कलाओं के लिए स्वर्ण युग कहलाता है कला तथा साहित्य के क्षेत्र में गुप्त काल स्वर्ण युग क्यों कहलाता है समझाइए
कला तथा साहित्य के क्षेत्र में गुप्त काल स्वर्ण युग क्यों कहलाता है समझाइए कलाओं के लिए स्वर्ण युग कहलाता है किसे कहते है और क्यों ?
गुप्त काल
चैथी ईसवी शताब्दी में गुप्त साम्राज्य के आविर्भाव को बहुधा ‘‘भारतीय वास्तुकला का स्वर्णिम युग‘‘ कहा जाता है। यद्यपि आरंभिक गुप्त शासक बौद्ध थे और उन्होंने बौद्ध वास्तुकला की परंपरा को जारी रखा। लेकिन मंदिरों की वास्तुकला उत्तरवर्ती गुप्तकाल में हिन्दू शासकों के संरक्षण में प्रसिद्ध हुई। इस अवधि में मंदिरों की वास्तुकला अपने शिखर पर पहुँची। इसी प्रकार बौद्ध और जैन कला भी गुप्त काल में अपने शिखर पर पहुँची।
मुख्य रूप से उत्तरवर्ती गुप्त शासक ब्राह्मणीय शासक थे। फिर भी उन्होंने अन्य धर्मों के लिए उदाहरणीय सहिष्णुता का प्रदर्शन किया। इस काल में भारत के उत्तरी और मध्य भाग में विष्णु, दक्षिणी भाग में शिव और भारत के पूर्वी भाग और साथ ही साथ मालाबार समुद्र तट या भारत के दक्षिण-पश्चिम भाग में शक्ति, जैसे तीन मुख्य देवों की पूजा की जाती थी।
स्थापत्य कला
चट्टानों को काटकर बनाई गई गुफाएं:
मौर्य काल की भांति चट्टानों से बनाई गई गुफाओं का निर्माण जारी रहा। हालांकि, इस अवधि ने चट्टानी गुफाओं के दो प्रकारों अर्थात् चैत्य और विहार का विकास देखा। विहार बौद्ध और जैन भिक्षुओं के लिए आवासीय कक्ष होते थे और इनका विकास मौर्य साम्राज्य के दौरान हुआ था, वहीं चैत्य कक्षों का इस अवधि के दौरान विकास हुआ था। ये मुख्य रूप से समतल छतों वाले चतुष्कोणीय कक्ष थे और ‘प्रार्थना कक्ष‘ के रूप में इनका उपयोग किया जाता था।
गुफाओं में बारिश से बचाने के लिए खले प्रांगण और पत्थर-रोडी की दीवारें भी थीं। इन्हें मानव और पशु आकृतियों से भी अलंकृत किया गया था। उदाहरणः कार्ले का चैत्य हॉल, अजंता की गुफाएं (29 गुफाएं-25 विहार ़ 4 चैत्य) आदि।
स्तूप:
मौर्योत्तर काल में स्तूप, विशाल और अधिक अलंकृत होते गए। लकड़ी और ईंट के स्थान पर प्रस्तर का अधिक से अधिक उपयोग किया जाने लगा। शुंग राजवंश ने स्तूपों के सुंदरतापूर्वक अलंकृत प्रवेश द्वारों के रूप में तोरण का निर्माण आरंभ किया। तोरणों को जटिल आकृतियों और पैटों के साथ उत्कीर्णित किया जाता था और ये हेलेनिस्टिक प्रभाव के साक्ष्य हैं।
उदाहरणः मध्य प्रदेश में भरहुत का स्तूप, सांची के स्तूप का तोरण आदि।
मूर्ति कला
इस अवधि में मूर्ति कला की तीन प्रमुख शैलियों अर्थात् गांधार, मथुरा और अमरावती शैली का विकास अलग-अलग स्थानों पर हुआ।
गांधार शैली
आधुनिक पेशावर और अफगानिस्तान के निकट पंजाब की पश्चिमी सीमाओं से संलग्न हिस्से में गांधार कला शैली का विकास हुआ। यूनानी आक्रमणकारी अपने साथ ग्रीक और रोमन मूर्तिकारों की परंपराएं लाए जिससे इस क्षेत्र की स्थानीय परंपराएं प्रभावित हुईं। इस प्रकार, गांधार शैली को कला की ग्रीको-इंडियन शैली के रूप में भी जाना जाने लगा।
गांधार शैली का विकास 50 ईसा पूर्व से लेकर 500 ईस्वी तक की अवधि में दो चरणों में हुआ। जहां आरंभिक शैली को नीले-धूसर बलुआ प्रस्तर के प्रयोग के लिए जाना जाता है, वहीं उत्तरवर्ती शैली में मूर्तियां बनाने के लिए मिट्टी और प्लास्टर का उपयोग किया जाता था। बुद्ध और बोधिसत्वों की मूर्तियां ग्रीको-रोमन देवताओं पर आधारित हैं जो अपोलो की मूर्तियों से मिलती-जुलती हैं।
मथुरा शैली
मथुरा शैली का विकास पहली और तीसरी ‘शताब्दी ई. पू. के बीच की अवधि में यमुना नदी के किनारे हुआ। मथुरा शैली की मूर्तियां उस समय के सभी तीनों धर्मों (बौद्ध धर्म, हिंदू धर्म और जैन धर्म) की कहानियों और चित्रों से प्रभावित हैं। ये मूर्तियां मौर्य काल के दौरान मिली पहले की यक्ष मूर्तियों के नमूने पर आधारित हैं।
