WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

अदीना मस्जिद कहाँ पर है बताइए , निर्माण किसने करवाया था , adina mosque was built by in hindi

 

पांडु राजर धिबि (लगभग 23.5° उत्तर, 87.6° पूर्व)
पांडु राजर धिबि, पश्चिम बंगाल के बर्दवान जिले में एक पुरातात्विक स्थल है। अजय नदी के दक्षिणी तट के निकट स्थित, पश्चिम बंगाल में खोजा गया प्रथम ताम्रपाषाण स्थल है। पांडु राजर धिबि में पाया गया मुख्य टीला महाभारत में वर्णित पांड्वों के पिता पांडु से संबद्ध है। 1954-57 के मध्य राजपोत दंग व पांडुक गांवों में उत्खनन किया गया था। ये स्थल वर्तमान में बीरभूम, बर्दवान, बंकुरा तथा मिदनापुर जिले में फैले हैं तथा मयुराक्षी (उत्तर दिशा में), कोपर्ट, अजय, कुन्नूर, ब्राह्मणी, दामोदर, देवराकेश्वर, सिलवती तथा रूपनारायण (दक्षिण दिशा में) नदियों द्वारा अंतः प्रकीर्णित किए हुए हैं।
पांडु राजर धिबि में किए गए उत्खननों से यह तथ्य भी सामने आता है कि ज्यादातर गैर-ब्राह्मण बंगालियों का उद्भव गैर-आर्यों से हुआ है। पूर्वी भारत की ताम्रयुगीन सभ्यता के संबंध केंद्रीय भारत व राजस्थान की समकालीन सभ्यताओं के साथ थे। इस समय के लोग नियोजित नगरों को बनाने में सक्षम थे। अर्थव्यवस्था का आधार कृषि एवं व्यापार था। पांडु राजर धिबि को एक व्यापारिक नगर के खंडहर के रूप में देखा जाता है। व्यापार न केवल भारत के आंतरिक भागों से किया जाता था बल्कि क्रीट (भूमध्यसागर में सबसे बड़ा ग्रीक द्वीप) व भूमध्यसागरीय क्षेत्रों जैसे सुदूर प्रदेशों तक फैला था। यहां के लोग अच्छे नाविक थे।
पश्चिमी बंगाल के ताम्रपाषाणीय स्थलों के वितरण पैटर्न के अध्ययन द्वारा यह तथ्य सामने आता है कि भागीरथी के पश्चिमी क्षेत्रों में एक गहन धान उत्पादक तटवर्ती संस्कृति थी। यद्यपि ताम्रपाषाणीय लोग प्रमुख रूप से कृषक थे परन्तु उन्होंने शिकार व मछली पकड़ना भी जारी रखा था। वे साधारण-सी वृत्ताकार अथवा वर्गाकार झोपड़ियों में रहते थे, जिनकी दीवारों पर मिट्टी की परत से लेप किया जाता था। झोपड़ियों में चूल्हे तथा कचरे हेतु स्थान बना हुआ था। उनके खाद्य पदार्थों में चावल, मांस, मछली व फल सम्मिलित थे।

पांडुआ (24°52‘ उत्तर, 88°08‘ पूर्व)
पांडुआ बंगाल में गौड़ के समीप स्थित है। गौड़ ही वह स्थल है, जो 1338 ई. एवं 1500 ई. में राजनीतिक शून्यता की वजह से राजनीतिक केंद्र पांडुआ में स्थानांतरित हो गया था।
यहां की सबसे प्रमुख इमारत अदीना मस्जिद है, जिसका निर्माण 14वीं शताब्दी में सिकंदर शाह ने करवाया था। उत्खनन से इस बात के प्रमाण प्राप्त हुए हैं कि इस मस्जिद का निर्माण हिन्दू मंदिर के ऊपर किया गया था। यह भारत की सबसे लंबी मस्जिदों में से एक थी, यद्यपि वर्तमान समय में इसका अधिकांश हिस्सा नष्ट हो चुका है। अदीना मस्जिद मध्यकालीन बंगाल में इस्लामी वास्तुकला का एक सुंदर नमूना है तथा संभवतः यहां पूर्वी भारत की सबसे प्रमुख मस्जिद है।
अदीना मस्जिद के समीप ही ‘एकलाखी मस्जिद‘ है। इसका यह नाम इसलिए पड़ा क्योंकि इसके निर्माण में एक लाख रुपए खर्च हुए थे। लेकिन 1412 ईस्वी के आसपास से इसके अग्रभाग में एक हिंदू देवता की प्रतिमा है।
कुतुबशाही मंदिर का निर्माण 1582 में हुआ था। इसमें ईंटों एवं पत्थरों का प्रयोग किया गया है तथा इसमें 10 गुम्बद हैं।

