एलोरा का कैलाश मंदिर किसके द्वारा बनाया गया , एलोरा का कैलाश मंदिर का निर्माण किसने कराया
एलोरा का कैलाश मंदिर का निर्माण किसने कराया एलोरा का कैलाश मंदिर किसके द्वारा बनाया गया ?
उत्तर : एलोरा का कैलाश मंदिर – एलोरा की शिल्प शैली का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है यहां का कैलाश मंदिर जो राष्ट्रकूट राजा कृष्ण प्रथम के समय बनाया गया था। इसे एक ही चटटान से काटकर निर्मित किया गया है। यह मदिर दुमाजला बनाया गया है। इसके मध्य में एक विशाल दीप स्तम्भ है। इस कैलाश मंदिर के शिल्प के विषय अधिकांशतः शैव-धर्म से संबधित हैं परन्तु अन्य धर्मों के शिल्प भी यहां बनाये गये हैं। रामायण तथा महाभारत से सबाधत विपना ” सुन्दरता के साथ बनाया गया है। इसलिए इस मंदिर में शिल्पांकित विषयों में एक प्रकार की धार्मिक एकता दिखाई पड़ता हैं। गजलक्ष्मी ऐश्वर्य (राजलक्ष्मी) महिषमर्दिनी दर्गा इसके समीप ही श्रति व कामदेव की मूतिया आर . महायोगी शिव की मूर्तियां हैं। ये मूर्तियों काम-भावना पर नियंत्रण की सूचक स्वरूप ही यहां पर बनाई गई है। कैलाश मंदिर की अन्य प्रमख मर्तियों में संहारक या उग्र स्वरूपों की प्रधानता है। कैलाश मंदिर का प्रमुख भूमि रावणानुग्रह, त्रिपुरान्तक, यमान्तक, अंकारि, भैरव, कालारि, कल्याण-संदर. नटेश, लिंगोद्भव, गंगाधर, महेश (त्रिमूर्ति आवक्ष प्रतिमा), नृवराह, त्रिविक्रम, नरसिंह, बलराम. मातकाएं. महिषमर्दिनी. सर्य एवं गणेश की मर्तियां उल्लेखनीय हैं। धूमरलेण या सीता की नहानी नामक गुफा में शैव, वैष्णव एवं शाक्त सम्प्रदायों के देवों की मूर्तियां उपलब्ध होती हैं।
प्रश्न: हिन्दू स्थापत्य के रूप राष्ट्रकूटकालीन एलोरा का महत्व स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: एलोरा, एलिफेन्टा व कन्हेरी के गुफा मंदिर
पश्चिमी दक्षिण में चालुक्यों के बाद राष्ट्रकूट शासकों की सत्ता स्थापित हुई। ये राष्ट्रकूट शासक भी चालुक्यों के समान हो स्थापत्य एवं मूर्तिकला के महान आश्रयदाता थे। राष्ट्रकूट शासकों के काल में विशाल पहाड़ियों को काटकर गुफाओं और मंदिरों , का निर्माण किया गया तथा उनकी भित्तियों एवं अन्य भागों पर विशालकाय मूर्तियाँ उकेरी गई जो उनके कला प्रेम की साक्षी हैं।
राष्ट्रकूटों के काल में मुख्यतः एलोरा, एलिफेन्टा और कन्हेरी में मूर्तियों का निर्माण हुआ। एलोरा में शिव, विष्णु, शक्ति व सूर्य जैसे ब्राह्मण देवी-देवताओं के साथ ही जैन मूर्तियों का भी निर्माण हुआ। जबकि कन्हेरी में बौद्ध मूर्तियों के उदाहरण प्राप्त होते हैं।
एलोरा (वेरूल)