मथुरा शैली ने मूर्तियों में प्रतीकों का प्रभावशाली उपयोग दिखाया। हिंदू देवताओं का निदर्शन उनकी ‘अवायुधास‘ का उपयोग करके किया गया था। उदाहरण के लिए, शिव को लिंग और मुखलिंग के माध्यम से दिखाया गया है। इसी प्रकार, बुद्ध के सिर के चारों ओर प्रभामंडल गांधार शैली की तुलना में बड़ा है और ज्यामितीय पैटर्न से अलंकृत है। बुद्ध को दो बोधिसत्वों (कमल पकड़े पद्मपाणि और वज्र पकड़े वज्रपाणि) से घिरा हुआ दिखाया गया है।
अमरावती शैली
भारत के दक्षिणी भाग में, अमरावती शैली का विकास सातवाहन शासकों के संरक्षण में कृष्णा नदी के किनारे हुआ। जहां अन्य दो शैलियों ने एकल आकृतियों पर बल दिया। वहीं, अमरावती शैली में गतिशील आकृतियों के प्रयोग पर अधिक बल दिया गया। इस शैली की मूर्तियों में त्रिभंग आसन यानी ‘तीन झुकावों के साथ शरीर‘ का अत्यधिक प्रयोग किया गया है।ا
वास्तुकला
गुफाएंः
गुप्त काल के दौरान, गुफाओं का वास्तुशास्त्रीय विकास निरंतर होता रहा। तथापि, गुफाओं की दीवारों पर भित्ति चित्रों का प्रयोग एक अतिरिक्त विशेषता बन गयी। भित्ति चित्रों के सर्वाधिक बेहतरीन उदाहरणों में से कुछ अजन्ता और एलोरा की गुफाओं में देखे जा सकते हैं।
अजंता की गुफाएंः
अजंता महाराष्ट्र में औरंगाबाद के निकट चट्टानों को काटकर निर्मित की गयी गुफाओं की एक श्रृंखला है। इसमें 29 गुफाएं हैं, जिनमें से 25 को विहारों या आवासीय गुफाओं के रूप में प्रयोग किया जाता था जबकि 4 को चैत्य या प्रार्थना स्थलों के रूप में प्रयोग किया जाता था। गुफाओं को ईसा पूर्व 200 से 650 ईसवी सन् में विकसित किया गया था।
मंडपेश्वर की गुफाएंः
इनको मोटीपेरिर (डवदजमचमतपत) की गुफाएं भी कहते हैं। ये गुफाएं आठवीं सदी में ब्राह्मणीय गुफाओं के रूप में निर्मित की गयी थीं। हालांकि, इन्हें बाद में ईसाई गुफाओं के रूप में परिवर्तित कर दिया गया।
स्तूपः
गुप्त काल के दौरान स्तूपों का निर्माण होना कम हो गया। तथापि धमेख स्तूप इस काल में विकसित स्तूपों का उत्कृष्ट उदाहरण है।
मूर्तियाँ
गुप्त काल के दौरान, सारनाथ के आसपास मूर्ति कला की एक नई शैली विकसित हुई। इसकी विशेषता क्रीम रंग के बलुआ पत्थर तथा धातु का प्रयोग थी। इस शैली की मूर्तियाँ विशुद्ध रूप से वस्त्र पहने हुए होती थीं और इनमें किसी भी प्रकार की नग्नता नहीं थी। बुद्ध के सिर के चारों ओर निर्मित आभामंडल गहनतापूर्वक अलंकृत किया गया था।
उदाहरणः सुल्तानगंज के बुद्ध (7.5 फुट ऊँचाई)
मन्दिरों की वास्तुकला
वर्गाकार गर्भगृह और खम्भों से युक्त द्वारमंडप के विकास के साथ गुप्त काल में मंदिरों की वास्तुकला का आविर्भाव हुआ। प्रारम्भिक चरणों में मंदिर सपाट छत वाले, एक ही पत्थर को काट कर बनाए गए होते थे। कालांतर में तक्षित (गढ़े हुए) ‘शिखरों‘ से युक्त मंदिरों का क्रमिक विकास हुआ। इस क्रमिक विकास को पांच चरणों में विभाजित किया जा सकता हैः
प्रथम चरणः
इस चरण में विकसित मंदिरों की विशेषताएँ निम्नलिखित हैंः
ऽ मंदिरों में सपाट छत होती थी।
ऽ मंदिरों का आकार वर्गाकार होता था।
ऽ द्वार मंडप (पोर्टिको) को उथले स्तम्भों पर निर्मित किया जाता था।
ऽ संपूर्ण संरचना को कम ऊँचाई के मंचों (जगती) पर निर्मित किया जाता था।
उदाहरणः सांची में निर्मित मंदिर संख्या 17
द्वितीय चरणः
इस चरण में निर्मित मंदिरों में, अधिकतर विशेषताएं पूर्व चरण की ही बनी रहीं। तथापि, मंच (वेदी) अधिक ऊँचे या उभार प्रदान किए गए होते थे। कहीं-कहीं दोमंजिला मंदिर के उदाहरण भी प्राप्त हुए हैं। इस चरण का एक और महत्वपूर्ण संयोजन गर्भ गृह के चारों ओर ढंका हुआ मार्ग था। इस मार्ग को प्रदक्षिणा-पथ के रूप में प्रयोग किया जाता था।