पंगुदरिया/पंगुरारिया/पंगोररिया
(22.75° उत्तर, 77.72° पूर्व)
पंगुदरिया मध्य प्रदेश के सिहोर जिले में स्थित है। यह स्थान 1970 के दशक के मध्य उस समय प्रकाश में आया जब भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण (एएसआई) ने यहां पर अशोक के लघु शिलालेख की खोज की। यहां पर दो शिलाश्रय स्थल हैं, जिनमें से वृहद आश्रय स्थल को सारू-मारू-मठ कहा जाता है (स्थानीय लोग इसे सारू-मारू की कोठरी कहते हैं)। यहां के शिलालेख में प्रथम बार मानसेम-देश के कुंवर संबा के नाम का उल्लेख हुआ है। विदिशा के दक्षिण में स्थित क्षेत्र को मानसेम देश कहा गया है। इस शिलालेख के अनुवादक फाल्क के अनुसार-“राजा, जिसे, (राज्याभिषेक के उपरांत) प्रियदस्सी कहा गया है, इस स्थान पर मनोरंजन यात्रा हेतु आया था जब वो राजकुमार था, वह यहां अपनी सहचरी (अविवाहिता) के साथ रहा था।‘‘
शिलालेख के अतिरिक्त, यहां पर मौजूद शैलकला में बौद्ध मूर्तिकला, आखेट के प्राचीन चित्र, सांड, घोड़े जैसे पशु शामिल हैं। ये सभी चित्रकारियां ऐतिहासिक काल की हैं, और लाल, सफेद तथा हल्के पीले रंग से चित्रित हैं।

पानीपत (29.39° उत्तर, 76.97° पूर्व)
आधुनिक हरियाणा राज्य में स्थित पानीपत, भारत का एक प्राचीन स्थल है। पानीपत का इतिहास महाभारत तक प्राचीन है। इसका प्राचीन नाम पानीप्रस्थ था।
यह स्थान भारतीय इतिहास के कई भीषण एवं रक्तरंजित युद्धों का साक्षी रहा है, जिसने भारतीय इतिहास की दिशा बदल दी।
पानीपत का प्रथम युद्ध 21 अप्रैल, 1526 को बाबर एवं इब्राहीम लोदी के मध्य लड़ा गया। इस युद्ध में इब्राहीम लोदी की पराजय हुई तथा वह युद्ध स्थल में ही मारा गया। युद्ध से दिल्ली सल्तनत का शासन समाप्त हो गया तथा बाबर ने भारत में मुगल वंश की नींव डाली।
पानीपत का दूसरा युद्ध 1556 ई. में बैरम खां, युवा मुगल शासक अकबर का अभिभावक संरक्षक, की हेमू, एक अफगान दावेदार का सेनापति, जिसने स्वयं की राजा के तौर पर उद्घोषणा की, पर विजय के साथ समाप्त हुआ। इसने 1540 में अफगान शासक शेरशाह सूरी द्वारा हुमायूं को बाहर खदेड़ देने के पश्चात् मुगल शक्ति के पुनः स्थापन बहाली का मार्ग प्रशस्त किया।
पानीपत का तीसरा युद्ध मराठों एवं अहमदशाह अब्दाली के मध्य 1761 में हुआ। इस युद्ध में मराठों का नेतृत्व सदाशिव राव भाऊ ने किया। इस युद्ध में मराठे, अफगान सेना से बुरी तरह पराजित हुए तथा उनकी प्रतिष्ठा को भारी धक्का लगा। इसने मुगलों के स्थान पर स्वयं को भारत के शासक के रूप में प्रतिष्ठित करने के मराठों के प्रयासों का अंत कर दिया, और साथ ही मुगल साम्राज्य के अंत का भी मार्ग प्रशस्त किया। इस प्रकार उत्तर-पश्चिमी भारत में 40 वर्षों की अराजकता की स्थिति की शुरुआत हुई और ब्रिटिश शासन हेतु मार्ग प्रशस्त हुआ।
बाबर ने पानीपत में 1526 में प्रसिद्ध काबुली बाग मस्जिद का निर्माण करवाया।
वर्तमान पानीपत भारत का तेजी से विकसित होता एक शहर है। यह देश के उन प्रमुख शहरों में भी सम्मिलित है, जिनकी प्रति व्यक्ति आय सबसे अधिक है।
पणजिम/पणजी (15°29‘ उत्तर, 73°49‘ पूर्व) पणजिम या पणजी गोवा की राजधानी है। यह भारत की सबसे छोटी एवं सबसे आनंददायक राज्य राजधानी है। यह मंडोवी नदी के दक्षिणी तट पर स्थित है।
1510 में गोवा को पुर्तगालियों ने बीजापुर के शासक यूसुफ आदिल शाह से छीन लिया तथा पणजी को उसकी राजधानी बनाया। पुर्तगाली उपनिवेश होने के कारण गोवा की सभ्यता एवं संस्कृति पर पुर्तगाल का गहरा प्रभाव पड़ा तथा इसकी झलक यहां आज भी देखी जा सकती है। संकरी घुमावदार गलियां, पुराने घर, बाहर की ओर निकले छज्जे एवं लाल ईंटों से बनी छतें इत्यादि पुर्तगाली प्रभाव के ही द्योतक हैं। इनमें पुर्तगाली स्थापत्यकला की झलक आसानी से देखी जा सकती है। पणजी के संबंध में एक दिलचस्प बात है कि यह एक छोटा शहर है, तथा इसकी भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि किसी ओर इसका विस्तार नहीं हो सकता है। इसके एक ओर एल्टिनो नामक एक पहाड़ी, दूसरी ओर अरब सागर, तीसरी ओर मंडोवी नदी एवं चैथी ओर ओरेम क्रीक स्थित है।
प्रारंभ में पणजी एक छोटा पड़ाव स्थल एवं कस्टम हाउस था, किंतु 1843 में पुराने गोवा का बंदरगाह गाद से भर गया तो पणजी का महत्व बढ़ गया। 1960 एवं 1970 के दशक में पणजी का तेजी से विस्तार हुआ।
पणजी महालक्ष्मी मंदिर के लिए भी प्रसिद्ध है।

