थापना कब और क्यों की गई ?
उत्तर: जयप्रकाश नारायण और आचार्य नरेन्द्र देव ने पटना में 1934 में कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी की स्थापना की। जयप्रकाश नारायण इसके महासचिव एवं आचार्य नरेन्द्र देव इसके अध्यक्ष नियुक्त हुये। इसके अन्य संस्थापक सदस्यों में योगेन्द्र शुक्ला, मीनू मसानी, अच्युत परवर्धन, राम मनोहर लोहिया, पुरूषोतम विक्रम दास, गंगा शरण सिंह, कमला देवी चट्टोपाध्याय आदि नेता थे। जवाहरलाल नेहरू एवं सुभाषचन्द्र बोस इसके अप्रत्यक्ष सदस्य थे तथा गांधी जी इसके विरोधी थे। जनता के भीतर समाजवादी विचारों का प्रसार करना तथा कृषक-मजदूरों आदि को कांग्रेस से जोड़ना इसका मुख्य उद्देश्य था।
प्रश्न : ‘फारवर्ड ब्लाक‘ पर एक लेख लिखिए।
उत्तर: ऑल इण्डिया फॉरवर्ड ब्लॉक जो एक वामपंथी राष्ट्रवादी राजनीतिक दल था की स्थापना 3 मई, 1939 में कलकत्ता में सुभाष चन्द्र बोस ने की थी। सुभाष चंद्र बोस इसके अध्यक्ष तथा एस.एस. केवेसियर उपाध्यक्ष बने। लाल शंकरलाल इसके महासचिव तथा खुर्शीद नरीमन इसके सचिव बनाये गये। जून, 1939 में बम्बई में फॉरवर्ड ब्लॉक के सम्मेलन में इसके संविधान एवं कार्यक्रमों को मंजूरी दी गई। सुभाष चंद्र बोस ने इसकी सदस्यता के लिए कहा कि जो लोग अपनी अंगुली काटकर उसके खून से प्रतीज्ञा फार्म पर हस्ताक्षर करेंगे वे ही फॉरवर्ड ब्लॉक के सदस्य होंगे। इसमें सबसे पहले 17 युवा लडकियां आगे आई जिन्होंने प्रतीज्ञा पत्र पर खून से हस्ताक्षर किये। प्रारंभ में फॉरवर्ड ब्लॉक का उद्देश्य कांग्रेस के भीतर सभी वामपंथी वर्गों की रैली और कांग्रेस के अन्दर एक वैकल्पिक नेतृत्व विकसित करना था। सुभाष चंद्र बोस ने अगस्त 1939 में ‘‘फॉरवर्ड ब्लॉक‘‘ नाम से एक समाचार पत्र भी प्रकाशित किया।
प्रश्न: पाकिस्तान प्रस्ताव देश के विभाजन की शुरुआत थी जिसमें जिन्ना ने द्विराष्ट्र सिद्धांत प्रतिपादित किया। विवेचना कीजिए। ख्त्।ै डंपदश्े 2008,
उत्तर: जिन्ना की अध्यक्षता में लीग के मार्च, 1940 के लाहौर अधिवेशन में एक प्रस्ताव पारित हुआ, जिसके अनुसार भारत के लिए कोई भी संविधान मुसलमानों को उस समय तक स्वीकार नहीं होगा, जिसमें भारत के पूर्व और पश्चिम के मुस्लिम बहुल क्षेत्रों को एक स्वतंत्र और सार्वभौम राज्य के रूप में स्वीकार न किया गया हो। भौगोलिक स्थिति से लगे हुए प्रदेश आवश्यक परिवर्तनों के साथ इस प्रकार गठित किए जाएं ताकि वहां मुस्लिम बहुसंख्यक हो जाए। हालांकि इसमें पाकिस्तान शब्द का प्रयोग नहीं किया, लेकिन इसे पाकिस्तान प्रस्ताव के नाम से जाना जाता है।
जिन्ना का द्विराष्ट्र सिद्धांत: लीग के मार्च, 1940 में लाहौर अधिवेशन में जिन्ना ने अपना द्विराष्ट्र सिद्धांत प्रतिपादित किया। जिन्ना ने घोषणा की कि किसी भी दृष्टिकोण से मुसलमान अल्पसंख्यक नहीं वरन् एक राष्ट्र है। व राष्ट्र के लिए एकता भौगोलिक क्षेत्र, राज्य व स्वदेश आवश्यक है। हिन्दू-मुस्लिम दो धर्म न होकर, दो कौम है, अतः दोनों के लिए दो अलग-अलग राष्ट्र होने चाहिए।