उदाहरणः मध्य प्रदेश में नचना कुठारा का पार्वती मंदिर।
तृतीय चरणः
इस चरण में सपाट छतों के स्थान पर शिखरों का उद्भव हुआ। यद्यपि, वे अभी भी बहुत कम ऊँचाई के थे और लगभग वर्गाकार अर्थात् वक्ररेखीय थे। मंदिरों को बनाने की पंचायतन शैली का आरम्भ किया गया।
मंदिर बनाने की पंचायतन शैली में प्रमुख देवता के मंदिर के साथ चार गौण देव मंदिर होते थे। प्रमुख मंदिर वर्गाकार होता था और इसके सामने लम्बा मंडप होता था जिससे इसका आकार आयताकार हो जाता था। गौण देव मंदिरों को मण्डप के प्रत्येक ओर एक-दूसरे के सम्मुख स्थापित किया जाता था। इस प्रकार मन्दिर का भू-विन्यास क्रूस (बतनबपपिमक) के आकार का हो जाता था।
उदाहरणः देवगढ़ का दशावतार मन्दिर (उ.प्र.), ऐहोल का दुर्गा मन्दिर (कर्नाटक) इत्यादि।
चतुर्थ चरणः
इस चरण के मंदिर लगभग एक जैसे ही थे, एकमात्र अंतर यह हुआ कि मुख्य मंदिर अधिक आयताकार हो गया।
उदाहरणः शोलापुर का तेर मंदिर।
पंचम चरणः
इस चरण में बाहर की ओर उथले आयताकार किनारों वाले वृत्ताकार मंदिरों का निर्माण आरम्भ हुआ था। इससे पहले के चरणों की ‘शेष सभी विशेषताएँ भी पूर्ववत् जारी रहीं।
उदाहरणः राजगीर का मनियार मठ।
मन्दिर वास्तुकला की शैलियाँ
मन्दिर वास्तुकला की शैलियां
नागर शैली द्रविड़ शैली नायक शैली वेसर शैली होयसल शैली विजयनगर कला पाल शैली
हिन्दू मन्दिर के मूल रूप में निम्नलिखित अवयव सम्मिलित रहते हैंः
ऽ गर्भ गृहः इसे गर्भ गृह के नाम से भी जाना जाता है, जो सामान्य रूप से एक कक्षिका अर्थात् छोटा कक्ष होता है जिसमें मंदिर के प्रमुख देवता को स्थापित किया जाता है।
ऽ मण्डपः यह मन्दिर का प्रवेश स्थल होता है। यह कोई द्वार मण्डप या सभा भवन हो सकता है और इसे सामान्य रूप से बड़ी संख्या में पूजा करने वाले लोगों को स्थान देने हेतु अभिकल्पित किया जाता है।
ऽ शिखरः यह पर्वत जैसा शिखर होता है। इसके आकार पिरामिडीय से वक्ररेखीय तक विभिन्न प्रकार के हो सकते हैं।
ऽ वाहनः यह प्रमुख देवता का आसन या वाहन होता है और इसे पवित्रतम स्थल के ठीक सामने स्थापित किया जाता था।
तथापि, स्थानीय शासकों के संरक्षण में भारत के विभिन्न क्षेत्रों में वास्तुकला की विभिन्न शैलियाँ विकसित हुईं।
हिंदी माध्यम नोट्स
Class 6
Hindi social science science maths English
Class 7
Hindi social science science maths English
Class 8
Hindi social science science maths English
Class 9
Hindi social science science Maths English
Class 10
Hindi Social science science Maths English
Class 11
Hindi sociology physics physical education maths english economics geography History
chemistry business studies biology accountancy political science
Class 12
Hindi physics physical education maths english economics
chemistry business studies biology accountancy Political science History sociology
English medium Notes
Class 6
Hindi social science science maths English
Class 7
Hindi social science science maths English
Class 8
Hindi social science science maths English
Class 9
Hindi social science science Maths English
Class 10
Hindi Social science science Maths English
Class 11
Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics
chemistry business studies biology accountancy
Class 12
Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics