Magnetic field of earth and earth’s magnetism in hindi भू चुम्बकत्व की परिभाषा क्या है , पृथ्वी के चुम्बकत्व की पुष्टि भू चुंबकत्व किसे कहते हैं ?
परिभाषा : वैज्ञानिकों द्वारा किये गए कई प्रयोगों से यह निष्कर्ष निकाला गया की पृथ्वी भी एक चुम्बक की तरह व्यवहार करती है , ऐसा लगता है जैसे पृथ्वी के गर्भ में कोई चुम्बक रखी गयी और इस चुम्बक का दक्षिणी ध्रुव भौगोलिक उत्तर दिशा में हो तथा उत्तरी ध्रुव भौगोलिक दक्षिण दिशा में हो। पृथ्वी के इस चुंबकत्व को ही भू (पृथ्वी) चुम्बकत्व कहते है।
पृथ्वी के चुम्बकीय व्यवहार की पुष्टि निम्न प्रयोगों से हुई है
1. स्वतन्त्रता पूर्वक लटकी हुई चुम्बकीय सुई सदैव उत्तर-दक्षिण दिशा में ठहरती है : जब चुम्बकीय सुई को किसी धागे से इस प्रकार स्वतंत्रता पूर्वक लटकाया जाए की यह घूम सके तो चुम्बक सुई का उत्तरी ध्रुव भौगोलिक उत्तर दिशा में तथा दक्षिणी ध्रुव भौगोलिक दक्षिण दिशा में ठहरता है। इससे यह सिद्ध होता है की पृथ्वी में दक्षिण से उत्तर की तरफ कोई चुम्बकीय क्षेत्र उपस्थित है।
2. पृथ्वी में गाडी गयी लोहे की छड का चुम्बक बन जाना : जब किसी लोहे की छड को पृथ्वी में उत्तर दक्षिण दिशा में गाड़ा जाता है तो यह लोहे की छड कुछ समय बाद चुम्बक की भांति व्यवहार करती है , यह चुम्बकीय गुण कहा से आया ? , ऐसा तभी संभव है जब पृथ्वी एक शक्तिशाली चुम्बक हो और लोहे की छड जब इसके संपर्क में आती है तो इसमें कुछ चुम्बकीय गुण आ जाते है।
3. दण्ड चुम्बक के लिए बल रेखाएं खीचने पर उदासीन बिन्दु का प्राप्त होना : जब किसी दण्ड चुम्बक को इस प्रकार रखा जाए की इसका उत्तरी ध्रुव भोगोलिक उत्तर की तरफ हो , इस स्थिति में चुम्बक की चुम्बकीय बल रेखाएं खीचने पर निरक्ष बिन्दु पर दोनों तरफ उदासीन बिन्दु प्राप्त होता है।
इसी प्रकार यदि चुम्बक को इस प्रकार रखा जाए की चुंबक का उत्तरी ध्रुव भौगोलिक दक्षिण की तरफ हो तो इस स्थिति में चुम्बकीय रेखायें खींचने पर अक्षीय बिन्दु पर दोनों तरफ उदासीन बिंदु प्राप्त होता है।
ऐसा तभी संभव है जब पृथ्वी का चुम्बकीय क्षेत्र , चुम्बक के चुम्बकीय क्षेत्र को उदासीन कर दे और उदासीन बिन्दु प्राप्त हो।
4. स्वतंत्रता पूर्वक लटकायी गयी चुम्बकीय सुई भिन्न भिन्न स्थानों पर अलग व्यवहार करती है , ऐसा इसलिए हो सकता है की पृथ्वी का भू चुम्बकत्व अलग अलग स्थानों पर अलग अलग होताहै।
पर्थिव चुम्बकत्व या भू-चुम्बकत्व– जब किसी चुम्बकीय सूई को स्वतंत्रतापूर्वक उसके गुरूत्व केन्द्र से लटकाया जाता है, तो वह हमेशा उत्तर-दक्षिण दिशा में स्थिर होता है। इस तरह से चुम्बकीय सूई को एक निश्चित दिशा में स्थिर होना, पृथ्वी की सतह पर चुम्बकीय क्षेत्र की उपस्थिति को बताता है। पृथ्वी के चुम्बकीय बल क्षेत्र के अध्ययन से पता चलता है कि पृथ्वी का आचरण एक विशाल चुम्बक जैसा है, जिसका चुम्बकीय उत्तरी ध्रुव भौगोलिक दक्षिण ध्रुव की ओर और चुम्बकीय दक्षिणी ध्रुव भौगोलिक उत्तरी ध्रुव की ओर होता है। मुक्त रूप से निलंबित सुई को यदि पृथ्वी पर उत्तर से दक्षिण की ओर ले जाया जाए तो ऐसे दो स्थान मिलते है, जहाँ सूई की दिशा उर्ध्वाधर हो जाता है। इन दो स्थानों में एक स्थान पर उर्ध्वाधर सूई का उत्तरी ध्रुव पृथ्वी की ओर हो जाता है। इस स्थान को पृथ्वी का चुम्बकीय उत्तरी ध्रुव कहते हैं। दूसरे स्थान पर ऊर्ध्वाधर सूई का दक्षिणी ध्रुव पृथ्वी की ओर हो जाता है। इस स्थान को पृथ्वी का चुम्बकीय दक्षिणी ध्रुव कहते है। पृथ्वी के केन्द्र से होकर एक सरल रेखा की कल्पना करें, तो पृथ्वी के चुम्बकीय उत्तरी तथा दक्षिणी ध्रुवों से गुजरती है। इस सरल रेखा को पृथ्वी का चुम्बकीय अक्ष कहते है। पृथ्वी के भौगोलिक अक्ष एवं चुम्बकीय अक्ष के बीच का कोण लगभग 17 होता है। अतः पृथ्वी के भौगोलिक तथा चुम्बकीय ध्रुव एक-दूसरे से अलग होते है।
किसी स्थान पर पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र को तीन तत्वों द्वारा व्यक्त किया जाता है- दिक्पात् कोण, नमन कोण तथा चुम्बकीय क्षेत्र का क्षैतिज घटक।
– दिकपात कोण- किसी स्थान पर भौगोलिक याम्योत्तर तथा चुम्बकीय याम्योत्तर के बीच के कोण को दिकपात कोण कहते है।
नोट- किसी स्थान पर चुम्बकीय याम्योत्तर वह ऊर्ध्वाधर समतल है, जो पृथ्वी के चुम्बकीय अक्ष से गुजरता है और भौगोलिक याम्योत्तर वह ऊर्ध्वाधर समतल है, जो पृथ्वी के भौगोलिक अक्ष से गुजरता है।
– नमन कोण- किसी स्थान पर पृथ्वी का सम्पूर्ण चुम्बकीय क्षेत्र क्षैतिज तल के साथ जितना कोण बनाता है, उसे उस स्थान का नमन कोण कहते हैं। पृथ्वी के ध्रुव पर नमन कोण का मान 90° तथा विषुवत रेखा पर 00 होता है।
– चुम्बकीय क्षेत्र का क्षैतिज घटक – पृथ्वी के सम्पूर्ण चुम्बकीय क्षेत्र का क्षैतिज घटक (भ्) अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग होता है। परन्तु इसका औसत मान लगभग 0.4 गॉस या 0.4 ग 104 टेसला माना जाता है।
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