पैठन (19.48° उत्तर, 75.38° पूर्व)
पैठन गोदावरी के उत्तरी तट पर औरंगाबाद से 50 किमी. दूर, महाराष्ट्र में स्थित है। पैठन या प्रतिष्ठान दक्कन का एक महत्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र था। यह नगर महाराष्ट्र एवं गुजरात के तटीय क्षेत्रों से सातवाहन साम्राज्य को जाने वाले महत्वपूर्ण व्यापारिक मार्ग में अवस्थित था। ऐसा विश्वास है कि पैठन सातवाहनों की राजधानी भी था। ‘पेरिप्लस ऑफ द इरीथ्रियन सी‘ में पैठन को दक्कन से रोमन साम्राज्य को होने वाले व्यापार का एक महत्वपूर्ण केंद्र बताया गया है।
पैठन धार्मिक जगत की कई महत्वपूर्ण हस्तियों से भी संबंधित था। प्रसिद्ध भक्ति संत एकनाथ की समृति में यहां एकनाथ मंदिर एवं एकनाथ समाधि बनाई गई है, जिससे पैठन हिन्दू धर्मावलंबियों का एक प्रमख तीर्थस्थल बन गया है।
आजकल यह नगर चांदी एवं सोने के तारों से की जाने वाली कढ़ाई का एक महत्वपूर्ण केंद्र बन गया है। इस कार्य की प्रेरणा अजंता की गुफाओं से ली गई है। पैठन अपनी रेशमी साड़ियों के लिए भी पूरे विश्व में प्रसिद्ध है, जिन्हें ‘पैठनी साड़ियां‘ कहा जाता है। पैठन में बुनाई की कला लगभग 200 ईसा पूर्व में सातवाहन काल में ही विकसित हो गई थी तथा यहां के बुनकरों की लगन एवं समर्पण से यह कला लगभग 2000 वर्षों तक फलती-फूलती रही। वास्तविक पैठनी शुद्ध सिल्क सोने एवं चांदी के तारों से हाथ से बुनकर बनाई जाती है।
पांचाल महावीर एवं बुद्ध के समय प्रमुख सोलह महाजनपदों में पांचाल का 10वां स्थान था। इसकी तुलना वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बरेली, बदायूं एवं फर्रुखाबाद जिलों से की जाती है। चैथी शताब्दी ईसा पूर्व के लगभग मध्य में, महापदमनंद के शासन के समय पांचाल पर संभवतः मगध के नंद शासकों ने अधिकार कर लिया था।
पांचाल की राजधानियां अहिच्छत्र एवं कांपिल्य थीं। संकिसा में मौर्य सम्राट अशोक ने एक एकाश्म स्तंभ भी निर्मित करवाया था, जिसकी खोज चीनी यात्री फाह्यान ने की थी। पांचाल क्षेत्र, मथुरा एवं कन्नौज से बड़ी मात्रा में सिक्कों की प्राप्ति से इतिहासकार यह मत व्यक्त करते हैं कि यह क्षेत्र संभवतः मित्र शासकों से संबंधित था। इन सिक्कों को जारी करने वाले शासक अनुमानतः 1000 ईसा पूर्व से 200 ईस्वी के मध्य शासन करते रहे होंगे।

पंढारपुर (17°40‘ उत्तर, 25°19‘ पूर्व)
पंढारपुर महाराष्ट्र का प्रमुख धार्मिक स्थल है। यह भीमार्थी नदी, जिसे चंद्रभागा नदी के नाम से भी जाना जाता है, के तट पर शोलापुर से पश्चिम की ओर 65 किमी. की दूरी पर स्थित है।
पंढारपुर में विठोबा (कृष्ण या विष्णु के अवतार) का एक भव्य मंदिर चंद्रभागा नदी के तट पर बना हुआ है। पंढारपुर के विट्ठल, पुराणों से व्युत्पन्न हैं तथा महाराष्ट्र में 13वीं से 17वीं शताब्दी के मध्य कई वैष्णव संतों ने इन्हें लोकप्रिय बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इन संतों में नामदेव, ज्ञानेश्वर, एकनाथ एवं तुकाराम के नाम सबसे उल्लेखनीय हैं। यह मंदिर एक विशाल भू-क्षेत्र में बना है, जिसमें प्रवेश हेतु 6 द्वार हैं।
गर्भगृह में विठोबा की एक खड़ी मूर्ति है, जिसे ‘पांडुरंग‘ (पंढारपुर का पुराना नाम) के नाम से भी जाना जाता है। शैलीगत ढंग से यह मूर्ति लगभग पांचवीं शताब्दी ईस्वी में निर्मित की गई थी। छठी शताब्दी में इस मंदिर में राष्ट्रकूट शासक का ताम्र पट्ट पर लिखित अभिलेख यहां लगाया गया। यह लेख 13वीं शताब्दी का माना जाता है। 13वीं शताब्दी के प्रसिद्ध संत नामदेव, इसी पंढारपुर से संबंधित थे।
पंढारपुर में पुंडरीक मंदिर भी है। पुंडरीक, भी एक संत थे, जो विठ्ठल मंदिर से संबंधित थे। यह मंदिर उनकी स्मृति में उनकी मृत्यु के बाद बनाया गया।