जिस प्रकार चित्रकला में अजन्ता के भित्ति-चित्रों को विशेष स्थान प्राप्त है। उसी प्रकार मूर्तिकला के क्षेत्र में एलोरा का विशेष स्थान प्राप्त है। ये गुफा मंदिर बड़ी-बड़ी पहाड़ियों को काटकर बनाये गये हैं। यहां पर दुमंजिली व तिमा गुफाएं बड़ी कुशलता के साथ बनाई गई हैं। यहां पर लगभग 30 गुफा मंदिर प्राप्त हुए हैं जिनमें बनाये गये शिल्प ब ब्राह्मण व जैन धर्म से संबंधित हैं। विषय पौराणिक हैं तथा अलंकरण का बहुत कम प्रयोग किया गया है। शिल्प से पहाड़ों से पत्थरों को काटकर बनाये गये हैं। इनका समय लगभग 8वीं शती अनुमान किया गया है।
एलोरा के शिल्प की शैली गुप्त परम्परा का ही एक वृहद् रूप है, जिसमें विशाल पृष्ठभूमि पर विशाल आकृतियार अधिक आकृतियों से शिल्पांकन किया गया है, परन्तु उसमें एक प्रकार की एकरसता है जो विषयों की विवि कारण एक नजर में दिखाई नहीं देती है। शरीर की बनावट में सधापन है व आभूषण आदि अलंकार पहनाय । जबकि वस्त्रों का प्रयोग नगण्य ही किया गया है। एलोरा की सभी गुफाओं के बाहर अधिकांशतः द्वारपाल या गंगा और यमुना के शिल्प बनाये गये हैं।
प्रश्न: एक कला केन्द्र के रूप में एलोरा की बौद्ध गुफाओं एवं एलीफेन्टा व कन्हेरी गुफाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर: एलोरा में बौद्ध धर्म से संबंधित लगभग 12 गुफाएं हैं जिनमें बुद्ध तथा बोधिसत्वों की प्रतिमाएं उत्कीर्ण की गई हैं।
एलोरा की गुफा संख्या 30 से 34 तक की गुफाएं जैन धर्म से संबंधित हैं जो एलोरा गुफाओं की श्रृंखला के अंतिम छोर पर स्थित हैं। इन सभी गुफाओं के अंतर्गत अंकित शिल्प जैन धर्म के दिगम्बर सम्प्रदाय से संबंधित हैं तथा 9वीं व 10वीं शती ई. की रचना है। इनका निर्माण अमोघवर्ष प्रथम (819-81 ई.) के समय में आरम्भ हुआ। इन गुफाओं में इन्द्रसभा, जगन्नाथ सभा, छोटा कैलाश के नाम से जानी जाती हैं। पार्श्वनाथ (31 मूर्तियाँ) और महावीर स्वामी की मूर्तियां ही अधिकांश रूप से प्राप्त हुई हैं। साथ ही बाहुबली (गोमटेश्वर) की 17 मूर्तियां भी यहा प्राप्त हुई है।
यक्षिणियों में अम्बिका तथा सर्वानुभूति यक्ष की भी सर्वाधिक मूर्तियां यहां उपलब्ध होती हैं।
विशेषताएं – इस प्रकार एलोरा के इस समस्त शिल्प में भावों का समुचित अंकन देखने को मिलता है। विषय के अनुरूप भावांकन किया गया है। इस दृष्टि से ये शिल्प भारतीय मूर्तिकला में अपना महत्वपूर्ण स्थान बनाते हैं। यहां की ब्राह्मण मूर्तियों में असीमित शक्ति व स्फूर्ति व्यक्त हुई है। ये राष्ट्रकूट मूर्तियां भारी-भरकम व विशाल आकारों वाली अंकित की गई हैं तथापि शरीर रचना में ये अपनी पूर्व कला परम्परा का ही स्मरण कराती हैं। विविध क्रिया-कलापों में एवं भाव-भंगिमाओं में विषय के अनुरूप शरीर रचना पूरे दृश्य की गतिशीलता में अभिवृद्धि करती है जो राष्ट्रकूट मूर्तिकला की एक विशेषता है। शिव की प्रधानता होते हुए भी ब्राह्मण धर्म के लगभग सभी देवी-देवताओं को यहां अंकित किया गया है। देव मूर्तियों के साथ-साथ उनके अभिप्रायों व अलंकरणों को भी यहां दर्शाया गया है। इस प्रकार अभिव्यक्ति प्रदान कर एलोरा को कला तीर्थ की उपमा दिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।