प्रश्न: भारत छोड़ो आंदोलन के प्रति विभिन्न राजनीतिक दलों के दृष्टिकोणों का मूल्यांकन कीजिए।
उत्तर: 9 अगस्त, 1942 से भारत छोड़ो आन्दोलन प्रारंभ हो गया। तत्कालीन भारतीय राजनीतिक दलों में साम्यवादी दल ने इस आंदोलन की आलोचना की। मुस्लिम लीग ने भी भारत छोड़ो आंदोलन की आलोचना करते हुए कहा कि ‘आंदोलन का लक्ष्य भारतीय स्वतंत्रता नहीं, वरन् भारत में हिन्दू साम्राज्य की स्थापना करना है।‘ लेकिन लीग के नेताओं ने ब्रिटिश सरकार की सहायता की। कांग्रेस के उदारवादियों ने भी आन्दोलन की आलोचना की। सप्रू ने इस प्रस्ताव को अविचारित तथा असामयिक बताया। अंबेडकर ने इसे अनुत्तरदायित्वपूर्ण और पागलपन भरा कार्य बताया। हिन्दू महासभा एवं अकाली आंदोलन ने भी इसकी आलोचना की। भारत के विभिन्न राजनीतिक दल इस आदोलन के मुद्दों पर एक एकमत नहीं थे। यद्यपि इनमें से कई आंदोलन के खिलाफ थे, लेकिन किसी ने भी कोई रुकावट नहीं डाली। सिर्फ मुस्लिम लीग ही ऐसा दल था जिसने अपने समर्थकों को आंदोलन के विरुद्ध उकसाया।
प्रश्न : आजाद हिन्द फौज के भारत छोड़ों आंदोलन के दौरान राष्ट्रीय भावना को उद्वेलित किया। बताइए।
उत्तर: जापान के समक्ष आत्म समर्पण करने वाले ब्रिटिश भारतीय सैनिकों को लेकर 15 दिसम्बर, 1941 में कैप्टन मोहनसिंह ने हन्द फौज की स्थापना की। रास बिहारी बोस ने 1942 में टोक्यों में इण्डियन इंडिपेंडेंस लीग की स्थापना की। रास बिहारी बोस ने दोनों का संयुक्त अधिवेशन 1943 में बैंकॉक में आहूत किया तथा सिंगापुर में इसकी कमाण्ड सुभाष चन्द्र बोस को सौपी। सुभाष बोस ने यहां अस्थायी भारत सरकार का गठन किया और ‘‘दिल्ली चलों‘‘ का नारा दिया। जापान और जर्मनी सहित धुरी राष्ट्रों ने इस सरकार को मान्यता दी। बोस ने मलेशिया में सैनिकों से कहां – ‘‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा‘‘। इस सरकार ने अण्डमान-निकोबार पर अधिकार कर बर्मा पर आक्रमण किया। जहां इन्हें ब्रिटिश सेना से परास्त होना पड़ा।
प्रश्न: सी. राजगोपालाचारी फार्मूला, क्या था? यह भारत विभाजन का आधार कैसे बना?
उत्तर: देश के विभाजन से संबंधित योजना पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राजाजी द्वारा मार्च, 1944 में एक फार्मूला दिया गया जो सी.आर. फार्मूला कहलाता है। इसके तहत –
1. लीग भारत की स्वाधीनता की मांग का समर्थन करें और अंतरिम सरकार में कांग्रेस का सहयोग करे।
2. युद्ध के पश्चात् एक आयोग द्वारा मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों के बारे में निर्णय किया जायेगा।
3. मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों में जनमत संग्रह के आधार पर तय होगा कि वे भारत में रहना चाहते है अथवा पृथक होना चाहते हैं।
4. सुरक्षा, यातायात, व्यापार तथा संचार साधनों के लिए विभाजन पश्चात् समझौता होगा।
5. आबादी की अदला-बदली स्वेच्छा से होगी।
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