पूर्व मध्य काल के अंतर्गत राष्ट्रकूटकालीन दूसरे प्रमुख मूर्तिकला केन्द्र एलिफेन्टा के गुफा मंदिर हैं इस टापू का वास्तविक नाम धारापुरी है। यहां के शिल्प का रचनाकाल लगभग 8वीं शती माना गया है।
ऐलिफेन्टा में श्शैव धर्म से संबंधित अनेक शिल्पों का निर्माण किया गया है। एलोरा के गुफा मंदिरों की ही भांति ये गुफाएं भी चट्टानों को काट-काटकर बनाई गई हैं तथा उसी में ये शिल्प भी काटे गये हैं। ऐलिफेन्टा की महेश मूर्ति आवक्ष प्रतिमा है जिसकी ऊँचाई लगभग 18 फीट है। इस दृष्टि से ये शिल्प अपना एक विशिष्ट स्थान रखते हैं।
यहां शिल्प की शैली की सबसे महत्वपूर्ण बात है कि प्रत्येक आकृति के चेहरे में नीचे का होठ ऊपर के होठ से किचित मोटा तथा आगे को निकला हुआ बनाया गया है। स्त्रियों की आकृतियों को गुप्तकालीन नियमों के आधार पर कमनीय व कोमल बनाया गया है। यहां पर भी गुप्ताकलीन परम्परा के अनुसार आकृतियों के कान लम्बे बनाये गये हैं। साथ ही मुख व अंग-भंगिमाओं के माध्यम से भावों को अतिशय नाटकीयता के साथ अभिव्यक्त करने की चेष्टा की गई है।
विषय – यहां पर शैव धर्म से संबंधित शिल्प ही अधिक बनाये गये हैं, परन्तु हिन्दू धर्म से संबंधित अन्य देवी-देवताओं की प्रतिमाओं को भी अत्यन्त सुन्दरता व श्रद्धा के साथ बनाया गया है। यहां पर विशाल पर्वतों को काटकर बनाई गई शिव की विशाल श्त्रिमूितश् भारतीय मूर्तिकला की श्रेष्ठतम मूर्तियों में अपना स्थान बनाती है। अन्य प्रमुख मूर्तियों में नटेश. अंधकारि, कल्याण-सुन्दर, गंगाधर, अर्धनारीश्वर, सप्तमातृकाएं, लकुलीश, उमा-महेश्वर और रावणनुग्रह आदि विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। इन सभी मूर्तियों में परिकर में गंधर्व युगलों के अतिरिक्त ब्रह्मा, विष्णु, दिक्पालों, गणेश, कार्तिकेय एवं ग्रहों आदि का अंकन है। एक परिकर में बुद्ध भी दिखाई दे रहे हैं।
कन्हेरी रू महाराष्ट के थाना जिले में स्थित कन्हेरी की गुफा संख्या 2, 14 और 56 में लगभग 9वीं व 10वीं शती ई. की उत्कीर्ण श्बौद्धश् प्रतिमाओं के दर्शन होते हैं। अमोघवर्ष प्रथम के काल के लेख भी कन्हेरी से प्राप्त हुए हैं जिनसे ज्ञात ऽ होता है कि बौद्ध धर्म को भी राष्ट्रकूट शासकों का आश्रय प्राप्त था।
कन्हेरी की गुफा संख्या 14 में ग्यारह मखों वाली अवलोकितेश्वर प्रतिमा और विशालकाय अवलोकितेश्वर – विशेष रूप से दर्शनीय हैं। इस युग की बौद्ध कला में तंत्र के विशेष प्रभाव से सहायक देवताओं की संख्या भी दिखाई पड़ती है। साथ ही इस समय द्वारपालों की मूर्तियों का अंकन भी विशेष लोकप्रिय हुआ।
आलंकारिक सज्जा में भी कन्हेरी में सौन्दर्य की प्रतिष्ठा देखने योग्य है।
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